Monday, March 16, 2015

२ रोटा खातिर घर बार ले छोड़ दी

पहाड़ आदिम कि ज़िन्दगी कस हगे पे यो आज,
ना पहाड़ कक रैगो ना परदेश कक रैगो
२ रोटा खातिर पहाड़ छोड़ बेर परदेश गयो
shyam joshi homeईज छोड़ी बाब छोड़ा नान तिन छोड़ा
घर बार ले छोड़ दी
यो नि समज की भोल के हल
कस हल क़े बेर कैली नी सोचि
आब यो घर ले बांज हेगो का जानु
का रोला म्यर नान तिन
के खाल म्यर नान तिन
महंगाई मार ख़ारम् यो पड़ रे
कसिक करनु यो बांज घर के आबाद
सही कोछी पार बखाई नन्दू दा ले
नि - नि जा रे रनकरा भ्यार
भोल के यो घर आले और
यो बाट आले के कोछी कोले काकल
आज मैके उ दिन याद एगेई

श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
( सर्वाधिकार सुरक्षित )

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