आज अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस है क्यों ना हम अपने पहाड़ की शान और पहाड़ की जान उनकी बात करें।
जब भी पहाड़ो की तरफ को जाता हूँ मुझे इस तरह की कोई तस्वीर मिलती है में मौका नही छोड़ता इस तरह की तस्वीरों को अपने कैमरे में कैद करने के लिए में इनके काम और जब्जे को दिल से सलाम करता हूँ।
यही है पहाड़ की असली ज़िन्दगी शायद आप सब ने देखा होगा असोज के समय में जब ये लोग सुबह ५ बजे घास काटने निकल जाते है और शाम के ७ बजे इन लोगो को घर नसीब होता है ये सब अपना खाना पीना सुबह ले कर निकल पड़ते है। कई बार घास काटते समय इनलोगो का हाथ भी कट जाता है ये फिर भी अपना काम को नही छोड़ते है।
सबसे बड़ी बात मुझे ये अच्छी लगती है हमारे पहाड़ी महिलाओं की ये हर समय खुस रहते है आप सभी ने भी देखा होगा जब कभी कोई हमारी पहाड़ी माताएं पखौट में घास काटती है अधिकतर माताएं पहाड़ी गीत गुनगुनाते है और उनकी आवज सुनने के बाद तो लगता है कुछ देर यही खड़े रहकर गीत का आनन्द लिया जाए तो उन गीतों में से एक गीत ये भी है।
पारे के भिड़ा कौछे जाणीया बटोवा रे,
म्यारा ऊन्होणी एक लि जै दे जवाबा।।
श्याम जोशी
जब भी पहाड़ो की तरफ को जाता हूँ मुझे इस तरह की कोई तस्वीर मिलती है में मौका नही छोड़ता इस तरह की तस्वीरों को अपने कैमरे में कैद करने के लिए में इनके काम और जब्जे को दिल से सलाम करता हूँ।
यही है पहाड़ की असली ज़िन्दगी शायद आप सब ने देखा होगा असोज के समय में जब ये लोग सुबह ५ बजे घास काटने निकल जाते है और शाम के ७ बजे इन लोगो को घर नसीब होता है ये सब अपना खाना पीना सुबह ले कर निकल पड़ते है। कई बार घास काटते समय इनलोगो का हाथ भी कट जाता है ये फिर भी अपना काम को नही छोड़ते है।
सबसे बड़ी बात मुझे ये अच्छी लगती है हमारे पहाड़ी महिलाओं की ये हर समय खुस रहते है आप सभी ने भी देखा होगा जब कभी कोई हमारी पहाड़ी माताएं पखौट में घास काटती है अधिकतर माताएं पहाड़ी गीत गुनगुनाते है और उनकी आवज सुनने के बाद तो लगता है कुछ देर यही खड़े रहकर गीत का आनन्द लिया जाए तो उन गीतों में से एक गीत ये भी है।
पारे के भिड़ा कौछे जाणीया बटोवा रे,
म्यारा ऊन्होणी एक लि जै दे जवाबा।।
श्याम जोशी
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