Tuesday, July 19, 2016

ईजा बौज्यु का सपना जो बनते बनते बिख़र गया

एक बूढ़े हो चुके ईजा बौज्यु का सपना बनते बनते उम्र के आंखरी पड़ाव में बिखर गया जिस बेटे को इज्जा बौज्यु ने पाला बड़े ही प्यार दुलार से पलने डाले में सुलाया झुलाया बड़े प्यार से बौज्यु ने घुकी कानमे में बैठा के घुमाया हर जगह बड़े प्यार से आज वो उनके साथ नहीं उम्र के आंखरी पड़ाव पे ईजा बौज्यु है पर बेटा उनके साथ नहीं है !

एक वक़्त था जब वो हुआ था सारे गावं में नामकरण का न्योता देके खुशियाँ मनाई गई उनका सपना था बेटा बड़े होके काबिल बने नेक बने ख़ूब पढ़े लिखें पढ़ लिख कर नौकरी लगे तो सरकारी फ़ौज में ही लगे और आगे जा के हमारे बुढ़ापे का सहारा बने यही सपने वो देखने लगे वक़्त बीतता गया कितनी ही नींदे गई उन ईजा बौज्यु की रातों की तब उस बेटे को वक़्त के साथ आख़िर काबिल बना ही दिया !

एक दिन बेटे की फ़ौज की लग गई सरकारी नौकरी अपने पैरों पे बेटा खड़ा हो गया फ़ौज की सरकारी नौकरी लगने पर भी ईजा बौज्यु ने पुरे गावं के साथ खुशियाँ मनाई उनका जो सपना था वो पूरा होने चला था जो सपने उसके पैदा होने से लेके देखे वो कुछ हद तक पूरा हो चला था इसके बाद उन्होंने चाहा नौकरी लग गई अब ब्याह भी हो जाए बेटे का कहीं से रिश्ते की बात चली पक्का हुआ रिश्ता जैसे ही तो अचानक आ गया फ़रमान नौकरी से की सीमा पे युद्ध छिड़ गया जल्दी पहुँचो बेटा चल पड़ा अपने ईजा बौज्यु से आशीर्वाद लेके जो !

ईजा बौज्यु को गर्व तो हो रहा था बेटे को विदा करते हुए पर उस बूढ़े हो चुके ईजा बौज्यु को एक डर भी था क्योँ की देश की सीमा पे युद्ध पे जो जा रहा था उनका लाल उनकी आँखे नम थी पर यह भी था दिल में एक उम्मीद लगाये की अभी तो ब्याह भी करना है उसके आने के बाद बेटा चला गया ईजा बौज्यु अपने कारबार में लग गए तभी एक तीन दिन बाद एक सन्देश है आया की उनका बेटा युद्ध में देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गया !

उन ईजा बौज्यु के सपने सहारा बिखर गया उन्हें गर्व था अपने बेटे पे देश की रक्षा करते हुए उनका जो नाम रौशन कर चला वो पर वो ईजा बौज्यु तो उम्र के आंखरी पड़ाव पे होने के बाद आज अकेले रह गए चले गया उनका बेटा लाल जाते जाते सब कुछ दे गया पर उनका सपना बनते बनते बिखर गया चला गया हमेशा के लिए ||                  

"जय हिन्द जय भारत जय उत्तराखंड"
लेख
दीपा कांडपाल ( गरुड़ बैजनाथ)
(सर्वाधिकार सुरक्षित)

Saturday, July 16, 2016

हरेला


हमारे पहाड़ का एक माना -जाना त्यौहार है जो श्रावण मास शुरू होते ही मनाया जाता है।
ठीक १० दिन पहले आषाढ़ में बोया जाता है और श्रावण के पहले दिन काटा जाता है। बांस की छोटी -छोटी टोकरी में इसे बोते है गेहूँ, जौ, धान, गहत, उड़द, सरसों इत्यादि प्रकार के बीज बोये जाते है। और इन टोकरियो को जहाँ घर का मंदिर बनाया जाता है। वहाँ रखा जाता है और सुबह रोज पानी दिया जाता है।

