Thursday, February 26, 2015

ये कोहरा छंट जाएं

ये कोहरा छंट जाएं।
मुझे भी किरणों का इन्तजार है।।

इन सर्द हवाओं में भी।
एक अजब सा खुमार है।।

मुझे भी ले चलो उस पहाड़ी की ओर।
जहाँ उसे होता है रोज मेरा इन्तजार।।

पतझड़ जाने को अब तैयार है।
बसंत अपने कदम पेड़ों पर।।

रखने को जहाँ बेताब है।
हरे - भरे पत्तो के बीच में बैठी कोयल।।

मधुर -मधुर गीत सुना कर ।
जग को यह जगाती है ।।

मेरे सूने मन के अंदर।
मधुर मधुर तान दे जाती है ।।

 श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ ) ( सर्वाधिकार सुरक्षित )


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