Tuesday, November 29, 2016

देवभूमि का सपना साकार की तरफ !

9 नवम्बर किया था उत्तराखंड ने अपने को अलग खड़े करने का सपना साकार।
shyamjoshiwiters
कभी बाढ़ ने किया इस उत्तराखण्ड का हाल बेहाल।।
कभी सूखे ने कर डाला देव भूमि को आकाल ।

खड़ा रहा वो ज्यो का त्यों मुसीबतों का पहाड़ टुटा ।
घायल हुआ हिमायल आपदा की बिपदा पड़ी केदार पर ।।

धीरे धीरे सँभल रहा मेरा प्यारा  उत्तराखंड ।
इसको आगे बढ़ाने में हम सबका है फ़र्ज़ ।।

यहाँ  33 कोटि देवो का वास है यही चारों धाम है ।
ऋषियों के वास भी यही है देवीयों का वास भी यही ।।

देवभूमि में सबकी आस भी यही है न हो कोई निराश ।
इस लिए पग -पग पर देवों का वास भी यही है ।।

क्योंकि हरेक उत्तराखंडी का फर्ज है हम बनाये अपने उत्तराखण्ड को उत्तर का आँचल ।।

रचना
श्याम जोशी अल्मोड़ा चंडीगढ़

सफर और बस की वो विंडो सीट



शहर से पहाड़ को निकलते हुए बस में बेतसाहा चिड़ चिड़ा हो गया था वही पुरानी बस कुछ सीटों पे टल्ले लगे हुए और कुछ टूटी हुई और उस में कुछ पहाड़ी भाई तो कुछ शहरों से घूम कर जाते हुए हमारे पहाड़ी भोली भाली आमा ताई लोग गले में लम्बे लम्बे माला और सबके माथे पर टिका ( पीठिया) लगाए हुए बैठे है।

shyamjoshiकण्डक्टेर भाई चिलाते हुए अपना अपना सामान ऊपर रख देना रास्ते में परेशानी होती है कल रात देर से सोया हूँ एक तो ऊपर से इतना लम्बा सफर सफर से पहले दिन मुझे इस बस की याद आने लगती है कैसे अपनी मंजिल जाऊंगा चलो हम भी बैठ गए बस में कानो में हेड फ़ोन लगाए हुए और उस में बजता पहाड़ी फ्लॉक संगीत जो सफर को काफी उतावला बना रहा था।

बस निकल पड़ी और में थोड़ा खुस और थोड़ा नाखुश नाखुशी यही की ये बस मंजिल तक चलेगी या नहीं चलो देखते है सफर सफर में हेडफोन और मेरा अकेला पन और उस अकेलेपन की पुड़िया बाँध के जेब में रखता हूँ क्या पता न जाने कब काम आ जाएँ। ये अकेलापन भी मेज के नुकीले कोने की तरह होता है आप भी सोच रहे होंगे अकेलेपन पी च डी लिखने बैठ गया, क्या करू जब भी सफर की तरफ निकलता हूँ ये मन डरने लगता है मन शायद बस की सफर करने के बजाये अपनी ही मन की उड़ाने भरने लगता है। कभी कभी सोचते सोचते किसी बात पे खुश भी हो जाता वैसे तो सफर का और उसका मेरा एक साथ रहा हमने काफी सफर साथ किए पर अब इस का भी इस तरह लगता है लगातार निभाए जा रहा हूँ।

कभी-कभी डर के मारे पसीने के एक परत से चढ़ जाती है मेरे हाथो में घबराहट के मारे वो परत उसके हाथो के सपर्श के सहारे हवा में काफी समय निकाल लेती थी। फिर वो भी दिल के जहाज के कोने में बैठ के उड़ गयी।

ज़िंदगी की विंडो सीट पे बैठ के कभी खुले आसमान को देखना का साहस उठा पाऊ या नहीं ये ही ख्वाब देखता निकल पड़ा सफर की तरफ से अचानक मोबाइल की स्क्रीन पे धुप की छाँव से कोई हल्की सी परछाई नजर आ रही थी वह तस्वीर जानी पहचानी से नजर आ रही थी ये सपना है या हकीकत पर कुछ समझने से पहले वो परछाई है चुकी थी।

अगर भावनाओं के हिसाब से देखे तो उस समय की स्तिथि काफी अलग थी एक असली चेहरा जिसे देखे काफी साल गुजर गयी है और वो अचानक आज मेरे मोबाइल की स्क्रीन पर कैसे कुछ समझना भी नामुमकिन था एक मिनट मैने अभी अभी अपने आँखों के कौने से देखा अपने किताब के पन्नो में गम है वो कानो में हेड फ़ोन लगाए सायद मेरी तरह वो भी कोई क्लासिकल संगीत सुन रही है बाल किसी आलसी बच्चे की तरह लुड़कते हुए बाजू तक आ गए है पन्ना पलटने के लिए हाथ देखा तो नाखूनों में हल्का लाल रंग है जरा सा हल्का पड़ गया है।




मेरी कलम  मेरा पहाड़ 
श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
( सर्वाधिकार सुरक्षित )
9876417798

Monday, November 7, 2016

Traditional Jewellery of Uttarakhand ( kumauni Nathuli)

Nathuli or Nath is the charm of Pahari women which is hailed for its elegant style. It is worn by the women of Garhwal, Kumaon and Jaunsar-Bawar region of Uttarakhand. However, the style and design may differ in both the region but its charisma remains the same. The nath or nose ring of a bride is the star attraction during the wedding. The weight and number of pearls inserted in a nath indicate the status of the family of the bride. Tehri Nath celebrated for its artistic design is one of the most distinguished ornament of Uttarakhand which is worn at the time of marriage, social gatherings, puja and at important family functions. This large piece of jewelry not only showcases the rich culture of Garhwal but it has also become a fashion statement which attracts a lot of Pahari as well as non-Pahari brides to wear it.