Saturday, February 28, 2015

होली-5

हमारे गांव में यह होली हमारे गांव का दर्जी है वहा गायी जाती है बुहत अच्छा संदेश इस होली के जरिये ।
मानो सैया हमार मोसे चरखा मगा दे।।
आफी कातूँलो आफी बणूलो
यही चलौलो व्यौहार।। मोसे चरखा मगा दे।।
घागरो स्वदेशी आङड़ो स्वदेशी।
पिछोड़ो स्वदेशी हमार।। मोसे चरखा मगा दे।।
ओढ़नो स्वदेशी बिछोंड़ो स्वदेशी।
स्वदेशी पलङा निवार।। मोसे चरखा मगा दे।
विदेशी माल को नाम ना लियो है।
स्वदेशी माल को करियो प्रचार।। मोसे चरखा मगा दे।
विदेशी राजा ले उठी उठि मारो।
उगणा का रूप अनेक।। मोसे चरखा मगा दे।
सोना चाँदी विलेत पुजायो।
नकली कागज की बहार।। मोसे चरखा मगा दे।।
मानो सैया हमार मोसे चरखा मगा दे।।
होली के रंग अपनों के संग

Friday, February 27, 2015

होली -3


रंग की गागर सिर पे धरे आज कन्हैया रंग भरे
होली खेली खहली मथुरा को चले ,आज कन्हैया रंग भरे

आज की होली न्हैं गेछ , जी रया जाग रया कै गेछ
अब फागुन उलौ कै गेछ, जी रया जाग रया कै गेछ

रंग की गागर सिर पे धरे आज कन्हैया रंग भरे
बरसे दिवाली बरसे फाग  फागुन उलौ कै गेछ


रंग की गागर सिर पे धरे आज कन्हैया रंग भरे
होली खेली खहली मथुरा को चले

होली के रंग अपनों के संग
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आली अपने बालम संग खेलूंगी धमाल


आली अपने बालम संग खेलूंगी धमाल ,
खेलूंगी धमाल आली अपने बालम संगा,
हाँ हाँ बालमा ने दो निशानीयाँ भेजी।।

एक पटुका दो रुमाल आली अपने बालम संग खेलूंगी धमाल
आली अपने बालम संग खेलूंगी धमाल ,
खेलूंगी धमाल आली अपने बालम संगा,

हाँ हाँ बालमा ने दो निशानीयाँ भेजी।।
एक नीबू दो अनार आली अपने बालम संग खेलूंगी धमाल
आली अपने बालम संग खेलूंगी धमाल ,
खेलूंगी धमाल आली अपने बालम संगा।।


श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
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मोबाइल : +91- 9876417798

होली -1

नदियाँ तिरे की झोपडी रे घड़ियाँ -घड़ियाँ लागे तीर ,
यो जाने मेरो बालका कन्हैया यो जाने जगदीश,
सोहई मेरो मन मोहना रे स्वामी बरण मन मोहना रे । ।

१ काहे को बेरी बादले रे काहे को बेरी ब्याल ,
काहे को बेरी जोगना रे काहे को बेरी जाल ,
नदियाँ तिरे की झोपडी रे घड़ियाँ -घड़ियाँ लागे तीर ,
यो जाने मेरो बालका कन्हैया यो जाने जगदीश ।।

२ सुरजा को बेरी बादला रे बादल को बेरी ब्याल ,
पंछी को बेरी जोगना रे मछली को बेरी जाल ,
नदियाँ तिरे की झोपडी रे घड़ियाँ -घड़ियाँ लागे तीर ,
यो जाने मेरो बालका कन्हैया यो जाने जगदीश,
सोहई मेरो मन मोहना रे स्वामी बरण मन मोहना रे।

३ काहे प्यारो निदुवा रे काहे प्यारो त्तेज ,
मूर्खा प्यारो निदुवा रे चुतरा प्यारो खेल ,
नदियाँ तिरे की झोपडी रे घड़ियाँ -घड़ियाँ लागे तीर ,
यो जाने मेरो बालका कन्हैया यो जाने जगदीश,
सोहई मेरो मन मोहना रे स्वामी बरण मन मोहना रे  ।।

श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
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ना पियो -ना पियो शराबा.....

नक झन मानिया दगड़ियों ये गीत उन्ले जी छू जो होई में शराब पीनी और होई नी कुन
गोपी दा की हालत गोपी दा जाने और ना जाने कोई ।।
ठुल च्यल शराबी ह्वे गया है नान च्यल ह्वेगो डोई।।
च्याला की हालत देख बेर शेर दा की घरवाली बहुत रोई ।।
"पसन्द आया तो बतायेगा जरुर" !
ना पियो -ना पियो शराबा तुमार नान तिन है जाला खराबा .......
सब तुम्हर मुँख चानी , नान तुम्हर ख्वर खानी……………
केसी तरल भेंस लौन खाली न्ह्गो सारे हीउन
ना पियो -ना पियो शराबा तुमार नान तिन है जाला खराबा .
खाली न्ह्गो सारे हीउन तुम है रौछा पी बेर डोंन .............
तैशी जे के रुन्छा जीउन,खाली न्ह्गो सारे हीउन
ना पियो -ना पियो शराबा तुमार नान तिन है जाला खराबा ……
रत्ती ऊठी बोतल चायी झट मांगों गिलाशा …………….
चार दिन की जिंदगी तुम्हर हे जली बर्बादा ……………
ना पियो -ना पियो शराबा तुमार नान तिन है जाला खराबा।
श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
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झोड़ा


वो गदूवा छाजो बाग बगीचा काकडी छाजो रेतमा,
वो मेरो भूलो आऊ लायले लाये भूलो चैत मा,

वो खुटा का बिछुवा ना तिन लाये भूलो चैत मा,
वो गदूवा छाजो बाग बगीचा काकडी छाजो रेतमा,

वो मेरो भूलो आऊ लायले लाये भूलो चैत मा,
shyam joshiवो खुटा का चप्पला ना तिन लाये भूलो चैत मा,

