Monday, September 28, 2015

तर्पण श्राद्ध पित्रपुजन

पितरों के प्रति श्रद्धा आस्था का पर्व श्राद्ध भाद्रपद की पूर्णिमा एवं आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक का समय पितृ पक्ष कहलाता है इसलिए साल में यह पितरों का पर्व माना जाता है जिसमें कहाँ जाता है मनुष्य साल में अपने पितरों को याद करे उनका पूजन करके तर्पण करे हिन्दूधर्म के अनुसार प्रत्येक शुभ कार्य के प्रारम्भ में माता-पिता पूर्वजों को नमस्कार प्रणाम करना हमारा कर्तव्य है हमारे पूर्वजों की वंश परम्परा के कारण ही हम आज यह जीवन देख रहे हैं इस जीवन का आनंद प्राप्त कर रहे हैं !

आश्विन मास के पितृपक्ष की मान्यता यह है की दिवगंत परिजन आत्मा रूप में अपने बच्चों (संतान) के घर आते है और पुरे पितृपक्ष वो वहाँ वास करते है तब उनकी संताने उनकी तृप्ति के लिए उनका सेवा पूजन करती है उनकी सेवा के लिए वो जल अर्पण करते है ब्राह्मणों को भोजन कराते है भेंट देते है इसके अलावा तिल कुश जौ दूध शहद पितरों को समर्पित कर गाय  कौआ चींटी और देवताओं के लिए भोजन का भाग निकालकर खुले में रख देते है इस सेवा भाव का उद्देश्य पितरों को प्रसन्न करने का प्रयास होता है !

श्राद्ध करने वाला व्यक्ति पापों से मुक्त हो परमगति को प्राप्त करता है पितृपक्ष को पितरों की मरण तिथि को ही श्राद्ध करते है अमावस्या को कुल के उन सर्वपितृ लोगों का श्राद्ध किया जाता है जिनकों नहीं जानते ब्रह्मपुराण के अनुसार श्राद्ध न करने से पित्तर गणों को दुख तो होता ही है साथ ही श्राद्ध न करने वालों को कष्ट का सामना भी करना पड़ता है वेदों के अनुसार श्राद्ध तर्पण माता पिता के सम्मान का भाव रखता है पितृपक्ष में ब्राह्मण भोज का महत्व माना जाता है है यदि ब्राह्मण को भोजन न करा सकें तो भोजन का सामान ब्राह्मण को भेट कर देना चाहिए !

तीर्थो में जाके स्नान आदि करके या घर पे ब्राह्मण गाय परिवार की बेटियों को प्रेम से भोजन करा के दान देके हम अपने पूर्वजों को इन सोलह श्राद्ध में याद करके उनकी आत्माओं को संतुष्ट करते है उन्होंने जिस भी योनि में जन्म लिया हो उन्हें वहीं अच्छा भोजन मिल जाए यही सोचते है ऐसा कहाँ जाता है की श्राद्ध से संतुष्ट होकर पित्तरगण श्राद्ध करने वालों को दीर्घायु धन सुख और मोक्ष प्रदान करते हैं हमारा सोचना यहीं है की हमारे पूर्वजों को किसी भी प्रकार की तकलीफ़ न हो उन्हें भोजन की प्राप्ति हो इसी भावना के वशीभूत होकर  हम सब यह  श्राद्ध पर्व करते है !

लेख
दीपा कांडपाल (गरूर,बैजनाथ) 
(सर्वाधिकार सुरक्षित)

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