उत्तरांचल दीप अंक -08-10-2015
जब प्रातः काल सूर्य नीकलता है तो इसका एक मन्होहर देखने वाला होता है। ताई,चाची लोग नौले से पिने का पानी तांबे की गागर में भर के लाते है और बच्चे स्कूल को जाते हुए कोई उस धार से तो कोई पल तरब वाली धार से और आँगन में बैठे हुए आमा और बुबु गुड वाली कटक की चाय पीते हुए कितना सुन्दर लगता है ।
जो १० वाली चाय होती है उसे वहाँ पर "मोरशी चाह " इसका मतलब हुआ इस समय हर घर में चाय बनती है और साथ में "कल्यो" नास्ता जिसे हमारे पहाड़ में "कल्यो" भी कहा जाता है। कल्यो में कभी तो आलू के गुड़के या फिर गेहूँ और मड़ुए की मिक्स रोटी या फिर कुछ और पहले कहते थे की गेहूँ और मड़ुए राई रौट खाओ तो भूख नही लगती है।
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श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
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