Tuesday, March 31, 2015

कोई कहे उत्तराखंड कोई कहे उत्तरांचल

नजरो से न हटने वाला नजारा।
ऐसा ही है  उत्तराखंड हमारा।।
उत्तराखंड
सब के दिलों में समां जाने वाला।
यह पहाड़ है कितना निराला।।

कोई कहे उत्तराखंड कोई कहे उत्तरांचल।
यह तो है हमारा देवो का देवांचल।।

कितने हरे कितने भरे लगते है ये जंगल ।
सबके मन को प्रफुलित कर देते है ये वन।।

श्याम जोशी अल्मोड़ा
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Friday, March 27, 2015

वीर सपूतो कोटि कोटि प्रणाम


23 मार्च अमर शहीद दिवस पर उत्तरांचल दीप पर प्रकाशित मेरी यह कविता मेरे देश के अमर शहीदो को समर्पित है।

उत्तरांचल दीप- 23मार्च 2015

उत्तरांचल दीप- 23मार्च 2015वीर सपूतो कोटि कोटि प्रणाम !

युवा कुछ तुम भी थे,युवा कुछ आज भी हैं
बात बस सोच की है और बहुत ही अफसोस की है
तुमने देश की खातिर परिवार छोड़कर जीवन त्यागा
आज युवा परिवार के लिये देश छोड़कर देशभक्ति त्याग रहे।।

मेरी नजर में कलंकित हो रही तुम सबकी शहादत
नेता अफसर सब बन गए भ्रष्ट और यह बन गयी इनकी आदत
आज शहीद दिवस पर करके तुम सबको नमन
करना नही छोडेंगे ये अपने कुकर्म
भ्रस्टाचार इनकी रग रग में बसा आज किसी के दिल में तुम सा देशभक्ति का भाव नही रहा।।

शहादत से पहले कुछ यूँ  शायद तुमने सोचा होगा
शहादत के बाद हिंदुस्तान हमारा जगेगा उठेगा और मुस्कुराएगा
जागा भी उठा भी और मुस्कुराया भी
पर तुम सी शहादत देने वाला फ़िर कोई नही आया
फ़िर कोई नही आया फ़िर कोई नही आया फ़िर कोई नही आया।।

माँ भारती के वीर सपूतो #भगत_सिंह #सुखदेव और #राजगुरू को मेंरा शत् शत् नमन।

मीनाक्षी बिष्ट
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Wednesday, March 25, 2015

कुछ दिन तो गुजारो अपने पहाड़ में


कुछ दिनों के लिए ही सही अपनों के संग गुजारो पहाड़ में।
जो छूट गए कुछ अपने लोग उनको मिलने आओ इस पहाड़ में।।

बांज के पेडों की जड़ो का पानी पीकर तो देखो पहाड़ में।
ठंडी हवाओं के साथ खुले आसमान में आओ तो सही पहाड़ में।।

पैत्रिक घर में कुछ दिनों के लिए निवास करो मेरे अपने पहाड़ में।
अपनी जमीन की मिटटी के साथ जुड़ो इस अनोखे पहाड़ में।।

अपने बच्चों को भी बताओ हमारा भी घर यही हुआ करता था पहाड़ में।
अपने इष्ट देवों को पूजने आओ अपने पुस्तैनी घर इस पहाड़ में।।

श्याम जोशी अल्मोड़ा
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Tuesday, March 24, 2015

हरिद्वारा में मनसा दुनगिरी में दुर्गा नैनीताल में नैना अल्माड़ में नन्दा

हरिद्वारा में मनसा दुनगिरी में दुर्गा 
नैनीताल में नैना अल्माड़ में नन्दा।

almor a,haridwar ,nanitaal ,dunagiri हिटो रे भक्तो हरिद्वार जै उले
माता मनसा की हम पूजा कर उले 
ओ खुश होली माता दी देलि वरदाना 
हमर जीवन है जाले महाना।

हरिद्वारा में मनसा दुनगिरी में दुर्गा 
नैनीताल में नैना अल्माड़ में नन्दा।

सुखमा दुःखमा दुःखमा सुखमा। 

हिटो रे भक्तो दुनगिरी जै उले
दुर्गा माता की हम पूजा कर उले 
ओ खुश होली माता दी देलि वरदाना 
हमर जीवन है जाले महाना।

हरिद्वारा में मनसा दुनगिरी में दुर्गा 
नैनीताल में नैना अल्माड़ में नन्दा।

सुखमा दुःखमा दुःखमा सुखमा। 


हिटो रे भक्तो नैनताल  जै उले
नैना माता  की हम पूजा कर उले 
ओ खुश होली माता दी देलि वरदाना 
हमर जीवन है जाले महाना।

हरिद्वारा में मनसा दुनगिरी में दुर्गा 
नैनीताल में नैना अल्माड़ में नन्दा।

सुखमा दुःखमा दुःखमा सुखमा। 

हिटो रे भक्तो अल्माड़  जै उले
नन्दा माता  की हम पूजा कर उले 
ओ खुश होली माता दी देलि वरदाना 
हमर जीवन है जाले महाना।

सुखमा दुःखमा दुःखमा सुखमा। 


हरिद्वारा में मनसा दुनगिरी में दुर्गा नैनीताल में नैना अल्माड़ में नन्दा 
अल्माड़ में नन्दा अल्माड़ में नन्दा अल्माड़ में नन्दा। 

         भजन 
श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
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Saturday, March 21, 2015

आप सभी को आपण गौं गाड़ म्यर पहाड़ की तरफ नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएं !

