Monday, July 20, 2015

महारुद्रेस्वर मंदिर

"महारुद्रेस्वर मंदिर"

"देवो के देव महादेव हर हर महादेव आप की महिमा है निराली"



maharudershwar almora प्राचीन देवालयो के अवशेष तथा सम कालीन सहत्र शिवलिंग एवं खंडित प्रतिमा इस स्थल पर बिधमान मान है। यहाँ के आस -पास का वातावरण बुहत ही शांत है और साथ में बांज का जंगल हमेशा हरा -भरा रहता है। मानो ऐसा प्रतीत होता है प्रकति ने सब कुछ यही ला कर रख दिया हो !

हर साल मंदिर में श्रावण के महीने में शिव पुराण का आयोजन किया जाता है आस -पास के गांव वाले मिलजुल कर महा शिव पुराण कथा कराते है !

ऊपर मंदिर को जाते समय आप को एक धारा नजर आयेगा जिसमें गर्मी के समय ठंडा पानी और सर्दी के समय गरम पानी आता है। और निचे नदी के किनारे आप को पनचक्की (घट )मिलेगा जो अभी भी चलता है।

इस मंदिर से मेरी बचपन की बुहत सारी यादें जुडी है, बचपन से मुझे मेला देखना बड़ा पसंद था जिसे हमारे पहाड़ो में "कौतिक" कहते है। शिव रात्रि के कौतिक देखने जाते थे हम सब लोग और दूर दारज गावों से भी यहाँ आते है। उस समय हमें घर से २० या ३० रूपये दिए जाते थे कौतिक देखने के लिए अब हमें उसमें से अपने लिए चश्मे ,सीटी,इत्यादि चीजे लेनी भी होती थी और जलेबी या फिर आलू के गुड़्के भी खाने होते थे इन रूपये में हमारे खिलोने भी और खाने का भी हो जाता था आज बस तो एक पहाड़ो की यादें बन कर रह गयी है।

"देवो के देव महादेव हर हर महादेव आप की महिमा है निराली"

श्याम जोशी की कलम से 

श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
( सर्वाधिकार सुरक्षित )

चित्र सोजन्य - श्याम जोशी  (बल्साखूंट अल्मोड़ा )

महारुद्रेस्वर मंदिर

"महारुद्रेस्वर मंदिर"

"देवो के देव महादेव हर हर महादेव आप की महिमा है निराली"



maharudershwar almora प्राचीन देवालयो के अवशेष तथा सम कालीन सहत्र शिवलिंग एवं खंडित प्रतिमा इस स्थल पर बिधमान मान है। यहाँ के आस -पास का वातावरण बुहत ही शांत है और साथ में बांज का जंगल हमेशा हरा -भरा रहता है। मानो ऐसा प्रतीत होता है प्रकति ने सब कुछ यही ला कर रख दिया हो !

हर साल मंदिर में श्रावण के महीने में शिव पुराण का आयोजन किया जाता है आस -पास के गांव वाले मिलजुल कर महा शिव पुराण कथा कराते है !

ऊपर मंदिर को जाते समय आप को एक धारा नजर आयेगा जिसमें गर्मी के समय ठंडा पानी और सर्दी के समय गरम पानी आता है। और निचे नदी के किनारे आप को पनचक्की (घट )मिलेगा जो अभी भी चलता है।

इस मंदिर से मेरी बचपन की बुहत सारी यादें जुडी है, बचपन से मुझे मेला देखना बड़ा पसंद था जिसे हमारे पहाड़ो में "कौतिक" कहते है। शिव रात्रि के कौतिक देखने जाते थे हम सब लोग और दूर दारज गावों से भी यहाँ आते है। उस समय हमें घर से २० या ३० रूपये दिए जाते थे कौतिक देखने के लिए अब हमें उसमें से अपने लिए चश्मे ,सीटी,इत्यादि चीजे लेनी भी होती थी और जलेबी या फिर आलू के गुड़्के भी खाने होते थे इन रूपये में हमारे खिलोने भी और खाने का भी हो जाता था आज बस तो एक पहाड़ो की यादें बन कर रह गयी है।

