Monday, March 16, 2015

वीरान पड़ी घर की चौखट

वीरान पड़ी घर की चौखट
खुशियों का जमावड़ा
वीरान पड़ी घर की चौखट लगा रहता था जहां
चले गए हैं
जो नाम लेते तक नहीं
फिर से लौट आने का
मुरझाती चेहरे की झाइयाँ डबडबाती माँ की आँखे
खो चुके हैं जो अपने यहाँ से बुला रहे हैं
अपनों को जो हो चुके हैं पराये
अब तो आ जाओ लोट के
अब तो मेरी इन आँखों के आँसू भी सुख चुके है
ये आँखे अब तुम्हारा रास्ता निहारती है।।
श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
( सर्वाधिकार सुरक्षित )

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