आप सभी को आपण गौं गाड़ म्यर पहाड़  की तरफ से सपरिवार विक्रम संवत 2072 नव सम्वत्सर एवम् नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएं !

  

शक्ति और उपासना की परंपरा हमारे देश में पुरानी है शक्ति को यहां माता कहा गया है। देवताओं को भी जब-जब शक्ति की जरूरत पड़ी उन्होंने देवी के रूप में ही उसका आह्वान किया। शक्ति की देवी के उन्हीं रूपों को मानव आज तक पूज रहा है।

चैत्र एवं आश्विन माह में ऋतु परिवर्तन की बेला में नौ-नौ दिन तक शक्ति की आराधना का परम पवित्र पर्व नवरात्र चलता है। इस दौरान घर-घर में मां दुर्गा की विशिष्ट पूजा होती है और स्थानीय देवालय तो देवी स्तुति से गूंजते रहते हैं। देवी के अधिकतर भक्त किसी न किसी शक्तिपीठ पर दर्शन के लिए अवश्य जाते हैं।

पुराणों के अनुसार उपपीठों के दर्शन-पूजन का भी अपना अलग महत्व है। उत्तर भारत में फैली हिमालय की उपत्यकाओं में शक्तिपीठों व उपपीठों की पूरी श्रृंखला है। आज दूर-दूर से इन स्थानों पर लोग मां दुर्गा के विभिन्न रूपों के दर्शन-पूजन के लिए आते हैं।

नौ देवियाँ है :-

jay ma bhgwati श्री शैलपुत्री -इसका अर्थ-पहाड़ों की पुत्री होता है।
श्री ब्रह्मचारिणी -इसका अर्थ-ब्रह्मचारीणी।
श्री चंद्रघरा -इसका अर्थ-चाँद की तरह चमकने वाली।
श्री कूष्माडा -इसका अर्थ-पूरा जगत उनके पैर में है।
श्री स्कंदमाता -इसका अर्थ-कार्तिक स्वामी की माता।
श्री कात्यायनी -इसका अर्थ-कात्यायन आश्रम में जन्मि।
श्री कालरात्रि -इसका अर्थ-काल का नाश करने वली।
श्री महागौरी -इसका अर्थ-सफेद रंग वाली मां।
श्री सिद्धिदात्री -इसका अर्थ-सर्व सिद्धि देने वाली।

तस्वीर - माँ भगवती (मेरे गांव )
जुड़ये अपनी संस्कृति से हमारी संस्कृति हमारी धरोहर है !


Tuesday, March 17, 2015

पहाड़क च्यलिक लिजी चैतक मैहण

चैतक महीण लागते ही सब दीदी भूली आश लाग रूनी रति बाटिक ब्याव तक बाट देखण लाग रूनी
के पत आज ले मेरी ईज या म्यर भै या म्यार बाबू आले मकै भेंटण मकै भिटोई दिहु यह एक ऐसा त्यौहार है जो  मुझे बेहद अच्छा लगता है।

आज बहन का मन उदास है चैत का महीना शुरू हो चूका है गांव में सबकी भिटोई लगभग आ गयी है वो भी आस लगी है मेरी मैती लोग आयंगे मुझे भेट्ने शायद ईजा ही आएगी भाई तो हुआ मेरा वो दूर कही परदेश में है उसका आना तो मुमकिन नही है यह सोचते -सोचते आज सोमवार का वो दिन आ ही गया जब मेरी ईजा एक झोला और एक बड़ा सा बेग सर में रख कर रोड से निचे को आ रही है।


बहन जाती है रास्ते में ईजा का बेग लेने और दोनों आपस में( ढ़कोई- भिटोई) मेलमिलाप करते है ख़ुशी के आँसू को दोनु नही रोक पाते है तभी ईजा कहती है च्यलि सार बात यतिकी पूछ लेली या घर जै बेर
तो च्यलि अपने ईजा का झोला और बेग उठा कर दोनु घर पहुँचते है।

च्यलि - वो ईजा भौते देर लगे दे मैके आऊ देण में किले घर में सब ठीक ठाक छु बाबू ठीक छन्ना और म्यर भै फ़ोन उन्हाल घरे।

ईजा - होइ च्यलि सब ठीक छन त्यर बाब ले त्यर भै के करू बण मुश्किल टेम होछ आज मैके में तिहि के नि ले रे च्यलि।

च्यलि- होइ आब केले हल तुमके टैम म्यर लिजी आब में पराई च्यलि जो हे गयी हूँ।

ईजा- च्यलि त म्यर झोल के खाली करदे।

च्यलि- होइ ईजा ले तू चाहा पे में देख्नु धे के -के ले रे म्यरि ईज मुहुके ( एक लिफ़ाफ़ में एक साडी, एक गुड की भेलि , खूब सारी पूरिया , खजुरे , चावल के पुए, और एक मिठाई का डिब्बा, और कुछ पुन्तुरो अखरोट के दाने ) वो ईजा तू इदुक चीज कैले लछि।

ईजा-च्यला ये महीण च्यलि बेटीक हूँ और बादाम त्यर दगडी ले देखला और फिर सार गों भिटोई ले देलि।

च्यलि- होइ ईजा ठीक सही कुणछी इतने में महाव माथि में रखा फ़ोन बजता है और दूर कही परदेश से आवाज आती है भाई की जो चाह कर भी उसे भिटोई देने नही आ सकता है और अपनी बहन से कहता है भूली तू फिकर नि कर जब ले में घर ऊले तुके भेटहु जरूर ऊल तू उदास झन होइ मेरी भुलु भाई से बात करते हुए बहन अपने आँसू को पोछती पोछती कहती है भुला तू आपण ध्यान धरए हां।


