हमारे संस्कृति के रिवाज तो वैसे सभी अच्छे लगते है कुछ हमें खुशियाँ दे जाते है तो कुछ उदासियाँ उन्ही में से एक यह रिवाज हमारी संस्कृति का अहम हिसा है। यह रिवाज मन को भावक करने वाला है शायद अपने भाई के संग बचपन के दिन भी याद दिलाता है कुछ मौजमस्ती कुछ लड़ाइयाँ उन सब पलों को याद दिलाता है ।
तुम करते थे मुझे बुहत तंग
आज में इस घर से बिरान हो रही हूँ
तो तुम हो रहे हो परेशान
यह कैसा रिश्ता है कैसी रस्म है
जो हर लड़की को निभानी है
उस आँगन में हम
एक पंछियो की तरह रहते थे
जब लगे पर तो
हमारा भी घोंसला दिया बदल।।
श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
( सर्वाधिकार सुरक्षित )
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