Thursday, February 26, 2015

छूट गो पहाड़


आज ईजा का मन उदास तो है, पर बेचारी कुछ कह नही सकती आने वाले कल की आस मैं अपने बेटे को अपने से दूर बेझती है, और अपने इष्ट देवता को अपने बेटे की हाथ की भेट चढ़ाते हुए कहती है, म्यर च्यल की रक्षा करया हो देवो और पिठ्या लगा के विदा करती है।

यह कहानी उस पहाड़ी की जिसका जन्म हुआ पहाड़ पर और बचपन भी वही बिता ज़िन्दगी की शरुवात भी उन्हीं ही पहाड़ियों मैं हुई, और पढ़ाई भी वही से हुई बस जब कुछ करने का समय आया तो निकल पड़ा वह पहाड़ी एक बैग उठा के परदेश की तरफ जहाँ कोई अपना नही है, सब लोग अन्जान है, उन्ही अन्जान लोगोँ मैं से अपनों को ढूढ़ना भी है,रात काटने के लिए कितनी मज़बूरी है, हर पहाड़ी की सोचता है मैं भी इन मजबूरियों का निपटारा करूँगा जिस माँ बाप ने खुद नही खा के मुझे खिलाया है अपना फटा कपड़ा पहन के मुझे नए कपड़े पहनाये है, उनके लिए कुछ करूँगा इसी आस मैं वो अपना सफर करता है।

नाम तो है पर पहचान नही है,अपनों से दूर जहाँ शायद उसे कोई जानता हो नाम तो है, उसका पर उसे पहचानता कोई नही है।

कहते है परदेश में अपने भी पराये होते है, यह बात सच क्यों की वो लोग रहते तो वहाँ पर छत अपनी नही है, है तो बस शाम की रोटी आने वाली सुबह का नही पता कब कहा जाना पड़े और वह पहाड़ी वहाँ रुकता तो है, एक दो दिन पर उसे ये फिकर है, मैं अपने ईजा बोज्यू को ये कह कर आया हूँ, इस बार नए कपडे में लाऊंगा ईजा की फटी जुराब आँखों में आती है।

और निकल पड़ता है, सुबह नौकरी की तलाश मैं हर चौराहे हर गली भटकता है, तब उस समय माँ बाप आँखों में आते है, सोचता है, इतने ही कष्ट मुझे पढ़ाने में किये हुंगे मेरे माँ बाप ने पूछता है, लोगों से कुछ काम मिलेगा करने को तब उसके सामने क्या -क्या सवाल किये जाते है।
“तुम कहा से आये हो ,कहा रहते हो ,क्या करते थे पहले ,तुम्हारे पिता जी क्या करते है”
जब वो इन सवालो का जवाब देता है में एक पहाड़ी हूँ मुझे काम चाहये और में इस शहर में नया आया हूँ।

जवाब आता है, तुम्हारे यहाँ कुछ काम नही होता है, क्या जो सब के सब शहर को चले आते हो और तुम तो नए हो मैं तुम्हे क्या काम दूंगा मुझे कराना है, सिखाना नही आप कही और पता करो यहाँ जगह नही है, वह पहाड़ी थका हारा जब शाम को घर जाता है, तो माँ (ईजा ) का फोन आता है, च्येला तू काम पर लाग् गछे के तू कणी कस लाग रो ता तिल खाण खा छे नी खे ईजा आज जे रोछि दिन के कदुक जाग गयी या ते सब परायी छन वे ईजा कोव न्हाती आपण सब कु रई तू या नई -नई एरोछे तुके काम नी ऊन तू के करले तब ईजा का जवाब होता है।

“च्येला तू फिकर नि कर भोव दिन आई ले आल ”

इतना कह कर माँ फोन काट देती है, और माँ के मुह से ये सुनकर दिन की वो सारी थकान भी उतर जाती है, और एक नयी आस मिलती है कहते है माँ का दिया हुआ वचन हमेशा साथ रहता है।

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"रंगीलो कुमाँऊं छबीलो गढ़वाल"


श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
( सर्वाधिकार सुरक्षित )
मोबाइल : +91- 9876417798
“च्येला तू फिकर नि कर भोव दिन आई ले आल ”

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