''त्यर घर देश में उले में प्रीत को रीत निभुले में उदास ना मेरी भुलु त्यर घर भिटोई लिूले नि तुकनि याद सतून हनेली आपण मैत वालो में निभुले रीत वे भूले भाई बेणी वालो की बासी भाते कड़ाही तेरी बैठ संग  बेर खुले में''

यह गीत सुनकर सचमुच रोना आता है बुहत प्यारा है आप को यह लेख कैसा लगा जरूर बताएगा और अपनी यादों को भी साँझा करएगा।


जैसे हमें कुछ साल पहले चिठ्ठी का बेसब्री से इंतज़ार होता था ऐसे ही एक विवाहित लड़की को भिटोई का इन्तजार होता था पर अब ये रीति रिवाज खत्म होते जा रहे है शायद हम सब भूलते जा रहे है हमें अपनी संस्कृति को भूलना नही चाहये !



श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
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Monday, March 16, 2015

२ रोटा खातिर घर बार ले छोड़ दी

पहाड़ आदिम कि ज़िन्दगी कस हगे पे यो आज,
ना पहाड़ कक रैगो ना परदेश कक रैगो
२ रोटा खातिर पहाड़ छोड़ बेर परदेश गयो
shyam joshi homeईज छोड़ी बाब छोड़ा नान तिन छोड़ा
घर बार ले छोड़ दी
यो नि समज की भोल के हल
कस हल क़े बेर कैली नी सोचि
आब यो घर ले बांज हेगो का जानु
का रोला म्यर नान तिन
के खाल म्यर नान तिन
महंगाई मार ख़ारम् यो पड़ रे
कसिक करनु यो बांज घर के आबाद
सही कोछी पार बखाई नन्दू दा ले
नि - नि जा रे रनकरा भ्यार
भोल के यो घर आले और
यो बाट आले के कोछी कोले काकल
आज मैके उ दिन याद एगेई

श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
( सर्वाधिकार सुरक्षित )

मेरे लिए तो पहाड़ मेरे माँ का आंचल है

मेरे लिए तो पहाड़ मेरे माँ का आंचल है

बुरांस के फूलो की सौगंध सब को भाती है।
बेड़ू यहाँ पर बारोमास पकते है।।
PAHAD SHYAM JOSHI

चैत में काफल सब के मन को लुभाते है।
हिसालू के टूटे मनके कोई नही भूलता।।

क़िलमोड़ी और घिंघारू का चटपटा स्वाद यहाँ का निराला है।
भट की चुणकाणी और झुंगर का भात  भुला नही जाता है।।

मूली-दही डाल के साना हुआ नीबू पहाड़ जाने को बेचैन करता है।
ईजा के हाथ की मडुवे की रोटी हमेशा दिल में रहती है।।

और वो पालक का कापा खाने को फिर जी करता है।
 ढिटालू की बंदूक फिर बचपन को बुलाने में मजबूर करती है।।


मेरे लिए तो पहाड़ मेरे माँ का आंचल है



श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
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मैं पहाड़ बुलाण रोऊ

किले गया तुम या बाटिक
के बिगाड़ मैल तुमर
मैले तुमारा नान तिन सेथा
सेथी पायी बेर ठुल करा

आपण खुटा में हिटनी बाँड्या
किले गया तुम या बाटिक
के बिगाड़ मैल तुमर
ताजी हाव तुमको या मिली

ठंड पाणी याक भल लागु
फिर ले तुम या बाटिक गया
किले गया तुम या बाटिक
के बिगाड़ मैल तुमर
वाक तुमके सड़ी फल भल लगानी

याक बोटोवाक काफूव तुम भूल गच्छा
के बिगाड़ मैल तुमरहर मौसम में तुमको ताज़ी फल ख्वउनु
किले गया तुम या बाटिक मैके छोड़ बेर
के बिगाड़ मैल तुमर,

गर्मी दिना जब तुम शहरो में ,
गरम ले पाका छा तब तुमको में याद उनु
फिर कुछा हिटो दुइ दिन पहाड़ जे उनु
किले गया तुम या बाटिक

के बिगाड़ मैल तुमर
दुइ दीना ली जी तुम या उछा
फिर चढ़ वाई उड़ बेर फर ने झछा
वा जे बेर फ़ेकबुकम फोटो डाली बेर

आपन प्राण झुरा छा
किले गया तुम या बाटिक
के बिगाड़ मैल तुमर

श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
( सर्वाधिकार सुरक्षित )

वीरान पड़ी घर की चौखट

वीरान पड़ी घर की चौखट
खुशियों का जमावड़ा
वीरान पड़ी घर की चौखट लगा रहता था जहां
चले गए हैं
जो नाम लेते तक नहीं
फिर से लौट आने का
मुरझाती चेहरे की झाइयाँ डबडबाती माँ की आँखे
खो चुके हैं जो अपने यहाँ से बुला रहे हैं
अपनों को जो हो चुके हैं पराये
अब तो आ जाओ लोट के
अब तो मेरी इन आँखों के आँसू भी सुख चुके है
ये आँखे अब तुम्हारा रास्ता निहारती है।।
श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
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गांव की शादी

आज भी कभी गांव की शादी में जाता हूँ तो बचपन के दिन बड़े याद आते है आज जब भी कभी देखता हूँ वो फल की टोकरी ज़िन्दगी बचपन में चली जाती है।

