घर तो आज भी वही उसी तरह पड़ा है।
बस दरवाजे खोलने वाले की जरूरत है।।
गुड वाली चाय तो आज भी बनती है।
पहाड़ो में बस पिने वाली की जरूरत है।।
झोली भात आज भी बनता है मेरे घर के चूल्हे में।
बस सपोड़ा सपोड़ करने वाली की जरूरत है।।
मड़ुवे की रोटी बनाने वाली ईजा वही रहती है।
बस उसे खाने वाले की कमी खलती है।।
झुंगर आज भी बोया जाता है खेतो में।
बस उसे ओखल में कूटने वालो की जरूरत है।।
खेत खल्यान पहाड़ आज भी उसी तरह खड़े है जैसे सालो पहले थे बस जरुरत है तो उनसे जुड़ने की हमको जो छोड़ आएं हम अपनी मात्र भूमि को वह बुला रही है।
रचना
श्याम जोशी (अल्मोड़ा )
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