Wednesday, February 25, 2015

देवभूमि ,मातृभूमि ,जन्मभूमि यह है मेरी कर्मभूमि


जिस धरती में प्रकृति के नाना रूपों का श्रृंगार होता है वही तो मेरी जन्म भूमि है, जहाँ अनेक सांस्कृतिक कार्यो का मेल जोल होता है वही तो मेरी तपोभूमि है,जहाँ सब एक समान आपस में भाई चारा होता है वही तो मेरी मात्र भूमि है।
जहाँ स्वयं ब्रह्मदेव ने उसे यज्ञभाग का भागी बनाकर पर्वतों का स्वामित्व प्रदान किया वही तो मेरी भी भूमि है जो योगियों की योगभूमि और तपस्वियों की तपोभूमि है वही अपनी देवभूमि है,जहाँ अनेक तीर्थ धामों तथा हजारों-हजार देवस्थलों का धारक है उसी दिव्य उत्तरांचल देवल की तपस्थली है, वही प्राचीन देवल ग्राम मेरी जन्मभूमि है।
जहाँ प्रक्रति के विस्मयकारी दृश्य देखने को मिलते हैं, जहाँ महागर्तो में नदियों का भीषण घोष श्रवित होता है, जहाँ प्रक्रति के अपरिमित रूपों में विविध दृश्य देखने को मिलते हैं। जहाँ बाँज, बुराँश, पांगर, शाल, खैर, अँगू-अँय्यार, काफल, कनेर, वन्य प्रान्त हैं,जहाँ ब्रह्म कमल, बहुमूल्य वनोषधियाँ, मृतसंजीवनी जड़ी-बूटियाँ उगती हैं, जहाँ कस्तूरामृग आदि वन्य जीवों का निर्भय विचरण होता है,जहाँ सीढ़ीनुमा खेतों की ढालों में हरियाली लहलहाती है।
वही देवभूमि की पुण्य धरती मेरी मातृभूमि है। जहाँ प्रकृति के नाना रूपों में इस धरती का श्रृंगार होता है,वही मेरी काव्यमयी भूमि है।
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श्याम जोशी !
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