कोई -कोई शादी में तो फल की टोकरी खाली आती थी दूल्हे के घर और आज भी उठा लेता हूँ उस में से एक दो फल कहते है न बचपन कभी भुला नही जाता है सही कहा है अक्सर तब बड़ा मज़ा आता था जब शादी रात की हो और दूल्हे वालो को रहने के लिया जहाँ जगह दी जाती है ये सब सामान वही रखा होता है और फिर हम क्या करते थे रात के समय में जैसे ही लाइट ऑफ होती थी टूट पड़ना फल के टोकरी पर सारी खत्म कभी -कभी तो जब कोई वहाँ गांव के बड़े लोग पहरे के लिए बैठे होते थे तो वो हमें लाइट बंद नही करने देते तो हम लोग बल्ब पर निशाना लगाते और बल्ब की कहानी खत्म फिर जब सुबह होती तो सब से पहले दूल्हे के पिता (बुबु ) का चिलाना ओरे ये नान तिनालं सब छोई टोकरी खालि कर हली रे और हम वहाँ से रफू हो जाते थे।

गांव की शादीशायद अभी कोई इस को पड़ेगा तो गाली मत देना वो मेरा प्यारा बचपन था वैसे देखने में बुहत सीधा था बस हरकते बड़ी खराब थी वैसे मैने एक शादी में दही चोरी कर के भी खायी है हुआ यु सब्जी में बहुत मिर्च थी और मुझे उनकी खिड़की में बहार से दही रखी मिली गया खा के आया।

अब चाए आप मुझे अपनी शादी में बुलाओ या न बुलाओ वो आप की मर्जी है पर ये मेरी बचपन की हरकते थी।

आप किसी ने भी की है इस तरह की हरकते अपने बचपन में तो शेयर कीजयेगा !
श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
( सर्वाधिकार सुरक्षित )

हमारे संस्कृति के रिवाज

हमारे संस्कृति
के रिवाज़ों में एक रिवाज ये भी है। जो मन को भावुक करता है। ऎसे तो मुझे अपनी यहाँ की शादी देखनी बेहद पसंद है पर कुछ पल बुहत ही मन को भावुक करने वाले होतें है। उन्हें देख कर आँखे नम हो जाती है। उस में से एक ये पल भी है जो भी इसको देखता है जरूर उसकी आँखों में पानी आता होगा। पिछली पोस्ट में मैने अपनी शरारतें बतायी थी पर में रिश्तो को समझता भी हूँ क्यों की अब थोड़ा बड़ा हो गया हूँ। पर बता दू मन से अभी बच्चा हूँ अच्छा लगता है आप लोगों का सहयोग मिलता है इसी तरह आगे भी बना रहेगा आशा करता हूँ।
गडुवकी धारा
दियो दियो बोज्यो - दियो दियो बोज्यो गडुवकी धारा !
मेरी ईजू ना रो नि मारा डाडा वे दूध की धार कुश क झाड़ा गडुवकी धारा।

श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
( सर्वाधिकार सुरक्षित )

बुहत याद आता है पहाड़

बुहत याद आता है पहाड़
बुहत याद आता है वो पहाड़।
जो छोड़ आया में अपना पहाड़
बीता पहाड़ में बच्चपन मेरा
बड़ा हुआ तो छोड़ आया पहाड़ में
बुहत याद आता है वो पहाड़।।

वो पहाड़ का सौन्दर्य।
वो पहाड़ की प्राकृतिक छटा
बुहत याद आता है वो पहाड़
जो छोड़ आया में अपना पहाड़ ।।

वो पहाड़ के बार-त्यौहार।
वो पहाड़ के हिसाव-किलमोड़
वो पहाड़ की कोयल मधुर ध्वनि
बुहत याद आता है वो पहाड़
जो छोड़ आया में अपना पहाड़।।


श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
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गौल्देयो

गौल्देयो
गौल्देयो देवता की पूजा हमारे पहाड़ में गर्मी के मौसम में गौल्देयो देवता पूजा जाता हैं शायद आप लोगों को भी पता हो इसके बारे में जब भीसण गर्मी पड़ती है तब यह पूजा करायी जाती है। सारे गांव के जो ग्वाले होते है जंगल में जा कर जहाँ भी गौल्देयो देवता का मंदिर होता है वहां पर पूजा होती है पूजा में पूए, खीर इत्यादि बनते है। कहा जाता है इस पूजा को करने के बाद बारिश जरूर होती है ,और ये सच भी है मैने भी देखा है अपने आँखों से और कई बार हमारे बुजर्गो ने भी बताया हम लोगों ने अपने समय में बुहत बार यह पूजा की है।


श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
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बचपन की शरारतें

बचपन की शरारतें
दगडियों पिछले साल की याद की एक बार फिर ताजा कर रहा हूँ। पिछले साल अगस्त के महीने में घर गया था गांव में भागवत कथा थी। बुहत मज़ा आया और इन दिनों गांव में ककड़ी काफी होती है। कथा के समापन दिवस पर बुहत जोर की भूख ने परेशान कर दिया क्यों की उस दिन लंगर होता है।

 खाने का समय था ४ बजे के बाद तो भूख से बेहाल हो रहा था कुछ साथी और भी थे वो सब अल्मोड़ा से थे मैने सुबह अपने ताई के यहाँ ककड़ी देखी थी और ककड़ी काफी हरी और बड़ी थी सारे लोग मंदिर में ब्यस्थ थे हम गए नीचे और ककड़ी तोड़ी आराम से खायी भांग के नमक के साथ और सब से बड़ी मजेदार बात यह थी जिनके घर से ककड़ी तोड़ी उनके ही घर पर बैठ के खायी बुहत मज़ा आया मानों ऐसा लगा ज़िन्दगी फिर उस बचपना में चली गयी हो कुछ दिन बाद फिर घर जा रहा हूँ ककड़ी खाने देखता हूँ इस बार किस की ककड़ी पर नज़र जाती है।

आप लोग भी गांव से जुडी हुई यादोँ को ताज़ा करे और इस मंच पर साँझा करें!

