Monday, March 16, 2015

गांव की शादी

आज भी कभी गांव की शादी में जाता हूँ तो बचपन के दिन बड़े याद आते है आज जब भी कभी देखता हूँ वो फल की टोकरी ज़िन्दगी बचपन में चली जाती है।

कोई -कोई शादी में तो फल की टोकरी खाली आती थी दूल्हे के घर और आज भी उठा लेता हूँ उस में से एक दो फल कहते है न बचपन कभी भुला नही जाता है सही कहा है अक्सर तब बड़ा मज़ा आता था जब शादी रात की हो और दूल्हे वालो को रहने के लिया जहाँ जगह दी जाती है ये सब सामान वही रखा होता है और फिर हम क्या करते थे रात के समय में जैसे ही लाइट ऑफ होती थी टूट पड़ना फल के टोकरी पर सारी खत्म कभी -कभी तो जब कोई वहाँ गांव के बड़े लोग पहरे के लिए बैठे होते थे तो वो हमें लाइट बंद नही करने देते तो हम लोग बल्ब पर निशाना लगाते और बल्ब की कहानी खत्म फिर जब सुबह होती तो सब से पहले दूल्हे के पिता (बुबु ) का चिलाना ओरे ये नान तिनालं सब छोई टोकरी खालि कर हली रे और हम वहाँ से रफू हो जाते थे।

गांव की शादीशायद अभी कोई इस को पड़ेगा तो गाली मत देना वो मेरा प्यारा बचपन था वैसे देखने में बुहत सीधा था बस हरकते बड़ी खराब थी वैसे मैने एक शादी में दही चोरी कर के भी खायी है हुआ यु सब्जी में बहुत मिर्च थी और मुझे उनकी खिड़की में बहार से दही रखी मिली गया खा के आया।

अब चाए आप मुझे अपनी शादी में बुलाओ या न बुलाओ वो आप की मर्जी है पर ये मेरी बचपन की हरकते थी।

आप किसी ने भी की है इस तरह की हरकते अपने बचपन में तो शेयर कीजयेगा !
श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
( सर्वाधिकार सुरक्षित )

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