Thursday, September 3, 2015

बिरुड पंचमी

सातूँ -आठूँ के बिरुड़े (बिरुड़ पंचमी)
कुमाऊं में मनाइए जाने वाला त्यार सातूँ-आठूँ यह त्यौहार गौरा और महेश्वर को समर्पित है. कुमांऊ की तरफ कही सातों-आठों से तो कही गौरा महेश्वर के नाम से यह लोकपर्व बड़े उल्लास मनाया जाता है।
बचपन मैं इस त्यौहार का बड़ा इन्तजार रहता था क्योकि हमें २ दिन स्कूल नहीं जाना पड़ता था और खूब मस्ती करने को मिलती थी।
कुमांऊ में इस त्यौहार की बिरुड़ पंचमी भी कहा पीतल के बर्तन में पांच प्रकार के अनाज को भिगोये जाते है. और पाँच या सात दुब को बांधा जाता है।

यह त्यौहार गौरा और महेश को समर्पित है, यह त्यौहार कुमाँऊ में कई जगह मनाया जाता है,
शुक्ल पंचमी के दिन सारी महिलायें एकत्र हो कर अपने संस्कृति के परिधान से तैयार हो कर तांबे के बर्तन में विरुड़ भिगाती हैं।

गांव में कई घरो में गौरा और महेश की मूर्ति बना कर पूजा करते है, इस पूजा में बिशेष दो फूलो का प्रयोग किया जाता है धधुरा और हींवे का फूल सारी गांव की महिला लोग अपने घरो से पूजा की थाली को सजा कर लाते है फिर सब मिलजुल कर के पूजा करते है,

इस पूजा में सारी महिलायें और बच्चे होते है, और साथ में भक्ति गीतों के साथ नाच गाना भी चलता रहता है।

दूसरे दिन सुबह शुद्ध जल से धोकर विरुड़ और साथ में लाल रंग की दूव की डोर धारण करती हैं
अष्टमी के दिन कुंवारी कन्या सोंवा के पौधे से गमरा यानी गौरा बनाती हैं और डलिया में रखी जाती है। वहां पर एक चादर में माल्टा, नारंगी आदि स्थानीय फलों को एक चादर में डाल कर उछाला जाता है, यदि किसी कन्या के पास फल आकर गिरता है तो माना जाता है कि इस साल उसका ब्याह हो जायेगा।

नवमी के दिन गौरा और महेश जी को एक टोकरी में रखा जाता है और फिर विधि-विधान से दोनों की पूजा-अर्चना होती है और उनके गीत गाये जाते हैं, और फिर गांव के किसी माता के मंदिर में गाजे बाजे के साथ इनको ले जाया जाता है, और अश्रुपूर्ण विदाई दी जाती है, इसे गमरा सिलाना कहा जाता है माना गया है यह एक नन्दा जात का एक रुप है।

श्याम जोशी अल्मोड़ा (चंडीगढ़ )
( सर्वाधिकार सुरक्षित )


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