डोली शब्द सुनकर ही कही मन में ख़ुशी तो कही ख़ुशी के आंशु दौड़ने लगते है।बात करता हूँ उस समय की जब एक माँ अपने बेटे को डोली में बैठा कर भेझती है । अपनी घर की बहु को लाने के लिए वह समय लड़के वाले के लिए काफी हसीं होते है । इस ख़ुशी में सारे परिवार वाले और मेहमान शामिल होते है ।
अब बात करते है ख़ुशी के आंशुओं की प्रकति का नियम दिखये क्या है। एक तरफ तो माँ ख़ुशी -ख़ुशी अपने लड़के को डोली में बैठाती है वही दूसरी तरफ वह माँ जिसने अपनी बेटी को पाला पोसा पढ़ाया लिखाया आज उसे विदा करने का समय आ गया वही डोली जहाँ एक तरफ सबको ख़ुशी देती है और वही डोली एक तरफ सबको को ख़ुशी के आंशुओं दे जाती है।
अब आप सोच रहे होंगे ख़ुशी के आँशु क्यों ख़ुशी के आँशु इस लिए एक तरफ दिल के अंदर कही ना ख़ुशी है की बेटी अछि तरह विदा हो गयी अपने घर को और गम भी है । पर क्या करें यह दुनिया की रीत है। (दुनियॉ की रीत तसि छ चलिया पर घर भान कुनि चैलिया बेटीयाँ ) यह भी सत्य है जिसे कोई झुटला नही सकता है।
बाट लागि बराता च्यलि बैठ डोलिमा जा त्यरा सराशा च्यलि बैठ डोलिमा
लेख
श्याम जोशी
अब बात करते है ख़ुशी के आंशुओं की प्रकति का नियम दिखये क्या है। एक तरफ तो माँ ख़ुशी -ख़ुशी अपने लड़के को डोली में बैठाती है वही दूसरी तरफ वह माँ जिसने अपनी बेटी को पाला पोसा पढ़ाया लिखाया आज उसे विदा करने का समय आ गया वही डोली जहाँ एक तरफ सबको ख़ुशी देती है और वही डोली एक तरफ सबको को ख़ुशी के आंशुओं दे जाती है।

बाट लागि बराता च्यलि बैठ डोलिमा जा त्यरा सराशा च्यलि बैठ डोलिमा
लेख
श्याम जोशी