वो गदूवा छाजो बाग बगीचा काकडी छाजो रेतमा,
वो मेरो भूलो आऊ लायले लाये भूलो चैत मा,

वो आंग की आंगड़ी ना तिन लाये भुलो चैत मा,
वो गदूवा छाजो बाग बगीचा काकडी छाजो रेतमा,

वो मेरो भूलो आऊ लायले लाये भूलो चैत मा,


श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
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राजा बलि के द्वारा खेलें होली -4

राजा बलि के द्वारा खेलें होली
हा हा राजा बलि के द्वारा खेलें होली
हा हा कौन शहर के कृष्णा कन्हैया …… २
वो कौन शहर की राधा गोरी राजा बलि के द्वारा खेलें होली
राजा बलि के द्वारा खेलें होली
वो मथुरा शहर शहर के कृष्णा कन्हैया …… २
almora वो कौन शहर की राधा गोरी राजा बलि के द्वारा खेलें होली
हा हा कौन बरस शहर के कृष्णा कन्हैया …… २
हा हा ७ बरस के कृष्णा कन्हैया …… २
हा हा ५ बरस की राधा गोरी राजा बलि के द्वारा खेलें होली २
राजा बलि के द्वारा खेलें होली
हा हा कौन बरण के कृष्णा कन्हैया
हा हा कौन बरण के कृष्णा कन्हैया हा कौन बरण की राधा गौरी २
हा हा राजा बलि के द्वारा खेलें होली
हा हा श्यामा के कृष्णा कन्हैया
चौथा बरण की राधा गौरी हा हा राजा बलि के द्वारा खेलें होली
हा हा राजा बलि के द्वारा खेलें होली

लाइव होली
श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
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Thursday, February 26, 2015

हमारे पहाड़ की सुबह

उत्तरांचल दीप अंक -08-10-2015
जब प्रातः काल सूर्य नीकलता है तो इसका एक मन्होहर देखने वाला होता है। ताई,चाची लोग नौले से पिने का पानी तांबे की गागर में भर के लाते है और बच्चे स्कूल को जाते हुए कोई उस धार से तो कोई पल तरब वाली धार से और आँगन में बैठे हुए आमा और बुबु गुड वाली कटक की चाय पीते हुए कितना सुन्दर लगता है ।

उसके बाद सारे लोग अपने काम में लग जाते है फिर एक समय और चाय का होता है हमारे पहाड़ में लोग चाय बुहत पीते है वो लोग कहते है चाय पीकर जरा थकान उत्तर जाती है।

जो १० वाली चाय होती है उसे वहाँ पर "मोरशी चाह " इसका मतलब हुआ इस समय हर घर में चाय बनती है और साथ में "कल्यो" नास्ता जिसे हमारे पहाड़ में "कल्यो" भी कहा जाता है। कल्यो में कभी तो आलू के गुड़के या फिर गेहूँ और मड़ुए की मिक्स रोटी या फिर कुछ और पहले कहते थे की गेहूँ और मड़ुए राई रौट खाओ तो भूख नही लगती है।

आप अपनी बचपन से जुडी यादें एवम लोक संस्कृति, कला व गीत-संगीत से जुड़े बिषयों पर अपनी पोस्ट को हमारे इस पेज के साथ साँझा कर सकते है !



श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
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पहाड़ होइ म्यर जनम

कदुक भल पहाड़ होइ म्यर जनम,
ईज ले काखी धरो बोज्यो धरो कानिम,

उधड़ी कमीज पैरी फाटी पैरी पैजम,
टाल लगेबेर पेंट में जांछी स्कूलम्,

मड़ुवाक रवाट खायो झुंगर क खायो भात ,
आमा बुबुक दागड रुछि साथ ,

हमर घर तुमर घर के नी छी पत,
जेक ले घर जांछी वा रुछि मस्त ,

कतके उवाल दरिम बाटिक ,
कतके पाल दरिम बाटिक ,

केके चोर नीबू केके चोर काकड़,
दिन भरी नाड़म रुछि ग़ध्यारम ,

पे म्यार कदुक भल दिन छी,
आपण पहाड़म ,

श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
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Beautiful View Almora !

Beautiful View Almora !
कुछ याद आता है इन नजारो को देखकर !
(म्यर पहाड़ा आया म्यर मुल्क देखणा........


श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
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छूट गो पहाड़


आज ईजा का मन उदास तो है, पर बेचारी कुछ कह नही सकती आने वाले कल की आस मैं अपने बेटे को अपने से दूर बेझती है, और अपने इष्ट देवता को अपने बेटे की हाथ की भेट चढ़ाते हुए कहती है, म्यर च्यल की रक्षा करया हो देवो और पिठ्या लगा के विदा करती है।

यह कहानी उस पहाड़ी की जिसका जन्म हुआ पहाड़ पर और बचपन भी वही बिता ज़िन्दगी की शरुवात भी उन्हीं ही पहाड़ियों मैं हुई, और पढ़ाई भी वही से हुई बस जब कुछ करने का समय आया तो निकल पड़ा वह पहाड़ी एक बैग उठा के परदेश की तरफ जहाँ कोई अपना नही है, सब लोग अन्जान है, उन्ही अन्जान लोगोँ मैं से अपनों को ढूढ़ना भी है,रात काटने के लिए कितनी मज़बूरी है, हर पहाड़ी की सोचता है मैं भी इन मजबूरियों का निपटारा करूँगा जिस माँ बाप ने खुद नही खा के मुझे खिलाया है अपना फटा कपड़ा पहन के मुझे नए कपड़े पहनाये है, उनके लिए कुछ करूँगा इसी आस मैं वो अपना सफर करता है।

नाम तो है पर पहचान नही है,अपनों से दूर जहाँ शायद उसे कोई जानता हो नाम तो है, उसका पर उसे पहचानता कोई नही है।

