Wednesday, August 17, 2016

रक्षाबंधन

"जाने आज अपनों के चिट्ठी पत्र कहाँ गुम हो गए" 

एक संदेश पहुचाने वाली चिट्ठी पत्र की कीमत आज के समय में  कोई नहीं जानता चिट्ठी पत्र अपनी भावनाओं को पेश करने का सबसे अच्छा माध्यम माना जाता था जिसमें दुःख हो सुख हो हँसी हो खुशी हो प्रेम हो अपनापन हो कोई त्योहार ही क़्यों न हो सब कुछ चिट्ठी के माध्यम से जुड़े हुए थे भले हम सब आपस में दूर रहते थे पर इसमें लिखी अभिव्यक्तियों के जरिए अपनों के अपनेपन का हर एहसास झलकता था आख़िरकार कंप्यूटर स्मार्टफोन मोबाइल इन्टरनेट के इस युग अपनों की पल पल की ख़बर तो हैं पर वो चिट्ठी पत्र कही गुम  से हो गए !

मैंने देखा है ख़ुद बच्चपन से अपने बड़ो को पहाड़ गाँव में चिट्टी भेजतें हुए भी आते हुए भी हम लोग कई सालों से शहर दिल्ली में ही रहते हैं और पहाड़ उत्तराखंड में आमा बुबू (दादा दादी) अपने परिवार के चाचा बुआ रिश्तेदार सब गांव में ही रहते है कुछ साल पहले तक उनसे संपर्क में रहने के लिए न तो उस समय कोई नई तकनिकी थी न यातायात के इतने अच्छे साधन थे न इतनी जल्दी आने जाने के लिए इतनी आय थी की गाँव हर महीने जा सकें इसलिए साल में ही जाना हो पाता था इसलिए अपने पहाड़ उत्तराखंड में अपनों से जुड़े रहने के लिए चिट्टी पत्र का ही सहारा लिया जाता था !

एक चिट्ठी महीनों में पहुँचती थी तो इज्जा बौज्यू (मम्मी पापा) उस पत्र चिट्ठी को देख के भावुक हो उठते थे क़्यों की चिट्ठी पत्र में ही हमें आमा बुबू (दादा दादी) अपनों का हाल मिलता था और वो भी पहाड़ में  इंतज़ार लगाए रहते थे चिट्टी का उनको भी चिट्ठी तार द्वारा हम लोगों की ख़बर का इंतज़ार उतना ही रहता था  डाकिए को बार बार पूछती रहती मेरी आमा की मेरे बेटे का कोई चिट्ठी पत्र आया उस वक़्त अपनों की दूरियों को समेट देता था महीनों में पहुँचने वाला एक प्रेम भरा अपनों का चिट्ठी पत्र !

आज शहरों में ही नहीं फ़ोन मोबाइल इंटरनेट पहाड़ उत्तराखंड के गांवो में भी हाथ हाथ में पहुँच गए पल पल की ख़बर पहाड़ में उनकों भी और शहर में हम लोगों को पहुँच जाती है पर हमें वो डाकिये द्वारा पहुँचाने वाली चिट्ठी में जो प्यार झलकता था वो इन रोज़ पल पल  पहुँचने वाले संदेशों में नहीं है यह हमारे लिए अच्छी बात है की आज पल पल की जानकारी अपनों की दोनों तरफ से बराबर मिलती रहती है  लेकिन संवेदनाएं अब मर सी चुकी है यह रिश्तों के खालीपन को बातों से भरने की कोशिश तो करते है लेकिन जो हाल ऐ दिल बयां अपने अपनों के चिट्ठी पत्र  कर सकता था वो आज के युग के स्मार्ट फ़ोन इंटरनेट में वो बात नहीं है !

पर वो चिट्ठी पे लिखा संदेश याद है जिसका एक एक शब्द मानों अपनों की प्रेम भरी भावनाओं से जुड़ा रहता था पर मुझे ऐसा लगता है की भले मोबाइल आ गया इंटरनेट आ गया पर एक बात में अब भी चिट्टी पत्र हमारे बीच मौजूद रहेगा वो रहेगा भाई बहन के पवित्र पर्व रक्षाबंधन द्वारा पहले जैसे ही पहाड़ से लोग अपने परिवारों से दूर है पर आज के समय में भी जैसे भाई दूर शहर में होता है रक्षा बंधन के लिए नहीं पहुँच सकता तो आज भी पहाड़ो से वो बहन अपने भाई के लिए रक्षासूत्र उसी चिट्ठी के जरिए भेजती है क्योँ की भाई का हाथ त्योहार पे सुना न रहे उस चिट्ठी तार  में वो प्रेम आज भी झलकता है !

रक्षाबंधन पर्व को पहाड़ उत्तराखंड में एक नाम से और जाता है "जन्यापून्यू" रक्षाबंधन के दिन पहाड़ उत्तराखंड के घरों पे ब्राह्मण जनेऊ दे के जाते है व्रतबंध व्यक्ति यदि घर से दूर रह रहा हो तो उसे चिट्टी पत्र द्वारा वो जनेऊ उस  व्यक्ति  तक पंहुचा दी जाती है क़्यों की जो भी व्यक्ति व्रतबंध होते है उन्हें नई जनेऊ धारण करना मान्य माना जाता है रक्षाबंधन भाई बहन का पवित्र प्रेम मिठास अपनत्व का बंधन का पर्व ही शायद यही पर्व  चिट्ठी तार को हमारे आने वाले वर्षो तक जिन्दा रख सकते है बस पहाड़ उत्तराखंड में बसे या पहाड़ के ही शहरों में बसे भाई बहन जो दूर दूर है तो ये कभी न सोचें की रोज़ ही तो भाई से बात हो जाती है अब भाई के लिए इतनी दूर से राखी क्या भेजनी ऐसे विचार कभी न लाएं चिट्ठी पत्र द्वारा हर बहन अपने दूर रह रहे भाई को हमेशा आने वाले वर्षो तक राखी भेजती रहे क्या पता इसी प्यारे पर्व  रक्षा बंधन पे बधने वाले रक्षासूत्र से हमारे आपके अपनों के बीच प्रेम भरी चिट्ठी पत्र जिन्दा रहे || 

लेख 
दीपा कांडपाल ( गरुड़ बैजनाथ)
(सर्वाधिकार सुरक्षित)

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