पहाड़ का रहने वाला हूँ पहाड़ी बात करता हूँ।
उत्तरांचल दीप 
अंक -17-09-2015
वो पहाड़ जहाँ मेरा जन्म ,भरण पोषण हुआ जहाँ मैने ज़िन्दगी का सफर तय किया जहाँ से हिमालय की बर्फीली पहाड़ियों को देखा जा सकता है वहाँ मेरा बचपन बीता है, मैं कैसे भूल सकता हूँ उस जगह को जहाँ से मुझे इतना प्यार मिला बचपन मेरा एक साधारण परिवार से गुजरा है, उस घर से जहाँ मडुवे की रोटी और दिन का भात भट्ट कि चूंटकानि होता है।

मेरे घर परिवार की दिनचर्या आज भी उसी तोर तरीके से चलती है जैसे सालों पहले हमारे पूर्वज बता कर गए है, आज भी तांबे के फ़ुंगव मैं पानी पीते है जहाँ आज भी सुबह उठ कर सबसे पहले कौवे को रोटी दी जाती है, घर में ना ही कोई कुर्सी लगा कर या डाइनिंग टेबल खाना नही खाता है, हमारे यहाँ लकड़ी का चौक उसमें बैठ कर खाना खिलाया जाता है, वो चौक भी अलग -अलग प्रकार के बने होते घर के छोटे सदस्य के लिए छोटे चौक बड़ो के लिए बड़े चौक और हमारा घर का खाना आज भी उसी चूल्हे में पकता है। पालक का कपिया ( काफा ) और भट्ट के डुबको का बड़ा दीवाना हूँ, जब भी कभी घर जाता हूँ तो अपने पहाड़ी ब्यंजनो का स्वाद जरूर लेता हूँ।

श्याम जोशी अल्मोड़ा (उत्तरांचल )


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