कहते है परदेश में अपने भी पराये होते है, यह बात सच क्यों की वो लोग रहते तो वहाँ पर छत अपनी नही है, है तो बस शाम की रोटी आने वाली सुबह का नही पता कब कहा जाना पड़े और वह पहाड़ी वहाँ रुकता तो है, एक दो दिन पर उसे ये फिकर है, मैं अपने ईजा बोज्यू को ये कह कर आया हूँ, इस बार नए कपडे में लाऊंगा ईजा की फटी जुराब आँखों में आती है।

और निकल पड़ता है, सुबह नौकरी की तलाश मैं हर चौराहे हर गली भटकता है, तब उस समय माँ बाप आँखों में आते है, सोचता है, इतने ही कष्ट मुझे पढ़ाने में किये हुंगे मेरे माँ बाप ने पूछता है, लोगों से कुछ काम मिलेगा करने को तब उसके सामने क्या -क्या सवाल किये जाते है।
“तुम कहा से आये हो ,कहा रहते हो ,क्या करते थे पहले ,तुम्हारे पिता जी क्या करते है”
जब वो इन सवालो का जवाब देता है में एक पहाड़ी हूँ मुझे काम चाहये और में इस शहर में नया आया हूँ।

जवाब आता है, तुम्हारे यहाँ कुछ काम नही होता है, क्या जो सब के सब शहर को चले आते हो और तुम तो नए हो मैं तुम्हे क्या काम दूंगा मुझे कराना है, सिखाना नही आप कही और पता करो यहाँ जगह नही है, वह पहाड़ी थका हारा जब शाम को घर जाता है, तो माँ (ईजा ) का फोन आता है, च्येला तू काम पर लाग् गछे के तू कणी कस लाग रो ता तिल खाण खा छे नी खे ईजा आज जे रोछि दिन के कदुक जाग गयी या ते सब परायी छन वे ईजा कोव न्हाती आपण सब कु रई तू या नई -नई एरोछे तुके काम नी ऊन तू के करले तब ईजा का जवाब होता है।

“च्येला तू फिकर नि कर भोव दिन आई ले आल ”

इतना कह कर माँ फोन काट देती है, और माँ के मुह से ये सुनकर दिन की वो सारी थकान भी उतर जाती है, और एक नयी आस मिलती है कहते है माँ का दिया हुआ वचन हमेशा साथ रहता है।

और अधिक कवितायेँ और हमारे पहाड़ के बारे में जानने के लिए हमारे पोर्टल पर जुड़े 
"रंगीलो कुमाँऊं छबीलो गढ़वाल"


श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
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“च्येला तू फिकर नि कर भोव दिन आई ले आल ”

आप सभी को नूतन वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें।

आप सभी को नूतन वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें। 

नई आश, नई किरणें बिखराओ, 
सबकी जीवन में नई आश जगाओं।

सबके जीवन में खुश रहो, 
और रखो जहान को खुश। 

विश्व समूचा दिग दिगंत तक,
हो हर्षित, प्रमुदित, उत्साहित।

घर- घर में सबकी खुशियाँ,
हृदय सरोवर में विकसित हों। 

नवल दृष्टि से जग हो सारा, 
स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा !


श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
( सर्वाधिकार सुरक्षित )

ये कोहरा छंट जाएं

ये कोहरा छंट जाएं।
मुझे भी किरणों का इन्तजार है।।

इन सर्द हवाओं में भी।
एक अजब सा खुमार है।।

मुझे भी ले चलो उस पहाड़ी की ओर।
जहाँ उसे होता है रोज मेरा इन्तजार।।

पतझड़ जाने को अब तैयार है।
बसंत अपने कदम पेड़ों पर।।

रखने को जहाँ बेताब है।
हरे - भरे पत्तो के बीच में बैठी कोयल।।

मधुर -मधुर गीत सुना कर ।
जग को यह जगाती है ।।

मेरे सूने मन के अंदर।
मधुर मधुर तान दे जाती है ।।

 श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ ) ( सर्वाधिकार सुरक्षित )


घुघुतिया त्यार

आप सभी को परिवार सहित मकर संक्रान्ति एवं घुघुतिया त्यार की हार्दिक शुभकामनाएँ!

इस त्यौहार को मनाने के पीछे कोई कारण अवश्य होगा! कोई धारणा कोई न कोई किसी प्रकार की मान्यता रही होगी| जिस प्रकार मेरे मन मैं हर उस बात को जानने की उत्सुकता रहती है उसी प्रकार आपके मन में भी छुपुटाहट होगी आँखिर क्या तथ्य है इसके पीछे|
मैं बहुत खुश हूँ कि मैं आप लोगों को अपने पहाड़ अपने उत्तराखण्ड के इस महत्वपूर्ण त्यौहार की जानकारी उपलब्ध कराने में समर्थ हूँ|
बहुत पहले की बात है| प्राचीन समय में घुघुतिया नामक एक राजा था| वह बहुत बड़े विशाल साम्राज्य का अकेला राजा था| एक दिन उस राजा के यहाँ एक बहुत बड़े विद्वान का आगमन हुआ| राजा ने उस विद्वान से अपना भविष्य जानने की इच्छा जाहिर की| उस विद्वान ने कहा कि १ गते मकर संक्रान्ति के दिन राजा की मृत्यु होगी और काल कौवे का रूप धारण कर आएगा| जब राज्य के लोगों को इस बाबत जानकारी हुई तब सभी चिन्तित हो उठे| तब एक सभा का आयोजन किया गया जिसमें सभी नगर वासी मौजूद थे|
चर्चा का विषय काभी गम्भीर था आँखिर सवाल राजा के जीवन को बचाने का था| सभी चिन्तित थे कि किस तरह राजा के प्राणों की रक्षा की जाय| क्योंकि राजा की मृत्यु से वहाँ की प्रजा पर संकट के बादल छा जाते|
तभी उस सभा में से एक वृद्ध बुजुर्ग ने सलाह दी कि हम सभी को कौवों को व्यस्त रखना होगा और इन्द्र ब्रह्मा व विष्णु की स्तुति की जाय ताकि राजा की मृत्यु काल को टाला जा सके| बहुत सोच विचार कर उस बुजुर्ग ने कहा क्यों न कौवों के लिए विभिन्न प्रकार के व्यंजन तैयार किए जाएँ और उन्हें खाने में व्यस्त रखा जाय|
सभी को यह योजना पसंद आई| तब सभी राज्य वालों ने मकर संक्रंति के पहली रात सभी व्यंजन तैयार किए और योजनानुसार अगली सुबह प्रातः काल से ही कौओं को व्यस्त करने में लग गए| सभी कौए उन व्यंजनों को ग्रहण करने में व्यस्त हो गए साथ ही जो काल रूपी कौआ था वह भी उन सभी कौऔ के साथ व्यस्त हो गया|
इन सबके बीच वह काल रूपी कौआ ऐसा मग्न हुआ कि उसे राजा के प्राण हरने का सुध ही न रहा और राजा की मृत्यु का जो समय निशचित किया गया था वह निकल गया इस प्रकार राजा के प्राणों का संकट टल गया और राजा को जीवनदान मिल गया|
तब से ही मकर संक्रान्ति के दिन इस दिन को घुघुतिया के रूप में मनाया जाता है|
आज से सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण कि ओर परिवेश करता है| और साथ ही सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है| आज के दिन को पुषुड़िया भी कहते हैं क्योंकि पूष खत्म होकर माघ का महिना शुरू होता है| वैशाख के माह को मेषार्क भी कहा जाता है|
"काले कौवा काले घुघुति माला खाले" ||
"लै कावा भात में कै दे सुनक थात"||
"लै कावा लगड़ में कै दे भैबनों दगड़"||
"लै कावा बौड़ मेंकै दे सुनौक घ्वड़"||
"लै कावा क्वे मेंकै दे भली भली ज्वे"॥
दीपा जोशी !
घुघुतिया त्यार की हार्दिक शुभकामनाएँ!

