माँ तुझसे मिलने जरूर आऊंगा मुझे पता है मेरे पहाड़ मेरे गांव का रास्ता यही है शायद वो रास्ता जहाँ में तेरे आँचल को थाम तेरे आँगन को खिलखिलाता था और वो मेरा बचपन अब बचपन यादों जैसा हो गया है ना ही वो बचपन ना ही वो आँगन बस है तो ज़िन्दगी की मुश्किलों से भरा मेरा दिन माँ यहाँ भी शहर है मोहल्ला है ,गली है पर ना तू है ना ही तेरा आँचल है।
कभी- कभी देखता हूँ अपने आप को इस शहर की भीड़ में तो एहसास होता है कुछ लोग अपनों के लिए भी भीड़ में अकेले देखते है और वो उस भीड़ का हिस्सा जरूर होते है पर उस भीड़ में अपनी ख़ामोशियों अपने आप में ही रूबरू करते है।
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