Wednesday, February 17, 2016

लोगों के साथ साथ प्रक्रति ने भी छोड़ा साथ उत्तराखंड का

यह बात सोचने को मजबूर करेगी हर आदमी को जो उत्तराखंड से जुड़ा हैं आज वहा के हालात दयनीय हो चुके है बारिश नही होने के कारण स्तिथी इतनी बेकार हो गयी है लोगों ने इस बार गेंहू की फसल तक नही बोई है ।

मैं इन पाँच महीनों से देखता आया हूँ वहा का जान जीवन खत्म होने के कागार पर है ।वो क्यों वहा का जीवन सब प्रक्रति पर आधारित है बारिश न होने के कारण जल स्रोत सुख गए है जिन नदियों से हम अपने आलू के धान के खेतों में पानी ले जाते थे वहा अब बस झाड़ियां ही नजर आती है जिनमें तेंदुआ और सुवर दिखाई देते है यहाँ तक वो अब हमारे घरों में भी आने लगे है ।

हमारे घर के लोगों का बाहर जाना मुशिकल हो गया है इसी कारण लोगों ने जानवरों को भी बेच दिया है वो चरने जाते है तो जंगली जानवरों का शिकार हो जाते है एक बड़ा ब्यवसाय हुआ करता था बकरी पालन पहाड़ के काफी लोगो की दिनचर्या थी । तेंदुआ के डर से यह ब्यवसाय भी खत्म हो चूका है कुछ दिन पहले मेरे सामने हमारे चाचा जी की 7 बकरी एक साथ खा दी बड़ा दुःख होता है यह वही पहाड़ था जहाँ आदमी उस समय हर  चीज अपनी घर की खाता था ।

अब बात करू पानी की जब अभी से हालात इतने खराब है मैने अल्मोड़ा से रानीखेत तक काफी गाँवो के लोगों से बात की उनकी एक बड़ी समस्या जो है पानी लोगों का कहना है हम जंगली पशु तो पाल नही सकते है जंगली जानवरों की डर से हमारे ब्यवसाय का साधन है तो वह है भैंस  उसका दूध निकालकर हम लोग खोया बनाते है।
यही हमारे घरों की रोजी रोटी है इसके लिए चारा पानी की काफी जरूरत है जो हमारे पहाड़ में इस समय आ गया है सुखा ग्रषित उत्तराखंड हम लोग जाए तो कहा जाएं करें तो क्या करें ।

साल पहले एक जल योजना शुरू हुई थी पुरे पहाड़ में काफी बड़ी योजना थी उसके ये हाल हुआ वो सारे पाईप लाइन आप को खुदी मिलेगी पर वहा कोई पाईप नही दिखेगा कारण क्या काम वहा के ठेकदारों के हवाले किया उनके बारे में कहना क्या सबको पता है ।

मैं बात करता हूँ उन लोगो जो हमारे पहाड़ से बाहर बस गए है वहा के बाशिंदे हो गए है जो कहते है हम अपनी संस्कृति को बाहर रहकर बचा रहे है । में उन लोगों से बस एक गुजारिश करूँगा जो आप कार्यक्रम परदेशों में कर रहे हो । एक बार अपने पहाड़ जाके वहा अपने भुमिया देवता की पूजा तो करए अन्न देवता जो सभी देवों में बड़े है । और सभी को याद होगा हमारे पहाड़ो में पहले हर फसल के समय भुमिया पूजा जाता है ।


क्या पता ये सब करें तो हमारे पहाड़ों की हरयाली और खुशहाली वापिश आ जाएं।

लेख
श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
( सर्वाधिकार सुरक्षित )
9876417798