Childhood Memories !




Childhood Memories !

Writing by Shyam Joshi



उत्तराखंड के युवा जनता की आवाज !

उत्तराखंड के युवा जनता की आवाज !
उत्तराखंडी चाहता है उसके गांव में खुशहाली आऐ देखते हैं क्या हमारी सरकार सुनती है या नहीं यह तो समय ही बताएगा ।


उत्तराखंड के युवा जनता की आवाज

कुमाँऊ की होली

होली का त्यौहार मुझे बेहद पसंद है फिर अपनी पहाड़ (कुमांऊ ) की होली की तो बात ही निराली है ठेहरी घर - घर जाके होली गाना फिर उसके बाद होली के जो गीत वो तो माहौल को खुस नुमा बना देते है।

साथ में आलू के गुटके आह होली के अन्त में प्रसाद के तौर पर गुड का मिलना बुहत ही अच्छा लगता है सब से अच्छा तब लगता था वो "बुबू गुड दी दियो हो मैके ले " कहना कितना अच्छा लगता है।

यह होली मुझे बेहद पसंद है !

वो है हो है तुम कहा कि छैला 2
वो कहा बिराजे छैला मुनुड़िया …… काहे बिराजे हार........!

वो दिल्ली गड़ाई  छैला  मुनुड़िया वो कहा गाडयों हार वो है हो है तुम कहा कि छैला।
वो है हो है तुम कहा कि छैला ....वो है हो है तुम कहा कि छैला …
वो देल्ही गड़ाई छैला मुनुड़िया वो आगरा गाडयों यो हार है हो तुम कहा कि छैला।
" टका होली धो "

वो है हो है तुम कहा कि छैला ....वो है हो है तुम कहा कि छैला …
वो के मोला तेरी छैला मुनुड़िया वो के मोला को तेरो हार वो है हो है तुम कहा कि छैला।

वो है हो है तुम कहा कि छैला ....वो है हो है तुम कहा कि छैला
वो एक लाखा कि छैला मुनुड़िया वो है लाखा डेढ़ लाखा हार वो है हो है तुम कहा कि छैला।
" टका होली धो "

वो है हो है तुम कहा कि छैला ....वो है हो है तुम कहा कि छैला ......
वो कहा बिराजे छैला मुनुड़िया काहे बिराजे हार हो है तुम कहा कि छैला,
वो है हो है तुम कहा कि छैला ....वो है हो है तुम कहा कि छैला ……
" टका होली धो "

उंगुठि बिराजे छैला मुनुड़िया वो कंठा बिराजे हार हो तुम कहा कि छैला,
वो है हो है तुम कहा कि छैला ....वो है हो है तुम कहा कि छैला २ बार


सभी मित्रो को होली की हार्दिक शुभकामनाएं !
श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
( सर्वाधिकार सुरक्षित )


कुमाँऊ की होली
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Wednesday, February 25, 2015

नैनीताल शहर मेरे ज़ेहन बसता है

नैनीताल शहर मेरे ज़ेहन बसता है
एक शहर नैनीताल जो हमेशा मेरे ज़ेहन में बसता है और इस शहर झीलों का शहर भी कहा जाता है, वैसे तो नैनीताल से मेरा काफ़ी लगाव रहा है में जब भी कभी यहाँ आता हूँ एक नया एहसास सा मालुम होता है शायद ये वही है जिसके कारण में यहाँ बार- बार आता हूँ।
नैनीताल का सबसे बड़ा आकर्षण यहाँ की झील है और यह झील का आकर भी एक आँख की तरह दिखता है झील के उत्तरी किनारे पर माँ नैना देवी का मंदिर बना है जो भी यहाँ पर्यटक आता है वो माँ के दर्शन करने जरूर जाता है।
नैनीताल में अनेक ऐसे स्थान हैं जहाँ जाकर सैलानी अपने - आपको भूल जाते हैं। यहाँ अब लोग ग्रीष्म काल में नहीं आते बल्कि वर्ष भर आते रहते हैं, सर्दियों में बर्फ के गिरने के दृश्य को देखने हजारों पर्यटक यहाँ पहुँचते रहते हैं रहने के लिए नैनीताल में किसी भी प्रकार की कमी नहीं है, एक से बढ़कर एक होटल हैं।
आधुनिक सुविधाओं की नैनीताल में आज कोई कमी नहीं है। इसलिए सैलानी और पर्यटक यहाँ आना अधिक उपयुक्त समझते हैं।
श्याम जोशी
( सर्वाधिकार सुरक्षित )
नैनीताल शहर मेरे ज़ेहन बसता है

