Wednesday, December 16, 2015

अमर प्रेम नाम हमारा

इश्क़ तेरे नाम से शुरू मैंने इन पहाड़ की ख़ूबसूरत वादियोँ में किया था जो सुबह से शाम,आज निशानी तेरे मेरे प्यार की उस पेड़ के निचे पत्थर पे लिखा एक साथ हमारा वो नाम,मिलते थे इन हरे भरे जंगलो के बीच गीत गुनगुनाते लेते एक दूजे का प्यार भरा वो नाम,नाम हमारा याद उस चिड़ियाँ को जो पेड़ पे सुनती जब भी तब डाल डाल लेती फिरती थी।।
चीड़ का वृक्ष जिसके ऊपर स्योंत का फल हरा दिखता उन सब वृक्षों पे भी हमारा ही नाम, वो जंगलो में चीड़ के वृक्षों की पीरूख जिसपे फिसल फिसल हम नाम को पुकारा करते थे,बारिश आती जब दोनों होते संग मिट्टी पे नाम लिखते हम जब तक टिकता नहीं तब तक,कितना अच्छा लगता जब वो नदियों झरनों के स्वर में भी हम मिलाया करते अपना नाम।।
बर्फ़ की ठंडी हवाओ में तेरे मेरे नाम का इश्क़ जब गुंजा तो हिमालय से हुई थी एक ललकार,ऐसी हुई हिमवर्षा सफ़ेद हो गया हर रस्ता भूलगए मंजिल का रस्ता तब याद आया वो नाम,खोजा बर्फ से ढकी वादियों को जो नाम लिखा देख हम हैरान हुए हमारा नाम पाया पगपग,कैसे न मिलता वो रस्ता जब साथ हो इश्क़ प्रेम का अमर नाम जो हमारा राजुला मालूशाही।।

रचना
दीपा कांडपाल (गरुड़ बैजनाथ)
(सर्वाधिकार सुरक्षित)

No comments:

Post a Comment