Friday, October 30, 2015

लुप्त होते नौले

हमारे घर उत्तराखंड पहाड़ में पानी के नौले हुआ करते थे अब भी है पर जिनकी दुर्दशा बेकार  हो चुकी है अपने अपने घरों से सुबह शाम पानी के लिए नौले की तरफ़ हाँथ में पानी की बाल्टी लिए चल पड़ती थी सारे गावं की महिलाएँ क्योँ की कुछ साल पहले तक पानी नौले धार से भरा जाता था सुबह हो या शाम सब महिलाओँ का नौले के सामने मिलना हो ही जाता था धीरे धीरे अब गावं में घर घर पानी के लिए नल लग गए पानी बिकने लगा बोतलों में बाज़ारों में अब पहले जैसा कुछ नहीं रहा  जो नौले के सामने पानी भरने के लिए एक दूसरे का सुबह से शाम तक मिलना हो जाया करता था वो सब बंद हो गया क्योँ की पानी जो मिलने लगा घर घर गावं के नौले अब सुने पड़ चुके है वो सुख चुके है उनकी धारे सुख चुकी है !

नौला वो होता जो दिखने मैं छोटा सा मंदिर जैसा बना होता है काफ़ी सुंदर सुंदर आकर्तियों के भी बनायें होते नौले जिसमें गऊ की आकर्ति विशेष बनी रहती है उसके मुँह से एक धार जैसी पानी की निकलती है जिस्से पानी भरने में बेहद सुविधा होती है नौले में प्राकर्तिक रूप से जल भरा होता है यह निर्मल जल का प्राकर्तिक स्त्रोत है नौले का जल बेहद ही मीठा होता है !

समय के साथ गावं में जल तो आया नलों में पर पानी की समस्या और ज्यादा बढ़ गई क्योँ की अब नलों में आवश्यकता अनुसार उतनी मात्रा में जल उपलब्ध नहीं हो पा रहा हैं  वो नौले जिनसे पानी भरा करते थे वो सुख चुके गावं के लोगों ने नौले से पानी भरना बंद कर दिया उस स्थान को पहले साफ़ सफाई का बेहद ख्याल रखा जाता था उसे पूजनीय स्थान भी माना जाता था पर उनकी देख रेख करना छोड़ा लोगों ने तो वो उनकी धार टूट गए सुख गए और क्योँ की नौले धारे सूखने की एक मुख्य समस्या यह भी है की जंगलों में जिन पौधों के होने से जल बनता था चीड़ बॉस देवदार आदि वृक्ष उनकों लोगों ने अपनी जरूरतों के लिए काट दिया या जंगलो को जला दिया जिस्से भूमि में नमी कम पड़ गयी जल की मात्रा खुद कम हो गयी  जिस कारण से नौले धार में जो प्राकर्तिक रूप से जो जल बनता था वो अब पूरी तरह से खत्म होने की कगार में आगया हैं यदि इन नौले धारें जल के प्राकर्तिक स्त्रोत को बचाना है तो वन विभाग द्वारा अधिक से अधिक संख्या में जंगलो में पेड़ पौधें लगाने होंगे और जंगलों को हर तरह बचाना होगा उनकी देख रेख करनी होगी जिस्से हम सब आने वाले सभी जल के भीष्ण संकट से बच सके  !!

धन्यवाद !!
लेख 

दीपा कांडपाल (गरुड़ बैजनाथ)

No comments:

Post a Comment