Monday, March 16, 2015

बचपन

बचपन


हम कितने भी बड़े क्यों ना हो जाये बचपन के दिन हमेशा हमारी यादों में ज़िंदा रहते है। वो दिन जब हम बेफिक्री से यहाँ वहा घुमा करते थे ना घर की चिंता ना बाहर की हमारे खेल थे की खत्म होने का नाम नही लेते थे वो कच्चे पेड़ो पर चढ़ना ना गिरने की फिकर ना घर की डर फिर इतवार के दिन दिन भर खेतो में क्रिकेट मैच खेलना एक खेल से मन भरा तो दूसरा खेल याद आया लुकी छुपी का खेल मुझे हमेशा पसंद होता था ये खेल घर वालों से चोरी कर -कर के खेलते थे खेतों में या पहाड़ो में जा कर फिर गर्मियों की छुटियो में घर से भाग जाना दोहपर की धुप में ये वो दिन थे जब हर कांच का टुकड़ा हमें खलने की चीज लगता था और रास्ते पर हर पत्थर को ठोकर मारने के लिए हमारे पावं खुद बे खुद उठ जाते थे।

वो बचपन का गीत जो मुझे आज भी बेहद पसंद है!

"पोशम पा भई पा १०० रूपए की घड़ी चुराई अब तो जेल  में जाना पड़ेगा जेल  की रोटी खानी पड़ेगी "

जहाँ पर भी रेत दिखा वहा पर छोटा सा घरोंदा बना के एक दूसरे की शादी करना या फिर स्कूल से घर आने के बाद आँगन में बैठ कर चोर सिपाही का खेल खेलना तब तो यु लगता जैसे चोर की पर्ची आयी तो लगता था चोर बन गए या सिपाही आया तप पुलिस बन गये वो तितलियों के पीछे भागना या बादल पर किसी की तस्वीर देखना बचपन के ये खेल कोई नही भूलता बस जरा कभी - कभी यादें धुन्धली पड़ जाती है।

वक्त के साथ ये सारे खेल गुम होते जा रहे है आज कल के विडियो गेम्स या कंप्यूटर पर गेम्स हो या मोबाइल पर हो ये सब देख के लगता है की उनका बचपन खो सा गया है दिन भर सोफे पे बैठ के कंप्यूटर पर चिपके रहना आज कल के बच्चो का यह प्रिय बन चूका है। पेड़ो से आम इमली, अमरुद तोड़ ख़ाने से जाय्दा पीज़ा बर्गर खाना अच्छा लगता है आमा बुबु की कहानी से अब अच्छी लगती है टोम एंड जरी की कहानी गिल्ली डन्डे छोड़ कर अब उनके हाथ में आ गए है कंप्यूटर के की बोर्ड और माउस प्रकर्ति से दूर हो गये है अब ये बच्चे तकनीकी भाषा ज्यादा समझते है नमस्कार की जगह गुड मॉर्निंग का जो प्रयोग करते है।

आइये आप भी अपने बचपन की यादों को ताजा कीजये !

श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
( सर्वाधिकार सुरक्षित )

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