Wednesday, February 25, 2015

घर की सड़क

ये सड़क जाती है वो दूर कही पहाड़ी पर।
मेरे अपने गाँव मैं मेरी माँ की छाँव में।।

जो आस लगाये बैठी रहती है पेड़ की छाँव में।
राह देखती रहती है अपनों की उस आँगन में ।।

शाम होती ही पोंछ लेती है अपने आँचल से अपने आँसू। 
करती है बातें दीवारो से पूछती है पता अपने चिरागो का।।

ये सड़क पर जाने वाले मुसाफिर को इस सड़क को मेरे घर का भी पता बता देना और कहना माँ की अँखिया तुम्हें निहार रही है !

ये पहाड़ वो हमारे घर और घर में बैठी माँ की पुकार हम सब परदेशियों के लिए बुलाता है घर बुलाती है माँ !

श्याम जोशी

( सर्वाधिकार सुरक्षित )
ये पहाड़ वो हमारे घर और घर में बैठी माँ की पुकार हम सब परदेशियों के लिए बुलाता है घर बुलाती है माँ !

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