"देवो के देव महादेव हर हर महादेव आप की महिमा है निराली"

श्याम जोशी की कलम से 

श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
( सर्वाधिकार सुरक्षित )

चित्र सोजन्य - श्याम जोशी  (बल्साखूंट अल्मोड़ा )

Friday, July 10, 2015

हुडकी बोल

हुडकी बोल

सुफल होया भूमि का भूम्याला सफल होया पंचनाम देवा हो।  
द्यो बिद करया दिया  हो बद्वा दिया हो भगवाना तुम देणा हे जाया हो।।  

मुझे आज भी याद है जब एक बार हमारे गांव में हुडकी बोल लगाया गया था सारे आस -पास के गांव वाले देखने आये थे। एक और जहाँ सारी महिला लोग एक साथ धान की रोपाई करते हुए और आगे -आगे हुड़का बजाने वाला हमारे यहाँ पहले रतन दा बजाता था अब डूगर दा पहले वो गीत के बोले गाता है।"भूमि का भूम्याला हो देणा हे जाया हो " फिर पीछे से सारी महिला लोग गाती है। सुबह ७ बजे से शुरू करते थे। और शाम को ६ बज जाते थे सारे गांव के खेतो में एकसार हो के रोपाई की जाती थी और जब ९ बजे "कलेवा" सब के घर से तो कोई ये नही देखता था ये तेरे घर से या मेरे घर से जिसको जितना मिलता था वो खा जाता था।

और बच्चो की भूमिकाएं अलग -अलग तरह की होती थी कभी खेत से "बीनोण " लाना तो कभी खेत की मेड बनानी और हम बच्चे तो हुए शैतान हम लोग बीच में सारा काम छोड़ कर नहाने चले जाते थे नदी (गाड़ ) में आह फिर इन्तजार होता था आलू के गुडको का और हलवा (सूजी ) कब आये कब खाए और होता क्या था बच्चो का नंबर सब से बाद में कर दिया जाता था और २ बात भी सुना दी जाती थी "के कर रो तुमुल रति बाटिक गाड़ जे बेर नाडम लाग रोछा" ये बोल दिया जाता था।

उसके बाद दिन के समय जो महिला लोग रोपाई करते है वो आपस में मज़ाक का भी काम साथ -साथ में चलता रहता था गीले मिट्टी के गोले बना कर एक दूसरे के ऊपर फेकना और यहाँ था खेत में एक दूसरे को सुला देते थी पानी से सरबर खेत ऊपर से को कच्यार पर उस समय वो सब अच्छा लगता था।

मित्रो एक गीत की लाइन शेयर कर रहा हूँ आगे आप लोगों को आती है तो बताना ये गीत अक्सर मैने रोपाई के समय अपनी जड़ज्या लोगों के मुह से सुना है !

"कसी गोडू में गेला गाजरा म्यर बिछुआ में लागि गो कच्यारा"

श्याम जोशी की कलम से 

श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
( सर्वाधिकार सुरक्षित )

Wednesday, July 8, 2015

सफर और मेरा पहाड़


जानता हूँ इस बस की गति आगे को है इसको पीछे मुड़ना शायद कब होगा लेकिन जो राहगीर इस में बैठा है उसको बार बार पीछे मुड़ कर देखने में एक अलग ही सकूँ मिल रहा था।  वो टेड़ी मेड़ी सड़के सड़को के किनारो से गिरते हुए पहाड़ो से झरने जो उदास  मन कुछ शांति और कुछ दिलासा दे रहे थे। 

नजर उठा के देखूँ तो सामने से कभी चीड़ के जंगल तो कभी देवदार के बड़े बड़े पेड़ जिन पर नजरे लगाना असंभव सा प्रतीत हो रहा था बीच में कभी कोई दूर पहाड़ी पर बना मकान नजर आता तो सबसे  पहले अपनी माँ की याद आती में भी इसी तरह अपनी माँ को एसे ही घर में छोड़ आया। 

