पुलकित हुआ आज धरती का आँगन।
नवसृजित कोपलें कर रही माँ शारदे का अभिनदंन।।
क्यों न करें इस धरा का गुणगान ।
आया सुन्दर बसंत बनके हम सब का मेहमान।।
नवसृजित कोपलें कर रही माँ शारदे का अभिनदंन।।
क्यों न करें इस धरा का गुणगान ।
आया सुन्दर बसंत बनके हम सब का मेहमान।।
नव पुलिकत इस धरा पर उमंग देखो छायी है।
चारो तरफ खुशियो ने ली फिर अंगड़ाई है।।
नभ यों निचे देख रहा मानो।
उसकी नवबधू आज फिर से इठलायी है।।
चारो तरफ खुशियो ने ली फिर अंगड़ाई है।।
नभ यों निचे देख रहा मानो।
उसकी नवबधू आज फिर से इठलायी है।।
चारों तरफ खुशियाँ है , नयी कलियाँ रंगरलियां है।
पतझड़ वाले पेड़ो पर भी आज फिर से कलियां है।।
खेतो में हरियाली है जीवन में हर्षोल्लास है।
झूमो इस बसंत में तुम भी यह बसंत का उल्लास है।।
पतझड़ वाले पेड़ो पर भी आज फिर से कलियां है।।
खेतो में हरियाली है जीवन में हर्षोल्लास है।
झूमो इस बसंत में तुम भी यह बसंत का उल्लास है।।
कविता
मीनाक्षी बिष्ट
मीनाक्षी बिष्ट
( सर्वाधिकार सुरक्षित )
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