चैतक महीण लागते ही सब दीदी भूली आश लाग रूनी रति बाटिक ब्याव तक बाट देखण लाग रूनी
के पत आज ले मेरी ईज या म्यर भै या म्यार बाबू आले मकै भेंटण मकै भिटोई दिहु यह एक ऐसा त्यौहार है जो मुझे बेहद अच्छा लगता है।
आज बहन का मन उदास है चैत का महीना शुरू हो चूका है गांव में सबकी भिटोई लगभग आ गयी है वो भी आस लगी है मेरी मैती लोग आयंगे मुझे भेट्ने शायद ईजा ही आएगी भाई तो हुआ मेरा वो दूर कही परदेश में है उसका आना तो मुमकिन नही है यह सोचते -सोचते आज सोमवार का वो दिन आ ही गया जब मेरी ईजा एक झोला और एक बड़ा सा बेग सर में रख कर रोड से निचे को आ रही है।
बहन जाती है रास्ते में ईजा का बेग लेने और दोनों आपस में( ढ़कोई- भिटोई) मेलमिलाप करते है ख़ुशी के आँसू को दोनु नही रोक पाते है तभी ईजा कहती है च्यलि सार बात यतिकी पूछ लेली या घर जै बेर
तो च्यलि अपने ईजा का झोला और बेग उठा कर दोनु घर पहुँचते है।
च्यलि - वो ईजा भौते देर लगे दे मैके आऊ देण में किले घर में सब ठीक ठाक छु बाबू ठीक छन्ना और म्यर भै फ़ोन उन्हाल घरे।
ईजा - होइ च्यलि सब ठीक छन त्यर बाब ले त्यर भै के करू बण मुश्किल टेम होछ आज मैके में तिहि के नि ले रे च्यलि।
च्यलि- होइ आब केले हल तुमके टैम म्यर लिजी आब में पराई च्यलि जो हे गयी हूँ।
ईजा- च्यलि त म्यर झोल के खाली करदे।
च्यलि- होइ ईजा ले तू चाहा पे में देख्नु धे के -के ले रे म्यरि ईज मुहुके ( एक लिफ़ाफ़ में एक साडी, एक गुड की भेलि , खूब सारी पूरिया , खजुरे , चावल के पुए, और एक मिठाई का डिब्बा, और कुछ पुन्तुरो अखरोट के दाने ) वो ईजा तू इदुक चीज कैले लछि।
ईजा-च्यला ये महीण च्यलि बेटीक हूँ और बादाम त्यर दगडी ले देखला और फिर सार गों भिटोई ले देलि।
च्यलि- होइ ईजा ठीक सही कुणछी इतने में महाव माथि में रखा फ़ोन बजता है और दूर कही परदेश से आवाज आती है भाई की जो चाह कर भी उसे भिटोई देने नही आ सकता है और अपनी बहन से कहता है भूली तू फिकर नि कर जब ले में घर ऊले तुके भेटहु जरूर ऊल तू उदास झन होइ मेरी भुलु भाई से बात करते हुए बहन अपने आँसू को पोछती पोछती कहती है भुला तू आपण ध्यान धरए हां।
''त्यर घर देश में उले में प्रीत को रीत निभुले में उदास ना मेरी भुलु त्यर घर भिटोई लिूले नि तुकनि याद सतून हनेली आपण मैत वालो में निभुले रीत वे भूले भाई बेणी वालो की बासी भाते कड़ाही तेरी बैठ संग बेर खुले में''
यह गीत सुनकर सचमुच रोना आता है बुहत प्यारा है आप को यह लेख कैसा लगा जरूर बताएगा और अपनी यादों को भी साँझा करएगा।
जैसे हमें कुछ साल पहले चिठ्ठी का बेसब्री से इंतज़ार होता था ऐसे ही एक विवाहित लड़की को भिटोई का इन्तजार होता था पर अब ये रीति रिवाज खत्म होते जा रहे है शायद हम सब भूलते जा रहे है हमें अपनी संस्कृति को भूलना नही चाहये !
श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
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