प्रकृति और मेरा प्यार अपना पहाड़

यहाँ सिर्फ गर्मियों में ही नहीं बल्कि सर्दियों में भी प्रकृति अपना एहसास दिलाती है अपने ही निराले अंदाज में आप जब सुबह उठ कर बहार निकलते हो और अपनी आँखों इधर-उधर दौड़ाते हो और आप के सामने धरती सफेद चादर में सिमटी हुई लगती है, और देवदार तथा चीड़ के पेड़ों से गिरते हुए बर्फ के टुकड़े सचमुच यहाँ आने वालो को एक नया आभास दिलाते है।
गर्मियों के समय पहाड़ो के बीच से सूरज की किरणों का पड़ना एक बेहतरीन दृश्य यहाँ की शुद्ध हवा, हरे भरे जंगल, कल-कल करती नदियों का शोर सभी का मन मोह लेती है।
बसंत ऋतु के समय में जब इन पहाड़ों में रंग बिरंगे फूल खिलते है तब इनकी खुशबू चारो ओर बिखर जाती है वैसे प्रकति अपने कितने रूप बदल सकती है यह पता इन पहाड़ो में आकर लगाया जा सकता है इन्हीं पहाड़ो में आकर पता लगता है प्रकृति ने हमें कितने रंगो में नवाजा है।
मस्त हवा के झोके पंछियो का कलरव और दूर दूर झरनों का कोलाहल यहाँ के मौहाल को अत्यंत ख़ुशनुमा करता है।
श्याम जोशी
( सर्वाधिकार सुरक्षित )

almora

घर की सड़क

ये सड़क जाती है वो दूर कही पहाड़ी पर।
मेरे अपने गाँव मैं मेरी माँ की छाँव में।।

जो आस लगाये बैठी रहती है पेड़ की छाँव में।
राह देखती रहती है अपनों की उस आँगन में ।।

शाम होती ही पोंछ लेती है अपने आँचल से अपने आँसू। 
करती है बातें दीवारो से पूछती है पता अपने चिरागो का।।

ये सड़क पर जाने वाले मुसाफिर को इस सड़क को मेरे घर का भी पता बता देना और कहना माँ की अँखिया तुम्हें निहार रही है !

ये पहाड़ वो हमारे घर और घर में बैठी माँ की पुकार हम सब परदेशियों के लिए बुलाता है घर बुलाती है माँ !

श्याम जोशी

( सर्वाधिकार सुरक्षित )
ये पहाड़ वो हमारे घर और घर में बैठी माँ की पुकार हम सब परदेशियों के लिए बुलाता है घर बुलाती है माँ !

ज़िन्दगी के रंगो को इन पहाड़ो में...

इन अनेक रंगों की तरह अपने ज़िन्दगी के रंगो को इन पहाड़ो में समा जाने का दिल करता है !
वो दूर हिमालय से बिखरा हुआ नीला आसमान।
कल कल करती नदियाँ और हरे भरे पेड़ो से भरे ये जंगल।।
झरनों से बहता निर्मल पानी अमृत जैसा इनका जल।
बहती ठंडी हवा देखो, करती मन को कितना शीतल।।

तुम भी आ जाओ कुछ दिनों के लिए ही सही मेरी खूबसूरती निहारने !
श्याम जोशी 
( सर्वाधिकार सुरक्षित )

इन अनेक रंगों की तरह अपने ज़िन्दगी के रंगो को इन पहाड़ो में समा जाने का दिल करता है !

कभी -कभी यूँ दिखता है अल्मोड़ा


प्रकृति की गोद में बसा अल्मोड़ा अपने आप में एक एक खुबसूरत पर्यटन स्थल है, दूर दूर तक फैले बर्फ की चोटियाँ इसे और भी खूबसूरत बनाती है , चीड, देवदार के घने जंगलों से भरा मन को रोमांचित करता है और तन को ठंडी -ठंडी हवा देता है।
यहाँ की एक खास बात यहाँ के मकान पहाड़ नुमा बनाये जाते है जीसमे चीड़, देवदार, तुनी की लकड़ियों का उपयोग किया जाता है। और ये मकान शरद ऋतू के समय गरम और गर्मियों के समय ठंडक देते है।
ग्रीष्मकाल के समय पहाड़ियों को देखने लायक होता है बुरांस के फूल यहाँ की खूबसूरती को और चार चाँद लगा देते है।
मंदिर-कुमाऊं के प्रसिद्ध लोक-देवता गोल देवता का मंदिर नन्दा देवी का मंदिर कसार देवी मंदिर यहाँ से आप पर्वतराज हिमालय के दर्शन भी कर सकते है।
अल्मोड़ा के आस पास का सौंदर्य कटारमल मन्दिर जो अल्मोड़ा से महज 1७ किलोमीटर की दुरी में मोटर मार्गः कोशी होते हुए कटारमल को वहाँ से ३ किलोमीटर कच्ची सड़क कटारमल के सूर्य मन्दिर तक जाती है।
कहा जाता है कोर्णाक के सूर्य मन्दिर के बाहर जो झलक है, वह कटारमल मन्दिर में आंशिक रुप में दिखाई देती है यहाँ की मूर्तियाँ बारहवीं शताब्दी की बतायी जाती है सूर्य भगवान की मूर्ति सूर्य पद्मासन लगाकर बैठे हुए हैं। यह मूर्ति एक मीटर से अधिक लम्बी और पौन मीटर चौड़ी भूरे रंग के पत्थर में बनाई गई है।
यहाँ से आगे जाकर कठपुर्निया से एक मोटर मार्ग माता स्याही देवी (सीतला माता ) को जाता है सीतला देवी का यहां प्राचीन मंदिर है। इस देवी की इस सम्पूर्ण क्षेत्र में बहुत मान्यता है। इसीलिए सीतलादेवी के नाम से ही इस स्थान का नाम सीतलाखेत पड़ा है।
एक मोटरमार्ग मजखाली होते हुए रानीखेत को जाता है ये अपने आप में एक रमणीय स्थान है दूर दूर से सैलानी यहाँ घूमने आते है।
कुछ दिनों के लिए तो आएये हमारे अल्मोड़ा में क्या पता यहाँ की खूबसूरती आप का मन मोह ले फिर आप भी कहे कितना प्यारा कितना न्यारा है ये अल्मोड़ा हमारा !
सर्वाधिकार सुरक्षितश्याम जोशी !
कभी -कभी यूँ दिखता है अल्मोड़ा

