ये है मेरे गांव के हरे -हरे खेत धान झुंगर की गुड़ाई चल रही है। जब कभी शाम को इन खेतों के पास से गुजरो तो ऐसा लगता है जीवन है तो यही फिर कही नही गांव की सारी औरतों को यह काम करते हुए देखकर बड़ा अच्छा लगता है। देखा जाय तो सबसे कठिन जीवन पहाड़ में औरत का है घर का काम भी और बाहर (बंड) का काम फिर भी ये लोग सारा काम बड़ी आसानी से कर लेते है वैसे तो अब पहले जैसा नही रहा फिर भी वहाँ का जीवन नारी के लिए
संघर्षपूर्ण है ।
संघर्षपूर्ण है ।
कभी कभी -कभी ऊपर पहाड़ी पर बैठ के देखता हूँ इन लोगों को काम करते हुए तो मन बड़ा बेवस सा हो जाता है।
एक शब्द में कहु तो अपनी पहाड़ की माताओं के लिये !
जय हो तुम्हारी ना धुप देखतो है ना बरसात ,
बस यही सोच कर निकल पड़ते हो सुबह-सुबह हमारी ज़िन्दगी की यही है बात।
श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
( सर्वाधिकार सुरक्षित )
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