Wednesday, February 3, 2016

पहाड़ में शराब या शराब में पहाड़

हमारे पहाड़ विकास की दौड़ मॆं भले ही पीछे हों लेकिन आधुनिकीकरण के नाम पर यहाँ वाइन बार अवश्य खुल रहे हैं।यहाँ मुख्यमंत्री की नशा मुक्त प्रदेश योजना उल्टे पाँव चल रही  है।पहाड़ों के अधिकाँश गाँव पहले से ही नशे मॆं डूबे हैं,ऐसे मॆं इस तरह बारों के खुलने से यहाँ के युवाओं को नशे के सुलभ रास्ते  मिल रहे हैं।

हमारे पहाड़ विकास की दौड़ मॆं भले ही पीछे हों लेकिन आधुनिकीकरण के नाम पर यहाँ वाइन बार अवश्य खुल रहे हैं।यहाँ मुख्यमंत्री की नशा मुक्त प्रदेश योजना उल्टे पाँव चल रही  है।पहाड़ों के अधिकाँश गाँव पहले से ही नशे मॆं डूबे हैं,ऐसे मॆं इस तरह बारों के खुलने से यहाँ के युवाओं को नशे के सुलभ रास्ते  मिल रहे हैं।

पहाड़ों की भौतिक विषमता संशाधनों का अभाव यहाँ के युवाओं की बेरोज़गारी का मुख्य कारण है।रोजगार की तलाश में या तो युवा गाँवों से शहरों को पलायन कर जाते हैं,या रोजगार की तलाश मॆं इधर से उधर भटकते रहते हैं।समुचित रोजगार ना मिलने के कारण युवाओं में हीन भावना घर कर जाती है,जिसका उपाय युवाओं को नशे में नजर आता है.ऐसे मॆं क़दम क़दम की दूरी पर शराब की दुकानें तथा बार खुलने से यहाँ के भटकते युवाओं की जिन्दगी दिन प्रति दिन बदतर होती जा रही है।

मैं नशे के इस दर्द को अनुभव कर सकती हूँ,  क्योंकि मेरे घर से 10 किलोमीटर की दूरी पर  वाइन बार खुलने से मैं यहाँ के युवाओं की जिन्दगी बर्बाद होते हुए देख रही हूँ। साथ में उनके परिवार की भी बच्चों के पढ़ाई पर असर पड़ता है जो बच्चें अभी छोटे है उनके मानसिक संतुलन पर ख़ासा असर पड़ता है। 

पहाड़ो में रोजगार के साधन काफी है जिन्हें हमारी सरकार अनदेखा करती है अगर यही सरकार हर गांव में सब्जी उगाने के लिए या फिर कई और रोजगार है गाँवो में जाकर उनको कुछ अपनी तरफ से कुछ गांव वाले मदद करके वहाँ साग सब्जी और फलों का अच्छा रोजगार बन सकता है।  जिसे हम दूसरे राज्य में भी बेच सकते है पर हमारी सरकारें कहती है गाँव वालो को भांग की खेती करो भाँग चरस  इन चीजो ने अभी हमारे पहाड़ को खोखला बना के रख दिया है। 

यदि पहाड़ के युवाओं को शारीरिक,मानसिक तथा भौतिक रुप से सम्पन्न बनाना हो तो सरकार को पहाड़ों में रोजगार के नए आयाम तलाश करने होंगे,तथा शराब की दुकानों  वाइन बारो अवैध रुप से बनायी जा रही शराब तथा भाँग चरस आदि से नशे के बाज़ार को धुआँ देने वाले लोगों के खिलाफ़ सख्त कार्यवाही करनी होगी ।

मुझे दुःख तब होता है में भी उसी गांव के बेटी हूँ जहाँ पर रोजगार के साधन कम है हमारे माँ बाप हमें बड़ी मुश्किलो से पढ़ाते है।  और हमारे आज की पीढ़ी इसको ना समझ के नसा को अपना शौक मान रही है। इन बेकार की लत्तो से जब तक हमारी युवा पीढ़ी का पाला नही छूटेगा तब तक कुछ होना सम्भव नही  है। 


मीनाक्षी बिष्ट 
गाँव - धानाचूली (नैनीताल )