माँ शारदे अभिनन्दन

पुलकित हुआ आज धरती का आँगन।
नवसृजित कोपलें कर रही माँ शारदे का अभिनदंन।।
क्यों न करें इस धरा का गुणगान ।
आया सुन्दर बसंत बनके हम सब का मेहमान।।
नव पुलिकत इस धरा पर उमंग देखो छायी है।
चारो तरफ खुशियो ने ली फिर अंगड़ाई है।।
नभ यों निचे देख रहा मानो।
उसकी नवबधू आज फिर से इठलायी है।।
चारों तरफ खुशियाँ है , नयी कलियाँ रंगरलियां है।
पतझड़ वाले पेड़ो पर भी आज फिर से कलियां है।।
खेतो में हरियाली है जीवन में हर्षोल्लास है।
झूमो इस बसंत में तुम भी यह बसंत का उल्लास है।।

कविता
मीनाक्षी बिष्ट
( सर्वाधिकार सुरक्षित )
सभी सम्मानित साथियो को "रंगीलो कुमाँऊं छबीलो गढ़वाल' तरफ से बसंत पंचमी की सपरिवार सहित बधाई व शुभकामनाएं !

हमारी संस्कृति की अनूठी परम्परा

सुवाल पथाई यह रिवाज हमारी संस्कृति में से एक है जो आप को कही और नही मिलेगा सुबह का समय गणेश पूजा का उसके बाद सुवाल पथाई के लिये आटा गुदना साथ मैं खूब मज़ाक करना फ़िर घर के लोगो द्वारा इस्ट देवता के लिये सुवाल पाथना वही दर्स्य बाहर आँगन का सारे गांव वाले मिल जुल कर सुवाल पाथना और साथ मैं शादी के गीतो से मौहाल को और भी खुस नुमा करना कीतना अच्छा लगता है। लड़की की शादी हो तो वहां पर यह गीत अवस्य गाया जाता है।
आओ बैठो बनी तुम कल चली जाओगी ,
अपने बाबुल के घर से विदा हो जाओगी !!
उसके बाद का कार्यकर्म भी बड़ा ही मजेदार होता है एक तरफ जहाँ सुवाल पक रहे है वही दूसरी तरफ तात सिवाई (हलवा ) आटे का बना होता है बडा ही स्वाद तात सिवाई का मतलब हुआ इस को गरम - गरम खाना है ठंडे मैं जरा स्वाद मैं अंतर हो जाता है। फिर उसके बाद की एक बुहत अच्छी परम्परा है हमारे पहाड़ की शायद ये कुछ गांव मैं नही हो सकती है हमारे गांव मैं यह परम्परा है घर -घर जाकर सुवाल और हलवा दे कर आना जिसे पहाडी में (पैण) भी कहते है।
(जुड़े रहये अपनी संस्कृति से हमारी संस्कृति हमारी धरोहर है !)
लेख -श्याम जोशी !
( सर्वाधिकार सुरक्षित )
चित्र सोजन्य - (मंगल s नयाल)
हमारी संस्कृति की अनूठी परम्परा

देवी देवताओं का साक्षात वास

हमारा उत्तराखंड धाम।।
आश ले कर पहुँचते है।

गोलू देवता के थान।।
तुमरी छू महिमा महान ।।

प्रभु हमर ले धरया ध्यान।
हमकू ले दिया ज्ञान।।

जय गोलू देवता सबकी रक्षा करना।

श्याम जोशी !
( सर्वाधिकार सुरक्षित )
देवी  देवताओं का साक्षात वास

मेरे घर का दरवाजा


बड़े-बड़े घर छोटे-छोटे से दरवाजे।
छोटी-छोटी खिड़कियाँ।।
मिट्टी से लीपा हुआ आंगन।
कोने में लगाई हुई तुलसी।।
मिट्टी से आती हुई सुगंध।
पंछियों का चहचहाना।।
धीमे-धीमे चलती हुई।
सुबह की ठंडी बयार।।
नयी सुबह का संदेश देती।
सूरज की सिंदूरी किरणें।।
आंगन में आना।
तुलसी के नीचे दिये का जलाना।।
परिक्रमा पूरी कर।
सूरज को जल अर्पित करना।
भक्ति-भाव से नमस्कार कर भगवान को।।
कुछ जल्दी में घर के भीतर जाना।
यही है मेरे घर की सुबह ।।
-श्याम जोशी !
(सर्वाधिकार सुरक्षित )

मेरा पहाड़

जग से न्यारा पहाड़।
वो बड़े- बड़े बर्फीले पहाड़
सबका मन भावन पहाड़ ।।
आस्था विश्वास का ये पहाड़।
हिसालू किलमोड़ी की बहार
भट्ट की चूंटकानी की सौगंध।।
पालक के कपये का आहार
कितना प्यारा
कितना न्यारा है ये पहाड़ ।।
सबको को शीतल।
पानी देता ये पहाड़
ठंडी हवा देता ये सदाबहार।।
कितनी सुन्दर है इसकी छटा।
सबके मन की बातो को कर देता ये बया।।
देखो कितना प्यारा कितना न्यारा है ये मेरा पहाड़ !
कविता - मीनाक्षी बिष्ट
( सर्वाधिकार सुरक्षित )
मेरा पहाड़
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हमारी जड़े आज भी उन्ही बाखली में है


