Wednesday, May 4, 2016

गर्जिया देवी



उत्तराखंड देवभूमि में प्रवेश करते ही पग पग पे कण कण में हमें देवी देवताओं का आभास होने लगता है क्योँ की हमे वहां पे अद्धभूत अद्धभूत मंदिर देवालयों के दर्शन होते चले जाते है जो मंदिर देवालय आज से नहीं कई वर्षो से है कोई देव स्थान बेहद ऊँची पहाड़ी पे कोई नीची पहाड़ी पे कोई घने जंगलों में कोई नदियों में  हर एक देवालय की अपनी अपनी विशेष महिमा है इन्हीं मंदिर देवालयों में उत्तराखंड की गर्जिया माँ के भी बेहद ख़ूबसूरत से दर्शन होते है जिनकी महिमा अपरम्पार है गर्जिया देवी मन्दिर उत्तराखंड रामनगर से लगभग १५ किमी की दूरी पे स्थित है यह एक प्रसिद्द मन्दिर है ये मन्दिर कोसी नदी के तट पर एक टीले पर बसा है कहते है की ये टीला कोसी (कौशिकी) नदी में ऊपरी क्षेत्र से बह के इस स्थान पे आया था और जब भैरव ने प्रतिमाओं को बहते हुए देखा तो उन्हें रोकना चाहा इस पर भी वह न रूकीं तो भैरव ने कहा ठहरो बहन ठहरो तथा यहीं पर मेरे साथ निवास करो भैरव के प्रयास से मां गर्जिया इसी स्थान पर उपटा में निवास करने लगी  भगवान शिव की अर्धांगिनि पर्वतराज हिमालय की पुत्री मां पार्वती को ही गिरिजा नाम से पुकारा जाता है और इन्ही माँ की इस मंदिर में में पूजा की जाती है |

गर्जिया माता मंदिर वर्षो पहले से यहाँ छोटी छोटी मूर्तियां लोगों को टीले पे दिखाई दी तब टीले पे चढ़ने का कोई मार्ग भी नहीं था उन लोगों को उस स्थान पे माँ के होने का अद्धभूत एहसास हुआ तब लोग टीले पे चढ़ने के लिए घास को पकड़ पकड़ के ऊपर चढ़ते थे इस मंदिर के आस पास बेहद भयानक जंगल थे टीले के पास मां दुर्गा का वाहन शेर भयंकर गर्जना किया करता था कई बार शेर इस पहाड़ी टीले की परिकर्मा करता हुए भी लोगों को दिखाई देता था फिर भी माँ के दर्शन के लिए इस मंदिर में भक्तजन जरूर आते थे और आज धीरे धीरे करके इस मंदिर की मान्यता इतनी बढ़ गई की लोग दूर दूर से माँ के दर्शनों के लिए आते है अब वहां पे माँ के मंदिर में भक्त आराम से दर्शन कर सकते है मंदिर में कोसी नदी पर बने पुल को पार कर उतर कर सीढियों द्वारा चढ़ के मंदिर तक पंहुचा जा सकता है अब वर्तमान में इस मंदिर में गर्जिया माता की ४.५ फिट ऊंची मूर्ति स्थापित है इसके साथ ही सरस्वती गणेश जी तथा बटुक भैरव की संगमरमर की मूर्तियां मुख्य मूर्ति के साथ स्थापित हैं |

हर भक्त माँ गर्जिया के पास कोई न कोई अपनी मन की मुराद पूरी होने की उम्मीद लेके आता है यहाँ सीढ़ियां चढ़ के पहले माँ के दर्शन करता है माँ को भेट स्वरुप जटा नारियल लाल वस्त्र सिन्दूर धूप दीप आदि चढ़ा कर वन्दना करता है और फिर माता गिरिजा की पूजा करने के बाद बाबा भैरव को चावल और मास (उड़द) की दाल चढ़ाकर पूजा अर्चना करता है पूजा के विधान के अंतर्गत माँ की पूजा के बाद भैरव की पूजा को आवश्यक माना जाता है कहा जाता है कि भैरव की पूजा के बाद ही मां गिरिजा देवी की पूजा का सम्पूर्ण फल प्राप्त होता है जब भक्तों की भक्ति से माँ प्रसन्न हो जाती है तो भक्तों की मनोकामना पूर्ण जरूर हो जाती है तब यहाँ वही श्रद्धालु घण्टी या छत्र चढ़ाने जरूर आते है |

पर्वो त्योहारों में तो यहाँ की रौनक देखते हुए बनती है जैसे कार्तिक पूर्णिमा गंगा दशहरा नव दुर्गा शिवरात्रि उत्तरायणी बसंत पंचमी आदि में पावनी कौशिकी (कोसी) नदी में स्नान करने के लिए माँ के दर्शनों के लिए भक्तों की भारी संख्या में भीड़ उमड़ती है यहां का मौसम एक दम सुहावना ख़ूबसूरत वातावरण शांति एवं रमणीयता का एहसास दिलाता है गर्जिया मंदिर तीर्थ स्थल पर भक्तों की पूर्ण आस्था है यहां आए भक्त माँ की महिमा का बखान करते नही थकते सच उत्तराखंड की यह भूमि बेहद महान है जहाँ पे ऐसे ऐसे मंदिर है जिनकी हर बात अपने आप में निराली है उन्हीं मंदिरों में गर्जिया माँ का मंदिर भी अति सुंदर अद्धभूत हैं जिसका शब्दों में पूरी तरह वर्णन नहीं किया जा सकता इसलिए गर्जिया माँ की महिमा को देखने सुनने जानने के लिए समय लगे तो एक बार दर्शन खुद से करने जरूर जाए | |

जय माँ गर्जिया देवी सबकी रक्षा करना


लेख
दीपा कांडपाल ( गरुड़ बैजनाथ)
(सर्वाधिकार सुरक्षित)