शायद वो भी मेरी तरह सोचती होगी जब कभी शहर को जाती हुई बस को देखती होगी उसके मन में भी इसी तरह के ख्यालात आते होंगे। 

वो शहर को जानी वाली तू जल्दी वापिश आना मेरी अंखिया निहार रही है। परदेश में गए मुसाफिरों को अपनी गाँवो की सड़को का पता देते जाना और कहना वो परदेश को गए मुशफिर जल्दी वापिश आना। 

कभी बस की खिड़की से बाहर देखूँ या फिर कभी मोबाइल फ़ोन की तरफ आँखे गड़ा लू इसी तरह सफर निकल रहा था सब अपनी धुन में मस्त थे शायद में कोई और धुन में मस्त था जैसे जैसे ये पहाड़ मुझे छोड़ कर पीछे को जा रहे थे बस मन में एक ख्याल आ रहा था। 

 जन्म मेरा पहाड़ फिर कर्म उस निर्दली मिटटी में क्यों आखिर क्यों शायद इनका जवाब ना ही मेरे पास था न उन पहाड़ियों के पास जो मुझे पीछे छोड़ कर जा रही था न हे उन पेड़ो के पास जिनका रास्ता मेरे से अलग होता जा रहा था। 

  दोस्तों शायद इसको पढ कर आपकी आँखे जरूर नम हूँगी पर क्या करू यही हकीकत यही सच्चाई है यही अपनी किस्मत है। 

श्याम जोशी की कलम से 

श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
( सर्वाधिकार सुरक्षित )

Monday, July 6, 2015

देखो दाज्यू पहाड़ बज्यूण हैगो

पहाड़क ले फेसबूकम फस्क्यूण गई।
खेती पाती सब या ले बज्यूण हे गई।।

देखो दाज्यू  पहाड़ बज्यूण  हैगो।।

बोटु ताऊ बे जेबर सब सेल्फ़ी लिणहम मस्त छन।
बाकई सब लोग पोउ पे बेर ग़ध्यारम परस्त छन।।

देखो दाज्यू  म्यर पहाड़ बज्यूण  हैगो।।

बाड़ा ऊना पन सिसुण जामण भैगो।
पहाड़क आदिम शहर जाण नेह्गो।।

देखो दाज्यू  म्यर पहाड़ बज्यूण  हैगो।।

घरक ख़ाँण हरेगो मैगी चौमिन में मन नहेगो।
आपणी भाषाक बुलाण छुट गौ अंग्रेजी में दिल भैगो।।

देखो दाज्यू  म्यर पहाड़ बज्यूण  हैगो।।


श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
( सर्वाधिकार सुरक्षित )

Saturday, July 4, 2015

जय माँ ऋतम्भरा देवी


ma ratmbhra devi tample
यह मंदिर हमारे गांव का हमारे गांव की कुलदेवी माँ ऋतम्भरा के नाम से जाना जाता है  बहुत सुन्दर बनाया गया है। इसके सामने धुनि भी और साथ हवन कुण्ड है। अगल बगल बांज पेड़ो से और अधिक सुंदरता बड़ जाती है और वही गर्मी के दिनों में इनकी छाँव में बैठने से मन में एक अलग प्रकार की शांति का वाश होता है।

इस मंदिर में बेसी और भागवत  का आयोजन बड़े निष्टवान् से किया जाता है इन कार्यो  पुरे गांव वाले  सहयोग करते है। उन  दिनों यहाँ का मोहाल सुंदरमयी बन जाता है जहाँ  एक ओर  भजन  कीर्तन  से शाम सजती है वही सुबह की डंगरयो  द्वारा कि  गयी आरती देखने के लिए गांव के बच्चों  से लेकर बुजुर्ग लोग लाठी लेकर आरती देखने आते है। 


श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
( सर्वाधिकार सुरक्षित )
फोटोग्राफी - श्याम जोशी