Wednesday, October 7, 2015

हम सब की आमा दादी,नानी

                                                       उत्तराँचल दीप दिनांक 07-10-2015 
मेरी (हम सब) की आमा (दादी,नानी) कितनी अच्छी होती है..कितना प्यार देती.. दुलार देती..क्योँ की आमा वो होती है..जो ईजा(मम्मी) बौज्यु (पापा) की माँ होती है..(हमारे उत्तराखंड कुमाऊँ में ईजा की माँ को भी आमा कहते बौज्यु की माँ को भी आमा कहते है) आमा हमें ईजा (मम्मी ) बौज्यु (पापा) के डॉट से बचाती..बुरी नज़र लग जाए..उससे बचाती..हर किस्से कहानियाँ वो सुनाती है।
आमा अधिकतर घर (गाँव) में ही रहती..वो कहती जिस उत्तराखंड की पावन भूमि पे मैंने जन्म लिया..उसे छोड़ के कहीं और न जाउंगी..अपने खेत बाड़े अपनी आँखों के सामने बंजर नहीं होने दूंगी..जब तक हुँ में तब तक किसी और के हवाले न करुँगी..चाहे तो खुद करुँगी भले कस्ट हो इसमें इतना सारा..कहती वो चाहे जतन करो तुम जितना..मैं तुम संग कहीं और न बस्ने आउंगी।
खेत बाड़े फल फूल सब वो उगाती..कोई तोड़ता नज़र डालता उसको डॉट के वो भगा देती धिनाई (दूध,दही,घी) सब होता घर (गाँव) उसको याद सदेव ही हमारी आती..तब वो एक आस लिए राह हमारी छुटियों की देखती.. आयेंगे मेरे नानतिन (बच्चे) जब घर (गॉव).. उनको अपनी आँखों के सामने बैठा के..अपने हाथों से खूब खिलाती..येही सोच लिए हर चीज़ संभाल के रखती है।
उम्र से भले ही बड़ी बूढ़ी हो पर तजुर्बे में सबसे आगे रहती वो..चेहरे पे एक विन्रम चमक लिए..नीला घाघरा लपेटे..उसपे सूती साडी का पल्लू लिए.. होटों पे मंद मंद मुस्कान लिए लगती कितनी प्यारी वो..हिम्मत साहस कूट कूट के भरा जिसके अंदर..डरती किसी से भी न वो..आमा बूढ़ी होते हुए भी हमारे घर का एक मज़बूत खम्बा रहती..सच में कितनी प्यारी होती है मेरी (हम सब) की आमा।
धन्यवाद
लेख
तस्वीर - कमल जोशी जी
दीपा कांडपाल (गरुड़ बैजनाथ)
(सर्वाधिकार सुरक्षित)

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