Wednesday, December 16, 2015

हम सबका पहाड़ अपना पहाड़

पहाड़ मेरा पहाड़ हम सब का अपना पहाड़ समझे तो उसका भी पहाड़ कोई नहीं समझे तो उसका भी पहाड़ सही कह रही हूँ शायद में पहाड़ की सुन्दर सी वादियाँ अहाहा.. सुन्दर सा नजारा मन को मोह लेता है...हरे भरे खेत लहलाते हुए धान.. ठंडी ठंडी हवा ठंडो ठंडो पानी अहाहा मन को प्रफुलित कर देता है।
जितना मैंने पहाड़ को जाना है जयादा तो नहीं पर थोड़ा थोड़ा बेहद अच्छा लगा...लेकिन वहां पे जो अच्छा नहीं लगा वो था वहां पे पिने की आदत.. चाहे चाय (चाह) लो, बीड़ी लो, हुक्का लो ,शराब लो, सब स्वास्थ्य के विरुद्ध बेहद बुरी लत जो शायद ही मिट सकती हो कभी
वहाँ पे रह रहे लोगो का अधिकतर जीवन एक तो चाय (चाह) ने ख़राब कर दिया २४ घंटे चाय.. एक बार पि ली.. उसी वक़्त दोबारा बनी तब पि ली.. फिर कोई आया फिर पि ली.. कोई आये या न पर पीनी है तो पीनी ऐसे ही पि ली.. कितली मतलब की (चाय बनाने का बर्तन) चूल्हे से उतरने का नाम ही न लेती है।
चलो चाय तक तो ठीक था पर दूजा यह पिने की लत कहा से आई बीड़ी,हुक्का,शराब शराब जिसकी इतनी बुरी लत पड़ी हुई है पहाड़ मैं..वो न हो तो मानो सब बेकार है.. कोई भी काम हो जैसे शादी ब्याह इत्यादि.. शुभ ही कार्य नहीं.. पिने वालो को तो पीनी है तो कैसा भी मौका हो.. कभी भी.. रोज भी..जब चाहे मन करे पीनी है.. और कोई पिला दे तो फिर क्या कहना.. उसके बराबर गुणवान इंसान कोई दूजा होगा ही नहीं हो सकता है।
बेहद बेकार लत जिसने इतने ख़ूबसूरत पहाड़ मैं रह रहे लोगो को खत्म कर दिया है..कमियां कहाँ नहीं होती पर अपने स्वास्थ्य के लिए वातावरण के लिए जो हानिकारक हो..उसे कोशिश करके पूरी तरह न सही.. थोड़ा थोड़ा ..करके तो खत्म किया जा सकता है न.. फिर देखो हमारा पहाड़ स्वर्ग से कम नहीं. अच्छा सब लिखते है पर मुझे जो गलत लगा वो लिखा.. मैंने अपनी बात कही है.किसी को मेरी बातों से आहत पहुंचे वो मेरा इरादा नहीं बाकि मैं अपने को समझदार नहीं समझती आप सब पढने वाले बेहद समझदार है इसलिए पढ़िए और सोचिये क्या कुछ कर सकते है।
लेख दीपा कांडपाल (गरुड़ बैजनाथ) ( सर्वाधिकार सुरक्षित )

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