Tuesday, October 20, 2015

पाताल भुवनेश्वर

पाताल भुवनेश्वर गुफ़ा का नाम तो सुना ही होगा.. अरे वही.. जो उत्तराखंड के गंगोलीहाट पिथौरागढ़ (जिला ) में स्थित है..कइयों ने सुना होगा देखा भी होगा पर जिन्होंने नहीं सुना.. उन्हे मैं आप सब की जानकारी के लिए आज यहाँ पे अपने देखे सुने अनुसार साधारण से शब्दों में लिख के बया करुँगी।
पाताल भुवनेश्वरपाताल भुवनेश्वर गुफ़ा बेहद प्राचीन है जो हमारे उत्तराखंड के गंगोलीहाट पिथौरागढ़ (जिला ) में स्थित है.. जिसका वर्णन स्कंद पुराण में भी किया गया है.. इस गुफ़ा में मानो साक्षात् शिव का वास हो हर शीला (पत्थर) कुदरत के होने का प्रमाण बताती है.. एक रहस्यमई अधभुत अतुल्यनीय आश्चर्यजनक गुफ़ा.. गुफ़ा में मानों साक्षात् भगवान शिव की नगरी समायी हो इसलिए इसे पाताल भुवनेशवर शिव गुफ़ा मंदिर भी कहते है।

यहाँ प्रकति भी अपनी ख़ूबसूरती को बया करते नहीं थकती..प्राकर्तिक दृश्यों की भरमार.. पहाड़ की सुन्दर वादियाँ..बहती नदियां उनका स्वर.. ऊचे चीड़ के वृक्ष..मौसम सुहावना चारों और हरी भरी हरियाली..इन्ही प्राकर्तिक दृश्यों के बीच बसा कुदरत का स्वयं निर्माण किया पाताल भुवनेश्वर मंदिर..गुफ़ा में पहुँचने पर वही सारा सामान बहार ही जमा कर दिया जाता है..अंदर जाने के समय एक मार्गदर्शक (गाइड) जरुरी साथ होता है जो हमे वहाँ के सही रास्तो और वहां की हर तरह की पूरी जानकारी से अवगत कराता है।

गुफ़ा में प्रवेश करने से पहले भीतर जाने वाले का एक बार सहमना (डरना) सव्भाविक है.. ( जरुरी सुचना.. इसलिए हो सके तो बुजुर्ग लोग और जिनको सांस से सम्भंदित कोई भी तकलीफ हो वो गुफ़ा के अंदर न जाए )..इस गुफ़ा के मार्ग बेहद ही सकरे है आठ से दस फिट धरती के अंदर है यह गुफ़ा..गुफ़ा में काफी फिसलन भी है जिसके लिए यहाँ पर इसमें निचे जाने के लिए चेन (जंजीर) भी लगी हुई है.. जिसे पकड़ पकड़ के उतरा जा सकता है..और रौशनी (बिजली) की सुविधा भी है.. गुफ़ा में भीतर (अंदर) जाते ही काफी खुला है।

जिसके भीतर मानो नज़र पड़ते ही पुरे ३३ कोटि देवी देवताओं का वास होगा..गुफ़ा की हर शीला (पत्थर) मानों कोई न कोई देव रूप लेके प्रकट हुई हो.. नरसिम्हा भगवान..फ़न फैलाये शेषनाग..शिव शंकर भगवान जी की जटाये..तपस्या वाला कमंडल..वो स्थान जहा पे शिव ने गणेश जी की (मूर्ति) का सर काट दिया था.. उसके ऊपर ही कमल का फूल जिससे पानी टपकता है जो मूर्ति के ऊपर गिरता है.. और गुफा के अंदर ही कामधेनु गाय भी है.. और एक टेड़ी गर्दन वाला हंस भी है..ब्रह्मा विष्णु महेश जी भी साथ में विराजमान है..और यहाँ पे एक जगह पे सतयुग त्रेतायुग द्वापरयुग कलयुग भी बने हुए है..यहाँ गुफा मैं चार धाम के दर्शन भी होते है।

इस गुफ़ा के भीतर ही चार द्वार भी है..जो रण द्वार..पाप द्वार..धर्म द्वार..मोक्ष द्वार (धर्म द्वार और मोक्ष द्वार खुले हुए है) आगे भगवान शिव जी का नर्मदेश्वर लिंग भी है.. १९ वीं सदी में आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित तांबे जड़ा शिवलिंग भी यहाँ स्थापित है..पाताल भुवनेश्वर का वर्णन भारत के प्राचीन ग्रन्थ स्कन्द पुराण में भी किया गया है।

देखने को और भी काफी बहुत कुछ है यहाँ पे.. लिख के तो थोड़ा थोड़ा ही वर्णन बताया जा सकता है..विस्तार से जानने के लिए तो आप को खुद ही स्वयं को जाना होगा..जब तक खुद से देखेंगे नहीं तब तक वो भाव महसूस (फील) नहीं होगा..और यदि अपने ही उत्तराखंड में कुदरत की नकाशी..साक्षात शिल्प पे कारीगरी की गयी..ऐसी अधभूत रोमांचकारी गुफ़ा हो तो..क्योँ पीछे रहते है।
एक बार दर्शन के लिए जरूर जाए पाताल भुवनेश्वर शिव मंदिर गुफ़ा के अपने देव भूमि में और अपने बच्चों को भी बताये अपने पहाड़ के बारे में ताकि हमारी आने वाली पीडी को पता चले हमारी देवो की देव भूमि क्यों इतनी प्रसिद्ध है।

आभार
दीपा कांडपाल की कलम से यह सुन्दर लेख
(गरुड़ बैजनाथ )
(सर्वाधिकार सुरक्षित )

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