हमारी जड़े आज भी उन्ही बाखली में है''                     दिनांक :- 21-09-2015 उत्तरांचल दीप में मेरी  यह रचना
जहाँ हम छोड़ आये अपना बचपन।।
घर तो आज भी वही है।
पर उस घर में रहने वाला कोई नही है।।
जो हमारे पूर्वजो ने १०० साल पहले बनाया था।
आज भी बुबु लाठी के सहारे चलते है।
पर बगल में चलने वाला कोई नही है ।।
आमा घुटने के बल आज भी पटागण लिपति है।
पर उसमें खेलने वाले नाती नतिनी कोई नहीं है।।
वो गोठ धेली के ऊपर आज भी टोकरी (डाला ) टांगा है।
पर उसमें मड़ुआ , धान , झुंगर लाने वाला कोई नही है।।
वो बंजर खेत आज भी राह देखते है किसी की आने की।
पर उसमें हल जोतने वाला कोई नही है।।
वहाँ आज भी हम ज्यों का त्यों वैसी ही छोड़ आये जो हमारे पूर्वजो ने सेहज कर रखा था बस उसको देखना वाला कंधे में बेग लटका के शहर की तरफ आ गए है। रह गए तो बस ये बीरन घर और वो सूखे खेत खल्यान वो पंग डंडी जहाँ हम अडू , या लुकीछुपी खलते थे।
कुछ कमियाँ हम भी है हम कभी अपने हक़ के लिए लड़े नही   बस बड़ो का ये सुनकर चुप हो जाते हम तो सिद्ध साध आदिम भया आज यही बात सबको को खलती है शायद अपने हक़ के लिए एक जुट होकर लड़ा होता तो इस तरह परदेश में बैठ कर किसी की नौकरी नही कर रहे होते और ये लिखते- लिखते आँसू नही बहाने पड़ते।
कविता - श्याम जोशी !
( सर्वाधिकार सुरक्षित )


'हमारी जड़े आज भी उन्ही बाखली में है''

देवभूमि ,मातृभूमि ,जन्मभूमि यह है मेरी कर्मभूमि


जिस धरती में प्रकृति के नाना रूपों का श्रृंगार होता है वही तो मेरी जन्म भूमि है, जहाँ अनेक सांस्कृतिक कार्यो का मेल जोल होता है वही तो मेरी तपोभूमि है,जहाँ सब एक समान आपस में भाई चारा होता है वही तो मेरी मात्र भूमि है।
जहाँ स्वयं ब्रह्मदेव ने उसे यज्ञभाग का भागी बनाकर पर्वतों का स्वामित्व प्रदान किया वही तो मेरी भी भूमि है जो योगियों की योगभूमि और तपस्वियों की तपोभूमि है वही अपनी देवभूमि है,जहाँ अनेक तीर्थ धामों तथा हजारों-हजार देवस्थलों का धारक है उसी दिव्य उत्तरांचल देवल की तपस्थली है, वही प्राचीन देवल ग्राम मेरी जन्मभूमि है।
जहाँ प्रक्रति के विस्मयकारी दृश्य देखने को मिलते हैं, जहाँ महागर्तो में नदियों का भीषण घोष श्रवित होता है, जहाँ प्रक्रति के अपरिमित रूपों में विविध दृश्य देखने को मिलते हैं। जहाँ बाँज, बुराँश, पांगर, शाल, खैर, अँगू-अँय्यार, काफल, कनेर, वन्य प्रान्त हैं,जहाँ ब्रह्म कमल, बहुमूल्य वनोषधियाँ, मृतसंजीवनी जड़ी-बूटियाँ उगती हैं, जहाँ कस्तूरामृग आदि वन्य जीवों का निर्भय विचरण होता है,जहाँ सीढ़ीनुमा खेतों की ढालों में हरियाली लहलहाती है।
वही देवभूमि की पुण्य धरती मेरी मातृभूमि है। जहाँ प्रकृति के नाना रूपों में इस धरती का श्रृंगार होता है,वही मेरी काव्यमयी भूमि है।
हमारा उदेश्य उत्तराखण्ड़ की सुंदर एवं रमणीय स्थान, ऐतिहासिक स्थान ,धर्म स्थलों की तस्वीरों के साथ और उन से जुडी जानकारी को दिखाना ताकि जो लोग पहाड़ से बाहर रह रहे हो और जिनका जन्म वहाँ नही हुआ है। उन लोगो को अपनी संस्कृति से परिचित कराना।
जुड़िये अपनी संस्कृति से हमारी संस्कृति हमारी धरोहर है !
आप अपनी बचपन से जुडी यादें एवम लोक संस्कृति, कला व गीत-संगीत से जुड़े बिषयों पर अपनी पोस्ट को हमारे इस पेज के साथ साँझा कर सकते है !
श्याम जोशी !
( सर्वाधिकार सुरक्षित )

