आज कल पहाड़ों में कुछ इस तरह का नजारा देखने को मिलता है, जो बेहद खूबसूरत लगता है हरे भरे मैदान और कही गाय चरती हुई नजर आती है तो कही कोई पहाड़ी महिला घास काटते हुए दिखती है।
इस तरह के द्रश्यो को देखकर अपना भी बचपन याद आ जाता है कभी हम भी इसी तरह गायों को लेकर जंगल चले जाते थे कही आस पास कोई खेत में ककड़ी की बेल नजर आती तो टूट पड़ते थे चाहे वह ककड़ी का फूल भी नही झड़ा होता था उसे ही खा जाते थे।
तब के हमारे खेल भी बड़े अनोखे होते थे तब ना कोई मोबाइल होता था फिर भी हमारे वो दिन बड़े अच्छे होते थे कोई कनिस्टर को काट कर बजाने वाला बना के बांस की लकड़ी से बजाते थे और वही निगाव की बसीं भी या फिर गदुवे की बेल की पिपरी बना के बजाना कही धार में बैठ कर या फिर सब मिलकर जागर लगाना सबको अलग -अलग प्रकार के देवता बना के नचाना किसी एक को दास भी बनाया जाता था।
इन सब खेलों में मेरा पसंदीदा खेल हमेशा लुका छुपी रहा मुझे बड़ा आनंद आता था इस खेल को खेलने में हालंकि मैने बहुत शरारतें भी करी है।
हिटो दाज्यू न्हे जुले हरियाली डानो मां।
फिर आपण बचपन के याद करले उन डाना मैं।।
आप भी अपनी बचपन की यादों को साँझा करएगा जो आप ग्वाला जाकर करते थे ।
श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
( सर्वाधिकार सुरक्षित )
इस तरह के द्रश्यो को देखकर अपना भी बचपन याद आ जाता है कभी हम भी इसी तरह गायों को लेकर जंगल चले जाते थे कही आस पास कोई खेत में ककड़ी की बेल नजर आती तो टूट पड़ते थे चाहे वह ककड़ी का फूल भी नही झड़ा होता था उसे ही खा जाते थे।
तब के हमारे खेल भी बड़े अनोखे होते थे तब ना कोई मोबाइल होता था फिर भी हमारे वो दिन बड़े अच्छे होते थे कोई कनिस्टर को काट कर बजाने वाला बना के बांस की लकड़ी से बजाते थे और वही निगाव की बसीं भी या फिर गदुवे की बेल की पिपरी बना के बजाना कही धार में बैठ कर या फिर सब मिलकर जागर लगाना सबको अलग -अलग प्रकार के देवता बना के नचाना किसी एक को दास भी बनाया जाता था।
इन सब खेलों में मेरा पसंदीदा खेल हमेशा लुका छुपी रहा मुझे बड़ा आनंद आता था इस खेल को खेलने में हालंकि मैने बहुत शरारतें भी करी है।
हिटो दाज्यू न्हे जुले हरियाली डानो मां।
फिर आपण बचपन के याद करले उन डाना मैं।।
आप भी अपनी बचपन की यादों को साँझा करएगा जो आप ग्वाला जाकर करते थे ।
श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
( सर्वाधिकार सुरक्षित )
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