श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
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मुक्तेश्वर उत्तराखंड

कुमाऊं की पहाड़ियों में बसा मुक्तेश्वर उत्तराखंड की एक खूबसूरत जगह जहाँ जा कर आप को जन्नत का आभास होगा। अल्मोड़ा से मुक्तेश्वर की दुरी ३२ किलोमीटर है। यहाँ का वातावरण हर मौसम में लग- भग ठंडा रहता है। जैसा की मैने वहाँ पर लोगोँ को देखा हल्के ऊनी कपड़े पहने हुए थे। और आस -पास में देवदार के जंगल इस जगह की खूबसूरती को दोगुना करते है। वैसे तो पूरा मुक्तेश्वर ही देखने लायक है।जहां जाएंगे वहां ऐसा लगेगा मानो प्रकृति अपनी गोद में बिठाकर लोरी सुनाने को आतुर हो। मुझे यहाँ जा कर प्रकति का वास्तविक आभास हुआ ।

mukteshwar
पहाड़ी पर बने शिव मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 100 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं और साथ में ही ५० मीटर की दुरी पर एक चौली की जाली है जिस का नाम भी पहली बार सुना और देखी भी पहली बार वहाँ पर काफी बड़े -बड़े विशाल काय पत्थर है। वहाँ के लोगोँ से जब मैने पूछा इस पत्थरो के बारे में तब मुझे बताया गया। यहां देवी और राक्षस के बीच युद्ध हुआ था। ये एक पहाड़ की चोटी है जिसकी सबसे ऊपर वाली चट्टान पर एक गोल छेद है। कहा जाता है कि अगर कोई निःसंतान स्त्री इस छेद में से निकल जाए तो उसे संतान की प्राप्ति होती है। पहाड़ की चोटी से आस -पास के पहाड़ो का सुंदर नजारा देखने को भी मिलता है।
 मंदिर से निचे जाते समय एक रिसर्च इंस्टीट्यूट "आईवीआरआई" (इंडियन वेटरनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट ) है जहां जानवरों पर रिसर्च की जाती है। यह इंस्टीट्यूट सन्‌ 1893 में बनवाया गया था।


श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
( सर्वाधिकार सुरक्षित )

संघर्षपूर्ण जीवन

ये है मेरे गांव के हरे -हरे खेत धान झुंगर की गुड़ाई चल रही है। जब कभी शाम को इन खेतों के पास से गुजरो तो ऐसा लगता है जीवन है तो यही फिर कही नही गांव की सारी औरतों को यह काम करते हुए देखकर बड़ा अच्छा लगता है। देखा जाय तो सबसे कठिन जीवन पहाड़ में औरत का है घर का काम भी और बाहर (बंड) का काम फिर भी ये लोग सारा काम बड़ी आसानी से कर लेते है वैसे तो अब पहले जैसा नही रहा फिर भी वहाँ का जीवन नारी के लिए
संघर्षपूर्ण जीवन
संघर्षपूर्ण है ।

कभी कभी -कभी ऊपर पहाड़ी पर बैठ के देखता हूँ इन लोगों को काम करते हुए तो मन बड़ा बेवस सा हो जाता है।

एक शब्द में कहु तो अपनी पहाड़ की माताओं के लिये !

जय हो तुम्हारी ना धुप देखतो है ना बरसात ,
बस यही सोच कर निकल पड़ते हो सुबह-सुबह हमारी ज़िन्दगी की यही है बात।

श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
( सर्वाधिकार सुरक्षित )

चौमू देवता

वैसे तो हर गांव के अंदर एक चौमू देवता का मंदिर होता है। कुँमाऊ में एक ही मंदिर है जो द्वारसौं के बीच है। द्वारसौं से काफी उँची पहाड़ी पर यह मंदिर बना है। रोड से ऊपर को पैदल मार्ग चलना पड़ता है आस -पास बुरांस और चीड़ के जंगल और ऊपर पहाड़ी में जा कर आप को हिमालय के दर्शन हुंगे में यहाँ २ या ३ बार गया हूँ। ऊपर पहाड़ी पर जा कर ऐसा लगता है आप हिमालय को छूने वाले हो चौमू के मंदिर में सैकड़ों घंटे चढ़ाये जाते हैं। लिंग में दूध डाला जाता है।
चौमू देवताजिनकी गाय व भैंसे गाबिन होती है वो लोग आराधना करते है यहाँ पर और जब जीते बच्चे गाय-भैंस के हासिल करते हैं। फिर लोग यहाँ आ कर दूध चढ़ा के जाते है। जिसे पहाड़ी में कहा जाता है ठेकी दीण छू चौमू वक मंदिर और यहाँ पर काफी तादाद में लोगों की भीड़ लगी रहती है दूर -दूर गाँवों से लोग आते है।

एक खास बात यहाँ पर जब गाय बछड़ा देती है उसके १० दिन बाद हे दूध चढ़ता है उसे पहले नही और प्रातः कालीन के समय में चढ़ाया जाता है।

श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
( सर्वाधिकार सुरक्षित )