गड़ुए की धार

कुछ मनभावन रस्मों से होता है विवाह अपने पहाड़ो में।
घर परिवार ही नही पूरा गांव लगता है निबाह में।।
एक ऐसी ही रस्म है - वो गड़ुए की धार।।
मानों सिमट गया हो उसमें माँ की ममता।
पिता का दुलार ,
मनभावन रस्मों से होता है विवाह अपने पहाड़ो में।
एक नन्हीं सी कली ना जाने कब ईतनी बड़ी हो जाती है।।
छोटी- छोटी ख्वाहिशों के लिए जिद करके रोने वाली।।
सबकी ख्वाहिशों के समेटे आज।।
कुछ नए रिश्तों में बधने को बैठ जाती है।।
मंडप में,
माँ- बाबू वो जो एक आँसू भी ना गिरने देते थे ।।
उस गड़ुए की धार के साथ आज- मानो।।
सब कुछ बहाने को है तैयार खड़े होते।।
और लड़की देखती है तो बस उस ।।
गड़ुए की धार को,
गड़ुए की धार तो सबको दिखती है ।।
बस नही देखती है तो मासूम के आँसुओ की धार।।
जो निरंतर बहते रहते है उसके पिछोड़े की आड़ में
कुछ मनभावन रस्मों से होता है ।।
विवाह अपने पहाड़ो में,
कुछ ऐसी ही रस्मे है हमारे पहाड़ो में जो मन को भाव बिभोर करती है , जब भी कभी देखती हूँ इन पलों को याद आती है माँ की गोद और पापा के कंधे जहाँ से मेरी दुनियाँ सुरु हुई थी एक तरफ जहाँ माँ की गोद में वो प्यार मिला जिसकी में ज़िन्दगी भर कर्जदार हूँ और एक तरफ पापा का वो दुलार मिला जिसे में कभी खोना नही चाहती हूँ।
आइये आप भी अपने यादों को ताजा कीजये इस कविता और मेरे मन की बातों के साथ।
''दियो- दियो बोज्यू गड़ुए की धारा मेरी ईजू ना रो नि मारा डाडा वे''
कविता
मीनाक्षी बिष्ट
( सर्वाधिकार सुरक्षित )


Ranikhet

आइए एक नजर डालिये अपने मात्रभूमि में !


बुलाती है ये हवाएँ ये घटाएं

बुलाती है ये हवाएँ तुम्हें।
ये घटा बिछाती है फिजायें।।
ये पहाड़ियों में ये लहराती हवाएँ।
मन को प्रफुलित्त करती है बादलो की घटाएं।।
कभी आईये तो सही इन पहाड़ी गुफाओं में।
अपने आप को रूबरू करए इन खुली हवाओं में।।
ले जाइए अपने मन को ओस की बूंदो में।
छोड़ दीजये फिर चेतना की धूप में।।
ले जायेगा तुम्हें तुम्हारा मन।
अंतस के गहन सन्नाटो में।।
फिर धुप की तरह चमकने।
लगेगा ये मन उस पहाड़ी की चट्टानों में।।
जब कभी मन बेचैन सा हो तो ले चलये उन पहाड़ियों की और जहाँ एक असीम शांति का एहसास होता है।
कविता
श्याम जोशी
( सर्वाधिकार सुरक्षित )

महारुद्रेस्वर मंदिर


प्राचीन देवालयो के अवशेष तथा सम कालीन सहत्र शिवलिंग एवं खंडित प्रतिमा इस स्थल पर बिधमान मान है। यहाँ के आस -पास का वातावरण बुहत ही शांत है और साथ में बांज का जंगल हमेशा हरा -भरा रहता है। मानो ऐसा प्रतीत होता है प्रकति ने सब कुछ यही ला कर रख दिया हो !
हर साल मंदिर में श्रावण के महीने में शिव पुराण का आयोजन किया जाता है आस -पास के गांव वाले मिलजुल कर महा शिव पुराण कथा कराते है !
ऊपर मंदिर को जाते समय आप को एक धारा नजर आयेगा जिसमें गर्मी के समय ठंडा पानी और सर्दी के समय गरम पानी आता है। और निचे नदी के किनारे आप को पनचक्की (घट )मिलेगा जो अभी भी चलता है।
इस मंदिर से मेरी बचपन की बुहत सारी यादें जुडी है, बचपन से मुझे मेला देखना बड़ा पसंद था जिसे हमारे पहाड़ो में "कौतिक" कहते है। शिव रात्रि के कौतिक देखने जाते थे हम सब लोग और दूर दारज गावों से भी यहाँ आते है। उस समय हमें घर से २० या ३० रूपये दिए जाते थे कौतिक देखने के लिए अब हमें उसमें से अपने लिए चश्मे ,सीटी,इत्यादि चीजे लेनी भी होती थी और जलेबी या फिर आलू के गुड़्के भी खाने होते थे इन रूपये में हमारे खिलोने भी और खाने का भी हो जाता था आज बस तो एक पहाड़ो की यादें बन कर रह गयी है।

देवो के देव महादेव हर हर महादेव आप की महिमा है निराली !

-श्याम जोशी !
चित्र सोजन्य - श्याम जोशी (बल्साखूंट अल्मोड़ा )

The reality of village

गाँव हक़ीक़तों को उजाड़ कर हम चले ख्वाबों के शहर बसाने।
वो ख्वाबों का शहर जहाँ हम सब है एक दूसरे से बेखबर ।।
श्याम जोशी !
( सर्वाधिकार सुरक्षित )

पहाड़ की नारी

आज अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस है क्यों ना हम अपने पहाड़ की शान और पहाड़ की जान उनकी बात करें। 

जब भी पहाड़ो की तरफ को जाता हूँ मुझे इस तरह की कोई तस्वीर मिलती है में मौका नही छोड़ता इस तरह की तस्वीरों को अपने कैमरे में कैद करने के लिए में इनके काम और जब्जे को दिल से सलाम करता हूँ।

यही है पहाड़ की असली ज़िन्दगी शायद आप सब ने देखा होगा असोज के समय में जब ये लोग सुबह ५ बजे घास काटने निकल जाते है और शाम के ७ बजे इन लोगो को घर नसीब होता है ये सब अपना खाना पीना सुबह ले कर निकल पड़ते है। कई बार घास काटते समय इनलोगो का हाथ भी कट जाता है ये फिर भी अपना काम को नही छोड़ते है।

सबसे बड़ी बात मुझे ये अच्छी लगती है हमारे पहाड़ी महिलाओं की ये हर समय खुस रहते है आप सभी ने भी देखा होगा जब कभी कोई हमारी पहाड़ी माताएं पखौट में घास काटती है अधिकतर माताएं पहाड़ी गीत गुनगुनाते है और उनकी आवज सुनने के बाद तो लगता है कुछ देर यही खड़े रहकर गीत का आनन्द लिया जाए तो उन गीतों में से एक गीत ये भी है।

पारे के भिड़ा कौछे जाणीया बटोवा रे,
म्यारा ऊन्होणी एक लि जै दे जवाबा।।

श्याम जोशी