Wednesday, February 25, 2015

बुलाती है ये हवाएँ ये घटाएं

बुलाती है ये हवाएँ तुम्हें।
ये घटा बिछाती है फिजायें।।
ये पहाड़ियों में ये लहराती हवाएँ।
मन को प्रफुलित्त करती है बादलो की घटाएं।।
कभी आईये तो सही इन पहाड़ी गुफाओं में।
अपने आप को रूबरू करए इन खुली हवाओं में।।
ले जाइए अपने मन को ओस की बूंदो में।
छोड़ दीजये फिर चेतना की धूप में।।
ले जायेगा तुम्हें तुम्हारा मन।
अंतस के गहन सन्नाटो में।।
फिर धुप की तरह चमकने।
लगेगा ये मन उस पहाड़ी की चट्टानों में।।
जब कभी मन बेचैन सा हो तो ले चलये उन पहाड़ियों की और जहाँ एक असीम शांति का एहसास होता है।
कविता
श्याम जोशी
( सर्वाधिकार सुरक्षित )

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