सुवाल पथाई यह रिवाज हमारी संस्कृति में से एक है जो आप को कही और नही मिलेगा सुबह का समय गणेश पूजा का उसके बाद सुवाल पथाई के लिये आटा गुदना साथ मैं खूब मज़ाक करना फ़िर घर के लोगो द्वारा इस्ट देवता के लिये सुवाल पाथना वही दर्स्य बाहर आँगन का सारे गांव वाले मिल जुल कर सुवाल पाथना और साथ मैं शादी के गीतो से मौहाल को और भी खुस नुमा करना कीतना अच्छा लगता है। लड़की की शादी हो तो वहां पर यह गीत अवस्य गाया जाता है।
आओ बैठो बनी तुम कल चली जाओगी ,
अपने बाबुल के घर से विदा हो जाओगी !!
अपने बाबुल के घर से विदा हो जाओगी !!
उसके बाद का कार्यकर्म भी बड़ा ही मजेदार होता है एक तरफ जहाँ सुवाल पक रहे है वही दूसरी तरफ तात सिवाई (हलवा ) आटे का बना होता है बडा ही स्वाद तात सिवाई का मतलब हुआ इस को गरम - गरम खाना है ठंडे मैं जरा स्वाद मैं अंतर हो जाता है। फिर उसके बाद की एक बुहत अच्छी परम्परा है हमारे पहाड़ की शायद ये कुछ गांव मैं नही हो सकती है हमारे गांव मैं यह परम्परा है घर -घर जाकर सुवाल और हलवा दे कर आना जिसे पहाडी में (पैण) भी कहते है।
(जुड़े रहये अपनी संस्कृति से हमारी संस्कृति हमारी धरोहर है !)
लेख -श्याम जोशी !
( सर्वाधिकार सुरक्षित )
चित्र सोजन्य - (मंगल s नयाल)
लेख -श्याम जोशी !
( सर्वाधिकार सुरक्षित )
चित्र सोजन्य - (मंगल s नयाल)
No comments:
Post a Comment