Monday, June 29, 2015

बासुली सेरा बग्वाली पोखर

बासुली सेरा बग्वाली पोखर अत्यंत मनभवान दिखता है इन खेतों पर आजकल रोपाई की जा रही है  इस बार पहाड़ो में जल्दी बारिश न होने के कारण रोपाई लेट हो चुकी है।

द्वाराहाट  को जाते समय काफी अच्छी जगह मिली देखने को टेडी मेडी सड़के आस पास कभी चीड़ के पेड़ तो कभी देवदार या फिर बांज के पेड़ काफी देखने योग्ग जगह है।


आप लोग भी गांव से जुडी हुई यादोँ को ताज़ा करे और इस मंच पर साँझा करें!

हमारा उदेश्य उत्तराखण्ड़ की सुंदर एवं रमणीय स्थान, ऐतिहासिक स्थान ,धर्म स्थलों की तस्वीरों के साथ और उन से जुडी जानकारी को दिखाना ताकि जो लोग पहाड़ से बाहर रह रहे हो और जिनक जन्म वहाँ नही हुआ है। उन लोगो कोअपनी संस्कृति से परिचित कराना।

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श्याम जोशी
फोटोग्राफी - श्याम जोशी ( बासुली सेरा बग्वाली पोखर)

Tuesday, June 2, 2015

पहाड़ों की रीढ़ और आधी आबादी

''आधी आबादी'' एक ऐसा शब्द जो इस देश में पुरुषों की तुलना में महिलाओं का अनुपात बताने के लिये प्रयोग किया जाता है,और हर बार की जनगणना में यह अनुपात पुरुषों की अपेक्षा कम ही रहता है,तो वास्तविकता यह हुई कि यह शब्द महिलाओं की संख्या के साथ पूर्ण न्याय नहीं करता,चूँकि अब यह शब्द बहुतायत प्रयोग हो रहा है यहाँ तक की सरकारी विज्ञापनों तथा बड़े बड़े समाचार पत्रों में,तो मेरे जैसे नौसिखिये लेखक लेखिकाओं के लिऎ इसका प्रयोग करना कोई 'तीन लोक से मथुरा न्यारी' नहीं होना चाहिये.हालाँकि अन्तरात्मा की आवाज सुनी जाए तो यह शब्द न्याय करता नजर नहीं आता है।


चूँकि मेरा विषय पहाड़ों में रहने वाली महिलाओं पर केंद्रित है,जहाँ स्थिति,कुछ पहाड़ी स्थानों को छोड़ दिया जाये तो काफी हद तक सही है, इसलिए मुझे यह शीर्षक देने में ज्यादा तकलीफ नहीं हुयी मेरी तरह जिसने भी पहाड़ों के जीवन को करीब से देखा हो,जिया हो,वह यह तो अवश्य मानेगा कि यहाँ की महिलायें निश्चित तौर पर कुछ विशेष शक्तियों से युक्त हैं,वह शक्तियां शारीरिक और मानसिक दोनों रूपों में हैं.ये शक्तियां इनमें जन्मजात होती हैं,या फ़िर पहाड़ों के हालात इनमें ये शक्तियां भर देतेहैं,इनमें से किसी एक का निर्धारण करना कठिन है,हो सकता है ये शक्तियां इन दोनों का गुणनफल हों,कारण जो भी हो ये परस्पर मिलकर यहाँ की महिलाओं को कर्मठ बनाती हैं।
   


यहाँ की सभी महिलाओं की कहानी अमूमन एक सी है,जिनकी दिनचर्या सुबह 4 बजे से शुरु होकर रात के 11 बजे खतम होती है.मैं अपने अनुभवों के आधार पर कहूँ तो,सुबह के 4 बजे उठकर महिलाएँ घर के ज़रूरी काम निपटाकर,4-5किलोमीटर  दूर जंगल जाती हैं,जहाँ से जानवरों के लिएपत्तियाँ,चाराआदि लाती हैं.घर आने पर पानी भरने दूर नालों आदि प्राकृतिक स्त्रोतों पर जाती हैं,जिनके घर में स्कूल जाने वाले बच्चे  हैं,वे निश्चित तौर पर इससे बच जाती हैं,क्योंकि बच्चे स्कूल जाने से पहले पानी भर कर जाते हैं,दोपहर के भोजन के बाद महिलाएँ खेतों में नज़र आती हैं,जहाँ ये शाम तक कमरतोड़ मेहनत करतीं हैं.दिनभर के शारीरिक श्रम के बाद जब ये शाम को घर लौटती हैं तो लगभग 60%घरों के पुरुष शराब पीकर घर पहुंचते हैं,यह प्रतिशत स्थान या शराब की उपलब्धता के आधार पर घट बढ़ सकता है किन्तु नगण्य नहीं हो सकता।
   


समाज भले ही पुरुष प्रधान  हो किन्तु यहाँ का जीवन 'स्त्री कर्म प्रधान' है.पूरे साल महिलायें खेतों मॆं काम करती हैं,लेकिन जब फसल तैयार हो जाती है और बेचने का समय आता है तो पुरुष प्रधान समाज जाग उठता है,वह फ़सल लेकर मंडी जाता है और खुद को इतना गौरवान्वित महसूस करता है,मानो सारी फ़सल उसने अकेले के दम पर एक रात में उगायी हो.,औऱ वह करे भी क्यों ना क्योंकि महिलाओं को तो हिसाब किताब आता नहीं और जिन्हें आता भी है वो पति परमेश्वर से आगे जाकर ये काम नहीं करना चाहती आखिर संस्कार भी तो कोई चीज़ है।


जो बचपन से हर लड़की को सिखाया जाता है  कि पति के रहते बाहर के काम नहीं करोगी पर अफसोस बाहर के  काम मॆं केवल हिसाब किताब रक्खा गया खेतों के काम से लेकर बाकी सब काम तॊ घर के काम हैं,जो हर लड़की को आने चाहिये.इसलिए यहाँ महिलाओ को  आता  है तो बस मेहनत करना और शराबी पति को    
झेलना.बहुत कम घर ऐसे होंगे जहाँ पुरुष बैठकर महिलाओं को उनकी मेहनत का हिसाब बताने का कष्ट करते होंगे.अगर ये महिलाएँ खेतों में जी- तोड़ मेहनत ना करें तो शायद ही यहाँ के पुरुषों के पास मंडी जाने को कुछ हो।
 
 देश में एक और जहाँ महिला के अधिकारों और आरक्षण की बात होती है वहीँ पहाड़ों की महिलाओं की स्थिति को देखकर लगता है यहाँ खेतों में काम करने का उन्हें पूर्ण आरक्षण प्राप्त है जिसमें पुरुषों का अधिकार ना के बराबर है.हाँ कुछ सभ्य घर के पुरुष जरूर इसमें दखल देते हैं।
   
इन पहाड़ों में ये महिलाएँ सच में  यहाँ की बैकबोन हैं...जिन्हें यकीन ना हो रहा  हो वो कुछ दिन पहाड़ों के गाँव में ज़रूर बितायें।
             
( सर्वाधिकार सुरक्षित )
मीनाक्षी बिष्ट (नैनीताल ) उत्तरांचल