बचपन

बचपन


हम कितने भी बड़े क्यों ना हो जाये बचपन के दिन हमेशा हमारी यादों में ज़िंदा रहते है। वो दिन जब हम बेफिक्री से यहाँ वहा घुमा करते थे ना घर की चिंता ना बाहर की हमारे खेल थे की खत्म होने का नाम नही लेते थे वो कच्चे पेड़ो पर चढ़ना ना गिरने की फिकर ना घर की डर फिर इतवार के दिन दिन भर खेतो में क्रिकेट मैच खेलना एक खेल से मन भरा तो दूसरा खेल याद आया लुकी छुपी का खेल मुझे हमेशा पसंद होता था ये खेल घर वालों से चोरी कर -कर के खेलते थे खेतों में या पहाड़ो में जा कर फिर गर्मियों की छुटियो में घर से भाग जाना दोहपर की धुप में ये वो दिन थे जब हर कांच का टुकड़ा हमें खलने की चीज लगता था और रास्ते पर हर पत्थर को ठोकर मारने के लिए हमारे पावं खुद बे खुद उठ जाते थे।

वो बचपन का गीत जो मुझे आज भी बेहद पसंद है!

"पोशम पा भई पा १०० रूपए की घड़ी चुराई अब तो जेल  में जाना पड़ेगा जेल  की रोटी खानी पड़ेगी "

जहाँ पर भी रेत दिखा वहा पर छोटा सा घरोंदा बना के एक दूसरे की शादी करना या फिर स्कूल से घर आने के बाद आँगन में बैठ कर चोर सिपाही का खेल खेलना तब तो यु लगता जैसे चोर की पर्ची आयी तो लगता था चोर बन गए या सिपाही आया तप पुलिस बन गये वो तितलियों के पीछे भागना या बादल पर किसी की तस्वीर देखना बचपन के ये खेल कोई नही भूलता बस जरा कभी - कभी यादें धुन्धली पड़ जाती है।

वक्त के साथ ये सारे खेल गुम होते जा रहे है आज कल के विडियो गेम्स या कंप्यूटर पर गेम्स हो या मोबाइल पर हो ये सब देख के लगता है की उनका बचपन खो सा गया है दिन भर सोफे पे बैठ के कंप्यूटर पर चिपके रहना आज कल के बच्चो का यह प्रिय बन चूका है। पेड़ो से आम इमली, अमरुद तोड़ ख़ाने से जाय्दा पीज़ा बर्गर खाना अच्छा लगता है आमा बुबु की कहानी से अब अच्छी लगती है टोम एंड जरी की कहानी गिल्ली डन्डे छोड़ कर अब उनके हाथ में आ गए है कंप्यूटर के की बोर्ड और माउस प्रकर्ति से दूर हो गये है अब ये बच्चे तकनीकी भाषा ज्यादा समझते है नमस्कार की जगह गुड मॉर्निंग का जो प्रयोग करते है।

आइये आप भी अपने बचपन की यादों को ताजा कीजये !

श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
( सर्वाधिकार सुरक्षित )

ये किस्से ये कथायें किसको सुनाएं

Published by -23 दिसंबर उत्तरांचल दीप में प्रकाशित मेरी यह कविता जो मुझे बेहद पसंद आप लोग भी पढ़एगा जरूर !
ये किस्से ये कथायें किसको सुनाएं  
किसको को कहे किसको बताएं।।
 












Published by -23 दिसंबर उत्तरांचल दीप में प्रकाशित मेरी यह कविता जो मुझे बेहद पसंद आप लोग भी पढ़एगा जरूर !

Friday, March 13, 2015

फूल देई छमा देई, जतु कै दीछै उतुकै सही

सभी मित्रो को फूल देई छमा देई की हार्दिक शुभकामनाएं !

''फूल देई छमा देई, जतु कै दीछै उतुकै सही'' के त्यार और अपने बचपन की बात करू तो बुहत यादें जुडी है।  सुबह जल्दी उठकर नहा कर कुछ नए जैसे रंग बिरंगे कपडे पहनकर फिर आड़ू के पेड़ में चढ़कर बुहत सारे फूल तोडना या फिर घर के बगल में पीले प्योली के फूल तोड़कर अपनी थाली को रंग बिरंगी सजा कर निकल पड़ता अपने गाँव की तरफ और ये सोचते -सोचते कौन कितने पैसे देगा बस मुझे सब कुछ अच्छा लगता था जो उस समय चावल की जगह झुंगर देते थे बुहत गुस्सा आता था क्यों की मुझे उस समय झुंगर का भात और झोली बिल्कुल पसंद नही थी। 

में वैसे पूरा गांव तो नही घूमता था क्यों की मुझे नजर लग जाने वाली ठहरी तो अपने बिरादरों के यहाँ और कुछ लोगो के यहाँ से अपनों थाली को भर लाता था एक तरफ गुड चावल और कोई पैसे दे तो उसके यहाँ जरा ज्यादा फूल खेल लिए क्या करू बचपन हुआ ही इस तरह का घर आकर ईजा को कहने वाला हुआ ईजा मीठा हलवा मत बनाना तो ईजा कहने वाली हुई च्यला त्यारक दिन मिठ बंडू फिर कदिने आघिल पिछाड़ी बड़े दुव्ल त्यर लिजी। 

फूल देई छमा देई, जतु कै दीछै उतुकै सही।
दैणी द्वार भरी भकार तुम्हर देई बारमबार।।  
                     नमस्कार


मित्रों हमारे देव भूमि में त्यौहारो को ऋतुओं के अनुसार मनाया जाता  हैं ! यह पर्व जहाँ हमारी संस्कृति को उजागर करते हैं वहीं पहाड़ की परंपराओं को भी कायम रखे हुए हैं।

