Monday, March 16, 2015

बचपन की शरारतें

बचपन की शरारतें
दगडियों पिछले साल की याद की एक बार फिर ताजा कर रहा हूँ। पिछले साल अगस्त के महीने में घर गया था गांव में भागवत कथा थी। बुहत मज़ा आया और इन दिनों गांव में ककड़ी काफी होती है। कथा के समापन दिवस पर बुहत जोर की भूख ने परेशान कर दिया क्यों की उस दिन लंगर होता है।

 खाने का समय था ४ बजे के बाद तो भूख से बेहाल हो रहा था कुछ साथी और भी थे वो सब अल्मोड़ा से थे मैने सुबह अपने ताई के यहाँ ककड़ी देखी थी और ककड़ी काफी हरी और बड़ी थी सारे लोग मंदिर में ब्यस्थ थे हम गए नीचे और ककड़ी तोड़ी आराम से खायी भांग के नमक के साथ और सब से बड़ी मजेदार बात यह थी जिनके घर से ककड़ी तोड़ी उनके ही घर पर बैठ के खायी बुहत मज़ा आया मानों ऐसा लगा ज़िन्दगी फिर उस बचपना में चली गयी हो कुछ दिन बाद फिर घर जा रहा हूँ ककड़ी खाने देखता हूँ इस बार किस की ककड़ी पर नज़र जाती है।

आप लोग भी गांव से जुडी हुई यादोँ को ताज़ा करे और इस मंच पर साँझा करें!

श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
( सर्वाधिकार सुरक्षित )

No comments:

Post a Comment