Wednesday, February 25, 2015

हमारी संस्कृति की अनूठी परम्परा

सुवाल पथाई यह रिवाज हमारी संस्कृति में से एक है जो आप को कही और नही मिलेगा सुबह का समय गणेश पूजा का उसके बाद सुवाल पथाई के लिये आटा गुदना साथ मैं खूब मज़ाक करना फ़िर घर के लोगो द्वारा इस्ट देवता के लिये सुवाल पाथना वही दर्स्य बाहर आँगन का सारे गांव वाले मिल जुल कर सुवाल पाथना और साथ मैं शादी के गीतो से मौहाल को और भी खुस नुमा करना कीतना अच्छा लगता है। लड़की की शादी हो तो वहां पर यह गीत अवस्य गाया जाता है।
आओ बैठो बनी तुम कल चली जाओगी ,
अपने बाबुल के घर से विदा हो जाओगी !!
उसके बाद का कार्यकर्म भी बड़ा ही मजेदार होता है एक तरफ जहाँ सुवाल पक रहे है वही दूसरी तरफ तात सिवाई (हलवा ) आटे का बना होता है बडा ही स्वाद तात सिवाई का मतलब हुआ इस को गरम - गरम खाना है ठंडे मैं जरा स्वाद मैं अंतर हो जाता है। फिर उसके बाद की एक बुहत अच्छी परम्परा है हमारे पहाड़ की शायद ये कुछ गांव मैं नही हो सकती है हमारे गांव मैं यह परम्परा है घर -घर जाकर सुवाल और हलवा दे कर आना जिसे पहाडी में (पैण) भी कहते है।
(जुड़े रहये अपनी संस्कृति से हमारी संस्कृति हमारी धरोहर है !)
लेख -श्याम जोशी !
( सर्वाधिकार सुरक्षित )
चित्र सोजन्य - (मंगल s नयाल)
हमारी संस्कृति की अनूठी परम्परा

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