इस त्योहार का सीधा संबंध प्रकृति से है इस समय चारों ओर छाई हरियाली और नाना प्रकार के खिले फूल प्रकृति के यौवन में चार चांद लगाते हैं हमारी परम्परा में चैत्र माह से ही नव वर्ष शुरू होता है। 

 इस नव वर्ष के स्वागत के लिए खेतों में सरसों खिली है तो पेड़ों में फूल भी आने लगे हैं। चैत्र माह के प्रथम दिन बच्चे लोगों के घरों में देई फूल और चावल डालकर सुख-शांति की कामना करते हैं।

फिर उन्हें परिवार के लोग गुड़, चावल व पैसे देते हैं। और सायंकाल को चावल का हलवा भी बनाया जाता है।

श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
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Thursday, March 12, 2015

ईजा की आस

तेरी मुखडी आँखों मैं रिटी रे छै,
में आस लाग रुनु चल्या त्यर घर उणीकी,
धेइ बैठी बेर देखनु पटागण बैठी बेर देखनु,
तेरी मुखडी आँखों मैं रिटी रे छै,
म्यर च्यल घर आल कबेर,
के नी चेन मेके त्यर लाई,
बस तु आपण मुखडी देखा जा,
जब ले उनी त्यार ब्यार,
२ रोटा खातिर तिल घर बार छोड़ ,
रति उठनु तेरि फ़ोटो देखनु,
आँखों में आँसू भर उनी,
च्यला कब आले तू घर
मी त्यर बाट रोज देखनु
तिकें मेरी याद नि ओनी,
में तेरी आस लाग रई,
च्यला तु आले ना घर ,


श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
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सैम देवता

सैम देवता माना जाता है शिव भगवान का एक रूप और जहाँ तक देखा गया शिव जी भी ऊँचे -ऊँचे पहाड़ो में बसे है ऐसी ही सैम जी का मंदिर भी गांव में सब से ऊपर बनाये गए है। सैम देवता को जगत के मामू भी कहा जाता है जब भी कभी गांव में बेसी लगती है सबसे पहले इनको भोग लगाया जाता है , हमारे यहाँ एक और खास बात है जहाँ हर देवता होते है।
सैम देवतावहाँ कत्यूरी देवता नही होते है। हर देवता में इनका एक भ्रातृमंडल कायम है !स्यूरा, त्यूरा, दीवान उजलिया,दीवान और खोलिया, मेलिया, मंगिलाया सब इनके शिष्य है।शक्ति का असली रूप देखने को मिलता है। जब गांव में बेसी लगायी जाती है। जलती हुई धुनी में हाथ डाल कर आग के डांगरो को पकड़ना और भिभूति भी इसी तरह निकाली जाती है। जब भी बेसी में कोई नोताड नाचता है तो उसकी परीक्षा ली जाती धूनी के अंदर लाल -लाल चिमटे लगाये जाते है। और इस समय बड़े बिधि बिधान से रहना पड़ता है २ समय नहाना एक समय का खाना साल के श्रावण मास में बेसी लगायी जाती है।

इस तस्वीर में जो आप को मंदिर नजर आ रहा है यह मेरे गांव का मंदिर है "सैम देवता" इस मंदिर की काफी विशेषतायें है। इस मंदिर के आस -पास जो चीड़ के पेड़ खड़े है इनके बारे किसी को नही पता युग युगों से ऐसी ही नजर आते है और इनको काटना सख्त मना है ये मना किसी इन्शान ने नही किया है आप इनको काटोगे तो आप के साथ किसी भी प्रकार की दुर्घटना घट सकती है। एक बार किसी दूसरे गांव के आदमी ने यहाँ आ कर पेड़ काटना चाहा हुआ क्या कुल्हाड़ी से उसका पैर कट गया और वो पेड़ आज तक जीवत है उसमें अभी भी कटा हुआ निशान नजर आता है।

सच कहु तो हमारा पहाड़ आस्था का प्रतीक है और ये सच भी है !
श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
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म्यार भाल दिन आपण पहाड़म


कदुक भल पहाड़ होइ म्यर जन्म।
ईज ले काखी धरो बोज्यो धरो कानिम।।

उधड़ी कमीज पैरी फाटी पैरी पैजम।
टाल लगेबेर पेंट में जांछी स्कूलम्।।

मड़ुवाक रवाट खायो झुंगर क खायो भात।
आमा बुबुक दागड रुछि साथ।।

हमर घर तुमर घर के नी छी पत।
जेक ले घर जांछी वा रुछि मस्त।

कतके उवाल दरिम बाटिक।
कतके पाल दरिम बाटिक।।

कैके चोर नीबू कैके चोर काकड़।
दिन भरी नाड़म रुछि ग़ध्यारम।।

पे म्यार कदुक भल दिन छी आपण पहाड़म।।

श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
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फिर याद एगो आज बचपन

कधीने वल धारम कधीने पल धारम।
फिर याद एगो आज बचपनकधीने ताल गाडंम कधीने माल गाडंम।।

ग्वोरु दागड में हमकू ले पड़ रुछि नाड़।
जब लगाछी घर बाटिक धात।।

तब दिनका बाज रुछि चार।
ईज बोज्यू कुछी नी हे च्यला।।

गोरुकु घर ल्यूणक टेम।
तब हम कुछी ईजा- ईजा।।

एक ग्वोर उजाड़ न्हैगो ।
कधीने वल धारम कधीने पल धारम।।

श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
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ये मन ले चला आज मुझे पहाड़ियों की ओर

