पहाड़ तेरे बारे में
25-09-2015 उत्तरांचल दीप में मेरी यह रचना
सोचूँ क्या लिखूँ पहाड़ तेरे बारे में चलो कुछ शब्द लिख ही देती हूँ।
हिमालय जिसपे बर्फ की सफ़ेद चादर ओढ़ी हुई कठिन जिसके रास्ते ।।
रास्ते टेड़े मेड़े भले ही पर सफ़र तय कर के पहुँचाने वाले मंजिल तक ।
मंज़िल मेरी वो जहाँ हैं जिसमे बस्ता मेरा एक प्यारा सा घर परिवार।।
परिवार बधा स्नेह की एक डोरी से जिसको चलाती मेरी प्यारी सी माँ ।
माँ स्नेह ममतामई मेरी जो सेंकती अब भी मिट्टी के चूल्हें पे रोटियाँ ।।
रोटियाँ मड़ुआ गेंहू बाजरा की स्वादिस्ट आटा पिस्ता जिसका चक्की।
चक्की घरेलु जो घट घट चलती हवा के संग किनारे जो बस्ती नदियाँ ।।
नदियाँ बहती निर्मल स्वच्छ शीतल जल बुझाती जो हम सब की प्यास ।
प्यास वो जो मुझें मेरे जो उत्तराखंड जन्मभूमि में खड़े हर पर्वत पहाड़ ।।
पहाड़ और क्या लिखूँ तेरे बारे में जो लिखूँ उसमे मेरे हर शब्द यहाँ कम है।।
धन्यवाद !!
कविता
दीपा कांडपाल (गरूर बैजनाथ )
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
25-09-2015 उत्तरांचल दीप में मेरी यह रचना
सोचूँ क्या लिखूँ पहाड़ तेरे बारे में चलो कुछ शब्द लिख ही देती हूँ।
हिमालय जिसपे बर्फ की सफ़ेद चादर ओढ़ी हुई कठिन जिसके रास्ते ।।
रास्ते टेड़े मेड़े भले ही पर सफ़र तय कर के पहुँचाने वाले मंजिल तक ।
मंज़िल मेरी वो जहाँ हैं जिसमे बस्ता मेरा एक प्यारा सा घर परिवार।।
परिवार बधा स्नेह की एक डोरी से जिसको चलाती मेरी प्यारी सी माँ ।
माँ स्नेह ममतामई मेरी जो सेंकती अब भी मिट्टी के चूल्हें पे रोटियाँ ।।
रोटियाँ मड़ुआ गेंहू बाजरा की स्वादिस्ट आटा पिस्ता जिसका चक्की।
चक्की घरेलु जो घट घट चलती हवा के संग किनारे जो बस्ती नदियाँ ।।
नदियाँ बहती निर्मल स्वच्छ शीतल जल बुझाती जो हम सब की प्यास ।
प्यास वो जो मुझें मेरे जो उत्तराखंड जन्मभूमि में खड़े हर पर्वत पहाड़ ।।
पहाड़ और क्या लिखूँ तेरे बारे में जो लिखूँ उसमे मेरे हर शब्द यहाँ कम है।।
धन्यवाद !!
कविता
दीपा कांडपाल (गरूर बैजनाथ )
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
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