सुबह उठ कर घर की महिला लोग मिट्टी से भीतर की लिपाई करते है उसके बाद पंडित जी आ कर हरेला की प्रतिष्ठा करते है। फिर घर में पूजा होती है उसके बाद गांव के सारे मंदिरो में भी जाया जाता है हेरला चढ़ाने उसके बाद घर के जो सब से बड़े जो होते है आमा ,बुबु अपने नाती नातनी को हरेला लगाते है।

लाख हर्यावा, लाख बग्वाई, लाख पंचिमी जी रए जागि रए,
स्यावक जसी बुध्धि हो, सिंह जस त्राण हो।
दुब जैस पनपिये, आसमान बराबर उच्च है जाए,
धरती बराबर चाकौव है जाए ।
आपन गों पधान हए ,सिल पीसी भात खाए।
...... जी रए जागि रए बची रए ........

इसके बाद घर में बुहत सारे पकवान बनते है घर में जैसे की पूरी, हलवा पूए ,बड़े और खीर इत्यादि, और जिस लड़की की नयी -नयी शादी हुई होती है वो इस त्यौहार पर अपने मायके "मैत" जरूर आती है।

हमारे पहाड़ो में इस दिन का एक बड़ा महत्व है घरो के फल और फूल के पेड़ लगाये जाते है कहा जाता जो इस दिन लगा दिया वह उगता भी है और फल भी अच्छा देता है। और ये सही बात है मैने भी बचपन में अंगूर के बेल लगायी थी जिस में बुहत सारे अंगूर आते थे।

लेख 
श्याम जोशी 

चित्र सोजन्य - मेरा घर आँगन

Friday, July 15, 2016

मुसीबतों का पहाड़




जब मुसीबतों का पहाड़ टूटता है।
तो उसके सामने,
पहाड़ भी टूट जाते है....

इधर गांव पर आएं हुए सैलाब को
देखर रोती हुई माँ
और उधर लेह लद्दाख पर
जिंदगी की जंग
लड़ता हुआ बेटा।।
श्याम जोशी
उदेख बिरह मन यही सोचता है कभी तो वो दिन आएगा जब फिर अपना घर बार होगा।
रचना 
श्याम जोशी (अल्मोड़ा चंडीगढ़ )

देव भूमि पर बरस रहा कहर कभी आग का तो कभी बाड़ का


देवभूमि उत्तराखंड जहाँ ३३ कोटि देवी देवता बिराजमान है फिर भी वहाँ हर समय बरस रहा कहर कभी आग का तो कभी पानी का कुछ दिन पहले वहाँ पानी के लिए लोग तरस रहे थे जल स्रोत सुख चुके थे आज मेरा पहाड़ पानी पानी हो चूका है आखिर क्यों कैसे कब तक यही सवाल सब के मन मैं है मेरे मन भी यही सवाल उठता है कभी पहाड़ जल जाता है कभी बह जाता है।
कभी केदारनाथ में तबाही तो कभी पिथौरागढ़ डूबता है कभी नैनीताल टूटता है इन सबके पीछे क्या कारण है शायद कोई नहीं जानता सब अपना अपना विचार देते आये है और आगे भी यही होगा मेरा मानना है अगर हम कहते है हमारे भूमि में कण- कण पर भगवान बिराजमान है। जो हमारे पुर्वजो ने सालो पहले उनकी स्थापना की थी। तो आज भी उन्हें उसी तरह क्यों नहीं पूजा जा रहा है।
अरे मानो या ना मानों जो वहाँ के नियम धर्म है सब उस हिसाब से चलंगे तो ये कभी नहीं होगा मोडल जमाने के चकर में हम सब ने अपनी आस्था भी खो दी है और रही बात जो लोग यहाँ बाहर से आते है उन लोगों को भी बताया जाय यहाँ के नियम धर्म इस देव भूमि किस तरह रहा जाता है।

रचना 

श्याम जोशी (अल्मोड़ा चंडीगढ़ )

SHYAM_JOSHI