Thursday, December 31, 2015

देखो हो दाज्यू नई साल एगो

देखो हो दाज्यू नई साल एगो। 
य तो भौते कमाल हैगो।। 

नान नान न्हातिन पीनी बियर। 
फिर सबूहे कुनैयी वो माय डिअर।। 

सैणि पेनियी वोडका बिर्ज़र। 
फिर आपूके समझनेयी हिटलर।।

मैस पेनियी विस्की रम।
फिर आपु हेबेर केके नि समझने कम।।

नान ठुलके नि समझने ठुल नानीकी शर्म नई करणे।
सब लोग आपण आपण कौ के देख्यि बेर नि डरने।।

उस्कि आदिम आदिम के देख बैर जलनो।
शराब पिहू सब मिल बेर दगड़े बैठनो ।।

देखो हो दाज्यू नई साल एगो। 
य तो भौते कमाल हैगो।। 

रचना 
श्याम जोशी अल्मोड़ा 
+91-9876417798

Wednesday, December 16, 2015

अमर प्रेम नाम हमारा

इश्क़ तेरे नाम से शुरू मैंने इन पहाड़ की ख़ूबसूरत वादियोँ में किया था जो सुबह से शाम,आज निशानी तेरे मेरे प्यार की उस पेड़ के निचे पत्थर पे लिखा एक साथ हमारा वो नाम,मिलते थे इन हरे भरे जंगलो के बीच गीत गुनगुनाते लेते एक दूजे का प्यार भरा वो नाम,नाम हमारा याद उस चिड़ियाँ को जो पेड़ पे सुनती जब भी तब डाल डाल लेती फिरती थी।।
चीड़ का वृक्ष जिसके ऊपर स्योंत का फल हरा दिखता उन सब वृक्षों पे भी हमारा ही नाम, वो जंगलो में चीड़ के वृक्षों की पीरूख जिसपे फिसल फिसल हम नाम को पुकारा करते थे,बारिश आती जब दोनों होते संग मिट्टी पे नाम लिखते हम जब तक टिकता नहीं तब तक,कितना अच्छा लगता जब वो नदियों झरनों के स्वर में भी हम मिलाया करते अपना नाम।।
बर्फ़ की ठंडी हवाओ में तेरे मेरे नाम का इश्क़ जब गुंजा तो हिमालय से हुई थी एक ललकार,ऐसी हुई हिमवर्षा सफ़ेद हो गया हर रस्ता भूलगए मंजिल का रस्ता तब याद आया वो नाम,खोजा बर्फ से ढकी वादियों को जो नाम लिखा देख हम हैरान हुए हमारा नाम पाया पगपग,कैसे न मिलता वो रस्ता जब साथ हो इश्क़ प्रेम का अमर नाम जो हमारा राजुला मालूशाही।।

रचना
दीपा कांडपाल (गरुड़ बैजनाथ)
(सर्वाधिकार सुरक्षित)