कभी -कभी ये मन भी उड़ते -उड़ते शहर से पहाड़ो की तरफ निकल पड़ता है। कुछ अपने चेहरों के बीच जिनको छोड़ तो आये वहाँ पर उनकी यादें हमेशा पास होती है।

कभी तो ये लगता है कोई आवाज देकर बुला रहा हो ख़ूबसूरत वादियों में जैसे बचपन का बिछड़ा हुआ कोई दोस्त जो लुक्का छिप्पी खेलते हुए दूर निकल आया और किसी चीड़ के पेड़ के पीछे खड़ा आज भी आपका इंतज़ार कर रहा हो कि आप आयें और उसे ढूंढ के जोर से बोलें पकड़ लिया चल अब तेरी बारी है।

ये मन ले चला आज मुझे पहाड़ियों की ओरकितना सुकून था जब हम उन बड़ी -बड़ी पहाड़ियों में खड़े होकर अपने आप अपनी फोटो खीचते फिर एक दूसरे को देख कर खूब हसते और दूर तक निकल जाते अपनी ही धुन मैं और वहाँ से नीचे देखो तो जहाँ तक नज़र जाती है, सिर्फ़ हरा भरा जंगल दिखता है, अंतहीन जैसे धरती सिमट कर बस इतनी सी हो गयी हो इस हरियाली के परे कुछ भी नहीं और दूर जाकर एक सिरे पर शिव जी का मन्दिर भी असीम शान्ति घंटियों की आवाज़ और दूर एक झरना जो बहुत शोर मचाता हुआ काफ़ी ऊँचाई से गिरता हुआ मन को शान्ति दे रहा हो।


श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
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अनमोल रिश्ता



रक्षा बंधन का त्यौहार भाई बहन के प्रेम का प्रतीक होकर चारों ओर अपनी छटा को बिखेरता सा प्रतीत होता है सात्विक एवं पवित्रता का सौंदर्य लिए यह त्यौहार सभी जन के हृदय को अपनी खुशबू से महकाता है !

राखी की डोरी बनी तो है कच्चे धागे से पर एक अनमोल रिश्ता है,भाई-बहन के बीच प्यार, मनुहार व तकरार होना एक सामान्य सी बात है। लेकिन रक्षा बंधन के दिन बहन द्वारा भाई के हाथ में बांधे जाने वाले रक्षा सूत्र में भाई के प्रति बहन के असीम स्नेह और बहन के प्रति भाई के कर्तव्यबोध को पिरोया गया है।

अनमोल रिश्ता प्रेम व कर्तव्य का यही भाव भाई-बहन के संबंधों को आजीवन मजबूती देता है। इस दिन बहन अपने भाई के माथे पर तिलक लगाती है कलाई पर रक्षा सूत्र बांध उसकी आरती कर उसके दीर्घ जीवन की कामना करती है,भाई भी बहन की झोली उपहारों से भरते हुए संकट की हर घड़ी में सहायता के लिए तत्पर रहने का वचन देता है।

भारतीय संस्कृति में कथा, पूजा एवं विभिन्न संस्कारों के समय रक्षा सूत्र बांधने का विशेष महत्व है,और हमारे पहाड़ में इस त्यौहार को एक और नाम से भी जाना जाता है,जन्यापून्यू' आज के दिन जिसका का जनेऊ (व्रतबंध) हुआ होता वो आज के दिन जनेऊ बदलता है, पुरानी जनेऊ को तुलशी के पेड़ पर अर्पित किया जाता है और नया जनेऊ मंत्रो के साथ धारण किया जाता है।

रंगीलो कुमाँऊं छबीलो गढ़वाल की तरफ से भाई बहन के इस पवित्र त्यौहार रक्षा बंधन की सभी मित्रो को हार्दिक शुभकामनाएं !


श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
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म्यर मुल्क म्यर पहाड़

म्यर पहाड़ म्यर मुल्क देखणा आया।
जब आली ऋतू बसंत बाहारा।।

याद आला तुमको आपण दिना।
आँख डब- डब भर आला तुमरा।।

म्यर मुल्क म्यर पहाड़
जब आला तुमके वो दिन यादा।
किलगे छोड़ी गेछा मुल्क आपणा।।

म्यर पहाड़ म्यर मुल्क देखणा आया।
ठंडी हवा ठंडो पाणी मुल्क म्यर हरी भरी।।

तुम आया जरूर हो म्यर पहाड़ा मा।
म्यर पहाड़ म्यर मुल्क देखणा आया।।

भरी-भरी रूनी ऊँचा डाना म्यरा।
बर्खा लागी रे छो चौमासा मा।।

यो मुल्क ऊनि रया ऋतू मासमा।
तुम आया जरूर म्यर मुल्क देखणा।।

म्यर पहाड़ म्यर मुल्क देखणा आया।

श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
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Tuesday, March 10, 2015

म्यर पहाड़ आया जब आली ऋतु....


म्यर पहाड़ आया जब आली ऋतु मांग फाल्गुना।
बुरांशी फूली रोली हरी भरी डाना काना।।

प्योली खिली रोली गाड़ गधेरा पाना।
सरसों की पिंगयी बहार होली खेतमा।।

याद आली तुमुकणी बचपना दिना।
तुम आया जरूर य मुल्क देखणा।।

बचपन बीते तुमले ये पहाड़ा मा।
ग्वाल बालो का संगा उचा निचा धारमा।।

कविता 
श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
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Monday, March 9, 2015

गावं की उड़्यारो में लुका-छिप्पी

वो जो खेला करते थे बचपन में गावं की उड़्यारो में लुका-छिप्पी, आज उन्हीं के बच्चो को गांव जाने का इन्तजार रहता है !
श्याम जोशी