Saturday, September 19, 2015

असोजक मेहड़ पहाड़क च्यलि लिजी दुःख भरी


असोजक मेहड़ पहाड़क च्यलि लिजी दुःख भरी

उत्तराखंड का एक दूर छोटा सा सुंदर गावँ जिसमे बेहद कम लोगों के घर बस्ते थे  इस गावं के लोगो का हमेशा शुरु से जीवन सिर्फ कृषि पे निर्भर था यहाँ वो सुख सुविधाएँ नहीं आई थी जो दूजे पहाड़ के शहर वाले गाँवों में आ चुकी थी इस गावँ का जीवन सिर्फ कठिन मेहनत परिश्रम पे टीका था जितना जैसे काम करेंगे उसी से उनका गुज़ारा चलेगा और तब एक बार इसी पहाड़ के शहर में अच्छे घर में पली बड़ी एक बेटी का विवाह इसी छोटे से दूर के गावं में हो जाता है।

 अपना जीवन जैसे कैसे काटने लगती वह ससुराल के काम में इतना व्यस्त हो जाती की अपने माईके ही नहीं जा पाती वो सोचती अब जाऊंगी तब जाऊंगी ऐसे ही दिन काटते काटते  असोज का महीना भी लग जाता जो की उसका ससुराल में पहला असोज है असोज क्या आया उस बेटी के लिए और भी काम बढ़ गया तब उस काम में फस कर अकेली पड़ी खुद को आईने में देख कर रो रो के अपनी माँ (ईजा) को याद करके खुद अपने आप से असोज के काम को बया कर रही है।

ईजो तुईल म्यरो ब्याह यौ गौं में किले करो यान असोजा मेहड़ दिन बड़ौ कठिन लांगड़ भैगो बहुते काम हैगो मिएह य सरासम  (माँ तूने मेरी शादी इस गावं में क्योँ कि यहाँ असोज के महीने के दिन बड़े कठिन लगने लगे बहुत काम बढ़ गया है मेरे लिए इस ससुराल में) असोज में धान पाक जानी धान काटड़ मनड़ घर में दुई दिन सुकुड़ बटुड में लग जानी  (असोज में धान पक जाते है उनको काटना मानना फिर घर में दो दिन सुखाने फटकने में लग जाता है )  धानो परावा लूट लगौड़ भाइ काहड माहड़ समेटड हैजा (धान की सुखी घास उसको इकठा भी करना पड़ता है मड़ुआ झुँगर भट्ट घौत इत्यादि को समेटना हो जाता है ) गाज्यो ले काटड़ हैजा सुकुड़ तपौड लूट ले लगौड़ पड़नी (घास भी काटनी हो जाती है घास को सुखा के ढेर भी लगाना पड़ता है)  गाढ़ा में ग्यो बोह मो सारण भौई माटा ढेलो को ले तोड़नी टुक दान खनड पड़नी खेत में गेंहू बोने के लिए गोबर इकठा कर खाद बनाते है  मट्टी को तोड़ना पड़ता है खेत के किनारे भी खन्नै पड़ते है।

घरक ले सब काम करण पड़ जा राति कल्यो बनौड़  दिनक गाडम बे अबै भात बनौड़ फिर भानाकुना कपड़ सब करण पड़ जा आंखिर में रातक खा ले साग रवट बनबै खबे सारे दिन थाक बे तब सिजानु मि ईजा  (घर का सब काम करना पड़ जाता है सुबह का नाश्ता दिन का भात बनाना फिर बर्तन कपडे सब करके  आंखिर में रात को सब्जी रोटी बनाके खाके सारा दिन थक के सो जाती मैं माँ ) यौ असोज मेहडल मीके ईजा आज मैतेक की याद ख़ूब दिलदेय (यह असोज के महीने ने मुझे माँ आज माईके की ख़ूब याद दिला दी ) मैतम कभै पत नि लाग की असोजक  मेहड़ कभे आ कभय गो याअ एक एक दिन काटड़ बड़ो कठिन है गौ माईके में कभी पता नहीं लगा की असोज का महीना कब आया कब गया यहाँ एक एक दिन काटना मुश्किल हो गया है।

 ईजा म्यरी दास बहुते ख़राब हैयगे हात खुटा सब फाटागिना अपुडी  सुध न्हात मैके कौस छी मी कौस है गिन (माँ मेरी दशा बहुत ख़राब हो गयी हाँथ पाँव सब फट गए अपनी सुध तक नहीं मुझे कैसी थी मैं कैसी हो गयी) उसके खुद से बात करते हुए दिन बे दिन काम में यू ही निकलते गए उस साल के बाद उस बेटी ने अपने गावँ ससुराल में अपने काम से ऐसे ही कितने ही असोज पे असोज समेट दिए।


यह अकेले उस बेटी की बात नहीं है यह पहाड़ में असोज में फसी हर उस बेटी महिला की बात है जिसको अपने के लिए एक पल की फुर्सत तक नहीं मिल पाती।


धन्यवाद
लेख
दीपा कांडपाल (उत्तराखंड)
 ( सर्वाधिकार सुरक्षित )

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