आज एक फौजी घर से विदा होकर निकल पड़ता है अपनी नौकरी के लिए दूर लेहल्दाख की पहाड़ियों की तरफ कंधे में काफी बड़ा बेग लटकाये जब वहाँ पहुँचता कुछ तो अपने जैसे लगते है कुछ अन्जान उन सभी चेहरों को जानना भी है और पहचानना भी है।
आज अकेला बैठा वह फौजी जिसे देश की रक्षा के लिए भेजा है अपनों से दूर जहाँ टेलीफोन की सुबिधा भी बड़े मुश्किल से है काफी निचे आना पड़ता है बात करने के लिए आज फौजी की अंतरआत्मा बेचैन हो उठती है।
सामने एक पेड़ पर कौवा बैठा हुआ है उसे देखरकर उसे अपनी घर की याद और ज्यादा आने लगी है कहते है जब हमारे घरो में कौवा घर के आस पास कॉव काँव करे तो कोई मेहमान आने वाला होता है मतलब एक संदेशवादक भी कहा जाता है।
ऐ कौवे यहाँ से उड़ कर चला जा मेरे पहाड़ हिमालय के उस पार जहाँ मेरा देश मेरा गांव मेरा घर है मेरा मुल्क देखकर आना सारे पहाड़ को कितना सुन्दर है और मेरे घर भी जाके आना जहाँ घर के पास काफ़ी पुराना बृक्ष है आम का वही मेरे घर की निशानी है। और घर आँगन में एक गागर होगी पानी की भरी हुई पानी पीकर आना और सामने बांस की डालिया होंगी काफी सारी वहाँ बैठ कर देखना मेरी ईजा मेरे बोज्यू और मेरी भूली क्या कर रही फिर मुझे यहाँ आकर बताना।
मेरी ईजा रोज मेरा रास्ता (बाट ) देखती रहती है और मन ही मन कहती है मेरा (च्येला ) परदेश से घर आएगा और अपने दुःख सुख मुझे बताएगा पर तू मेरी ईजू को कह देना इस साल मुझे छुट्टी नही मिली में अगले साल जरूर आऊंगा और मेरे लिए पोटली (पुन्तर ) बना के अखरोट रखना जिन्हें में बचपन में तेरे काठ के बक्से से चुरा कर खा जाता था।
दुतिया राखीबंधन में भुलु तेरी बड़ी याद आती है क्या करू दो रोटी के बेणी कारण तेरे पास नही आ सकता याद सब रहता है मेरी बेणी को कहना इस साल लड़ाई लगी है तेरा दादु अगले साल जरूर आएगा तेरे से राखी बँधवाने तू फिकर ना करना जल्द ही बेणी तेरे घर द्वार भेट्ने आऊंगा।
लेख
श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
( सर्वाधिकार सुरक्षित )
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