हम सबका पहाड़ अपना पहाड़

पहाड़ मेरा पहाड़ हम सब का अपना पहाड़ समझे तो उसका भी पहाड़ कोई नहीं समझे तो उसका भी पहाड़ सही कह रही हूँ शायद में पहाड़ की सुन्दर सी वादियाँ अहाहा.. सुन्दर सा नजारा मन को मोह लेता है...हरे भरे खेत लहलाते हुए धान.. ठंडी ठंडी हवा ठंडो ठंडो पानी अहाहा मन को प्रफुलित कर देता है।
जितना मैंने पहाड़ को जाना है जयादा तो नहीं पर थोड़ा थोड़ा बेहद अच्छा लगा...लेकिन वहां पे जो अच्छा नहीं लगा वो था वहां पे पिने की आदत.. चाहे चाय (चाह) लो, बीड़ी लो, हुक्का लो ,शराब लो, सब स्वास्थ्य के विरुद्ध बेहद बुरी लत जो शायद ही मिट सकती हो कभी
वहाँ पे रह रहे लोगो का अधिकतर जीवन एक तो चाय (चाह) ने ख़राब कर दिया २४ घंटे चाय.. एक बार पि ली.. उसी वक़्त दोबारा बनी तब पि ली.. फिर कोई आया फिर पि ली.. कोई आये या न पर पीनी है तो पीनी ऐसे ही पि ली.. कितली मतलब की (चाय बनाने का बर्तन) चूल्हे से उतरने का नाम ही न लेती है।
चलो चाय तक तो ठीक था पर दूजा यह पिने की लत कहा से आई बीड़ी,हुक्का,शराब शराब जिसकी इतनी बुरी लत पड़ी हुई है पहाड़ मैं..वो न हो तो मानो सब बेकार है.. कोई भी काम हो जैसे शादी ब्याह इत्यादि.. शुभ ही कार्य नहीं.. पिने वालो को तो पीनी है तो कैसा भी मौका हो.. कभी भी.. रोज भी..जब चाहे मन करे पीनी है.. और कोई पिला दे तो फिर क्या कहना.. उसके बराबर गुणवान इंसान कोई दूजा होगा ही नहीं हो सकता है।
बेहद बेकार लत जिसने इतने ख़ूबसूरत पहाड़ मैं रह रहे लोगो को खत्म कर दिया है..कमियां कहाँ नहीं होती पर अपने स्वास्थ्य के लिए वातावरण के लिए जो हानिकारक हो..उसे कोशिश करके पूरी तरह न सही.. थोड़ा थोड़ा ..करके तो खत्म किया जा सकता है न.. फिर देखो हमारा पहाड़ स्वर्ग से कम नहीं. अच्छा सब लिखते है पर मुझे जो गलत लगा वो लिखा.. मैंने अपनी बात कही है.किसी को मेरी बातों से आहत पहुंचे वो मेरा इरादा नहीं बाकि मैं अपने को समझदार नहीं समझती आप सब पढने वाले बेहद समझदार है इसलिए पढ़िए और सोचिये क्या कुछ कर सकते है।
लेख दीपा कांडपाल (गरुड़ बैजनाथ) ( सर्वाधिकार सुरक्षित )

Monday, December 7, 2015

इसी लिए तो हमें कहते पहाड़ी

Recipes of Uttarakhand


आलू हमारे लिए आलू गुटुक होते है।
चॉकलेट हमारे लिए बाल मिठाई होती है।।

इसी लिए तो हमें कहते पहाड़ी।

ड्राई फ्रूट हमारे लिए भुटे भट्ट और खाजे होते है।।
सेनक्स हमारे लिए घुघुते और खजुरे होते है।।

इसी लिए तो हमें कहते पहाड़ी।

हेवी खाना हमारे लिए मड़ुए की रोटी होती है ।।
लाइट खाना झोली भात और कपीया होता है।।

जिसे हम सपोड़ा सपोड़ कर के खाते है।

इसी लिए तो हमें कहते पहाड़ी।

तुम हर बात पे वो माय गॉड कहने वाले हुए ।
हमारे मुह से निकलने वाला हुआ वो ईजा ।।

इसी लिए तो हमें कहते पहाड़ी।

तुम ठहरे इस्टेडिंग खाना खाने वाले।
हम तो कड़ाही चाट जाने वाले ठहरे।।

इसी लिए तो हमें कहते पहाड़ी।

तुम ३६ फ्लेवर वाले  नमकीन चिस्प खाते हो।
हम मड़ुए की रोटी में घी और नुण लगा खा जाते है।।

आपणी भाषा और आपण खाड़ पिंडक प्रचार जरूर करण चैन आइए अपने  देवभूमि रहन सहन खान पीन का प्रचार करए

रचना
श्याम जोशी (अल्मोड़ा चंडीगढ़ )सर्वाधिकार सुरक्षित